अवसाद और तनाव के मुख्य कारण
– काम-धंधा बंद होने से बनी आर्थिक संकट की स्थिति
– रोजगार के लिए लम्बे समय से बाहर रह रहे एकाकी परिवार के आदी कुछ लोगों के संयुक्त परिवार में आते ही बढ़ा कलह
– कोरोना काल के दौरान आपस में मेलजोल कम हुआ, जिससे व्यावहारिक पक्ष कमजोर हुआ। लोग एक- दूसरे से अपने दुख-दर्द साझा नहीं कर पा रहे
– काम-धंधा बंद होने से बनी आर्थिक संकट की स्थिति
– रोजगार के लिए लम्बे समय से बाहर रह रहे एकाकी परिवार के आदी कुछ लोगों के संयुक्त परिवार में आते ही बढ़ा कलह
– कोरोना काल के दौरान आपस में मेलजोल कम हुआ, जिससे व्यावहारिक पक्ष कमजोर हुआ। लोग एक- दूसरे से अपने दुख-दर्द साझा नहीं कर पा रहे
ये है मनोचिकित्सक व सलेब्रिटी की राय- निराशा के लक्षणों की पहचान जरूरी
शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने से ज्यादा जरूरी है मानसिक तौर पर स्वस्थ रहना। शारीरिक अस्वस्थता का तो पता चल जाता है, लेकिन मानसिक बीमारी के लक्षणों की पहचान करना मुश्किल होता है। मानसिक बीमारी का यदि समय पर उपचार न हो तो ये गंभीर अवस्था में पहुंच जाती है। ये स्थिति कोई कोरोना काल की ही नहीं है, विश्व स्वास्थ्य संगठनों की मानें तो पहले भी हर 40 सेकंड में एक आत्महत्या होती थी। मानसिक बीमारी के कारण भावनात्मक व वित्तीय संकट भी हो सकते हैं। ये केवल बॉलीवुड ही नहीं, हर तरह के पेशे से जुड़े लोगों में हो सकती है। ऐसे हालात में हमें मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। हमें कुछ लक्षणों की पहचान करनी होगी, जैसे निराशा, रूचि में कमी, नींद में खलल, भूख न लगना, चिड़चिड़ापन, निष्क्रियता, मृत्यु की इच्छा, आत्मघाती विचार आदि। मेरा ये मानना है कि ऐसे कोई एक लक्षण भी यदि हमारी जानकारी में आए तो बिना संकोच किए तत्काल मनोचिकित्सक से परामर्श लेकर दवा शुरू कर देनी चाहिए। मस्तिष्क भी किसी अन्य अंग की तरह शरीर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यदि मस्तिष्क बीमार है, तो उसे भी उपचार की जरूरत होती है। इसके साथ ही परिवार और कार्यस्थल पर सकारात्मक दृष्टिकोण और वातावरण बनाए रखने के प्रयास होने चाहिए। इसके अलावा 8 घंटे की नींद, एक घंटा व्यायाम, योग-ध्यान, उचित आहार, मादक द्रव्यों के सेवन से बचते हुए अपनी जीवनशैली में सुधार करके भी मानसिक बीमारियों से बचा जा सकता है। ये हमेशा याद रखना होगा कि आत्महत्या मानसिक बीमारी के दौरान सिर्फ एक विचार है और इस विचार को बाहर निकालने के बहुत सारे तरीके हैं। परिजनों को भी चाहिए कि मानसिक रोगी के साथ सामान्य व्यवहार करे और उसे तत्काल मनोचिकित्सक को दिखाए, ताकि परिवार के एक महत्वपूर्ण सदस्य का जीवन बचाया जा सके।
– डॉ. नीना विजयवर्गीय,
मानसिक रोग चिकित्सक
शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने से ज्यादा जरूरी है मानसिक तौर पर स्वस्थ रहना। शारीरिक अस्वस्थता का तो पता चल जाता है, लेकिन मानसिक बीमारी के लक्षणों की पहचान करना मुश्किल होता है। मानसिक बीमारी का यदि समय पर उपचार न हो तो ये गंभीर अवस्था में पहुंच जाती है। ये स्थिति कोई कोरोना काल की ही नहीं है, विश्व स्वास्थ्य संगठनों की मानें तो पहले भी हर 40 सेकंड में एक आत्महत्या होती थी। मानसिक बीमारी के कारण भावनात्मक व वित्तीय संकट भी हो सकते हैं। ये केवल बॉलीवुड ही नहीं, हर तरह के पेशे से जुड़े लोगों में हो सकती है। ऐसे हालात में हमें मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। हमें कुछ लक्षणों की पहचान करनी होगी, जैसे निराशा, रूचि में कमी, नींद में खलल, भूख न लगना, चिड़चिड़ापन, निष्क्रियता, मृत्यु की इच्छा, आत्मघाती विचार आदि। मेरा ये मानना है कि ऐसे कोई एक लक्षण भी यदि हमारी जानकारी में आए तो बिना संकोच किए तत्काल मनोचिकित्सक से परामर्श लेकर दवा शुरू कर देनी चाहिए। मस्तिष्क भी किसी अन्य अंग की तरह शरीर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यदि मस्तिष्क बीमार है, तो उसे भी उपचार की जरूरत होती है। इसके साथ ही परिवार और कार्यस्थल पर सकारात्मक दृष्टिकोण और वातावरण बनाए रखने के प्रयास होने चाहिए। इसके अलावा 8 घंटे की नींद, एक घंटा व्यायाम, योग-ध्यान, उचित आहार, मादक द्रव्यों के सेवन से बचते हुए अपनी जीवनशैली में सुधार करके भी मानसिक बीमारियों से बचा जा सकता है। ये हमेशा याद रखना होगा कि आत्महत्या मानसिक बीमारी के दौरान सिर्फ एक विचार है और इस विचार को बाहर निकालने के बहुत सारे तरीके हैं। परिजनों को भी चाहिए कि मानसिक रोगी के साथ सामान्य व्यवहार करे और उसे तत्काल मनोचिकित्सक को दिखाए, ताकि परिवार के एक महत्वपूर्ण सदस्य का जीवन बचाया जा सके।
– डॉ. नीना विजयवर्गीय,
मानसिक रोग चिकित्सक
अवसाद है तो दोस्त व परिजनों से करें बात
जिंदगी में कई बार हमें वो नहीं मिलता, जो हम चाहते हैं। ये ही कुछ बातें हमारे अवसाद का कारण भी बन जाती हैं। पर उसके बाद हम क्या करते हैं यह हमारा अपना फैसला होता है। इसीलिए जरूरत होती है अपने अवसाद के ऊपर काम करने की। इसके लिए ही दुनिया में मनोचिकित्सक होते हैं, वो हमारे अवसाद से लडऩे में हमारी मदद करते हैं। यदि किसी को अवसाद है तो उसका इलाज वैसे ही करें, जैसे बुखार या किसी और बीमारी का करते हैं। पर कभी-कभी अवसादग्रस्त व्यक्ति कुछ समझ पाने की स्थिति में नहीं होता। ऐसे में उसके करीबी लोगों को उसका इलाज करवाना चाहिए। ऊपरी तौर पर कारण चाहे कुछ भी हो, पर असली वजह यही होता है कि व्यक्ति अपनी भावनाओं और परिस्थितियों के बीच ख़ुद को सम्भाल नहीं पाता। यदि अच्छे दोस्त व परिवार के बीच अपनी समस्याओं को साझा किया जाए तो हर समस्या का निदान संभव है।
– मीनल वैष्णव,
अभिनेत्री