अरावली की उपत्यकाओं में से निकलने वाली बनास नदी राजसमंद के विभिन्न गांवों को तर करते हुए मातृकुण्डिया बांध को भरती है। अधिकांश गांवों के कैचमेन्ट क्षेत्र का पानी भी बनास अथवा अन्य नालों के जरिए मातृकुण्डिया बांध तक पहुंचता है। किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष कालूराम गाडरी का कहना है कि मातृकुण्डिया बांध के गेट चित्तौडग़ढ़ जिले में स्थित हैं, लेकिन इसका पूर्ण जल भराव क्षेत्र भी राजसमन्द जिले में आता है। कई बार बनास में पानी नहीं बहने के बावजूद बांध में पानी की अच्छी आवक हो जाती है। इस बांध में डूबने वाले तमाम खेत राजसमन्द जिले के सीमान्त गांवों के ही हैं। बांध का पानी भीलवाड़ा जिले के मेजा बांध को भरने के काम में लिया जाता है। वहीं कुछ पानी दरीबा माइंस को दिया जाता है। बांध से किसानों को नुकसान हो रहा है, लेकिन इस बांध से किसानों को लाभ पहुंचाने की अब तक योजना तो दूर किसी ने सोचा तक नहीं है। अगर बांध से सिंचाई कार्य शुरू करा दिया जाता है तो राजसमन्द जिले के दर्जनों गांवों के किसानों को इसका सीधा लाभ पहुंचेगा। वहीं, इस बांध के पानी को ट्रीट कर क्षेत्र के गांवों में पेयजल के रूप में वितरित करने की व्यवस्था भी की जाती है तो क्षेत्र के दर्जनों गांवों में पेयजल की समस्या से निजात मिल सकती है।
तीर्थ स्थली मातृकुण्डिया का सर्वांगिण विकास मॉडल रूप से किया जाता है तो चित्तौडग़ढ़ एवं राजसमन्द जिले के सीमान्त गांवों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगेे। पूर्व भाजपा सरकार ने यहां परशुराम पैनोरमा तैयार कराया, लेकिन वर्षों से इसका ताला तक नहीं खोला गया। तीर्थ में बने परशुराम कुण्ड की समुचित सफाई नहीं किए जाने से पानी से दुर्गंध उठने लगी है। इससे यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु अब स्नान करने से भी कतराते हैं। वहीं, कुण्ड के आसपास महिला श्रद्धालुओं के लिए जरूरी सुविधाओं जैसे चेन्ज रूम आदि का भी अभाव है। तीर्थ पर ठहरने वाले श्रद्धालुओं के रात्रि विश्राम की भी समुचित व्यवस्था नहीं है। सार्वजनिक शौचालयों की दुर्दशा भी यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए परेशानी भरी है।
तीर्थ स्थली से जुडऩे वाली तमाम सड़कों की दुर्दशा भी यहां से श्रद्धालुओं को दूर कर रही है। मातृकुण्डिया तीर्थ को जोडऩे वाली राजसमन्द, चित्तौडग़ढ़ एवं भीलवाड़ा जिला मुख्यालयों की मुख्य सड़के खस्ताहाल है। धार्मिक आस्था का प्रतिक माने जाने वाली इस तीर्थ स्थली से कपासन, गिलूण्ड, गंगापुर, राशमी आदि गांवों की सड़के बेहाल है। राजनेताओं के आने से एक-दो दिन पहले सड़कों पर पेचवर्क कर दिया जाता है और बाद में इन सड़कों की सुध लेने वाला कोई नहीं होता तीर्थ से निकलने वाली तमाम सड़कों को सुदृढ़ कर दिया जाता है तो यहां श्रद्धालुओं की संख्या में अपनेआप ईजाफा हो सकता है।