चार वर्ष से नहीं दिखे चीतल
वन्यजीवों की गणना को भले ही विभाग पूरी तरह से सही नहीं मानता हो और यही वजह है कि अब वन्यजीव गणना को आंकलन का नाम दे दिया गया है। लेकिन कुछ भी इस दौरान उनका नजर न आना उनकी संख्या में आई कमी को स्पष्ट करता है। वर्ष २०१७ की वन्यजीव गणना में कुंभलगढ़ अभयारण्य क्षेत्र में २२ चीतल नजर आए थे, इससे पूर्व २०१६ में ८ और २०१५ में 6 चीतल नजर आए थे, लेकिन उसके बाद से एक भी चीतल गणकों को गणना के दौरान नहीं दिखा। वहीं रावली टाडगढ़ में पहले से ही इनकी कमी रही है। पिछले पांच वर्षों में वह नजर नहीं आए हैं। गौरतलब है कि चीतल की त्वचा का रंग हल्का लाल, भूरे रंग का होता है और उसमें सफेद धब्बे होते हैं। पेट और अंदरुनी टांगों का रंग सफेद होता है। चीतल के सींग, जो कि अमूमन तीन शाखाओं में घुमावदार होते हैं। चीतल बाघ, पैंथर का प्रिय शिकार होता है।
इसबार लॉकडाउन के तहत शांत हुए वातावरण के चलते जंगलों में वन्यजीवों की चहल कदमी बढ़ी है। जिसका असर पांच जून को हुए वन्यजीव आंकलन में नजर आता है। आंकलन के दौरान कुंभलगढ़ और रावली टाडगढ़ के जंगलों से पैंथरों की संख्या में गत पांच वर्षों के मुकाबले इजाफा हुआ है।
इसबार वन्यजीव आंकलन में गतवर्ष के मुकाबले भालुओं की संख्या में कुछ कमी देखी गई है। हालांकि इसबार भी बादल छाए रहने से गणकों को वन्यजीवों को पहचानने में समस्याएं हुई थीं। और भालू काले रंग का होता है, ऐसे में भालू जबतक नजदीक नहीं आता तबतक उसे साफ नहीं देखा जा सकता।