scriptपुष्टिमार्गीय चित्रकला में है भरपूर रोजगार की संभावनाएं | There is ample employment opportunities in Pustimargiya painting | Patrika News

पुष्टिमार्गीय चित्रकला में है भरपूर रोजगार की संभावनाएं

locationराजसमंदPublished: May 29, 2020 07:20:26 pm

Submitted by:

Rakesh Gandhi

बिल्ड अप इण्डिया- प्रशिक्षण के जरिए तैयार किए जा सकते हैं युवा- इस कला को लुप्त होने से बचाया जा सकेगा

पुष्टिमार्गीय चित्रकला में है भरपूर रोजगार की संभावनाएं

पुष्टिमार्गीय चित्रकला में है भरपूर रोजगार की संभावनाएं

राकेश गांधी
राजसमंद.
लॉकडाउन के बाद अपने घरों को लौटे कुशल प्रवासी मजदूर व श्रमिक इन दिनों स्थानीय स्तर पर काम को तलाश रहे हैं। दो माह खाली बैठने के बाद अब उन्हें भविष्य की चिंता सताने लगी है। इनमें से अधिकतर वापस अपनी कर्मस्थली दूसरे राज्यों में लौटने को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं। ऐसे में निश्चित है वे स्थानीय स्तर पर भी गुंजाइश तलाश रहे हैं। कुटीर उद्योगों के अलावा भी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें कुछ समय प्रशिक्षण लेकर उन्हें रोजगार का जरिया बनाया जा सकता है। पुष्टिमार्गीय चित्रकला भी एक उत्कृष्त व सम्मानीय क्षेत्र है जो सीधे श्रीनाथजी व द्वारकाधीश मंदिर से संबद्ध है।

क्या है पुष्टिमार्गीय चित्रकला परम्परा
मूलत: पुष्टिमार्गीय चित्रकला की परम्परा का संरक्षण व संवद्र्धन केन्द्र नाथद्वारा रहा है। कांकरोली को उससे पृथक् रखकर नहीं देखा जा सकता। वल्लभाचार्य का मत था कि कोई भी वैष्णव भक्त इतना समर्थ नहीं कि वह मूर्ति की स्थापना करे या मंदिर बनाकर अपने आराध्य की सेवा करे। इसलिए सर्व सुलभ हस्त निर्मित चित्रों को पुष्टिमार्ग में मान्यता मिली। इसीलिए चित्र सेवा व्यक्तिगत सुख की सेवा है जिसे धीरे-धीरे व्यावसायिक रूप दे दिया गया।

इस विधा को रोजगार को जरिया बनाना संभव
चित्रकला की इस विधा को व्यक्तिगत दक्षता प्रशिक्षण और उद्योग का विषय बनाया जा सकता है। नाथद्वारा में इस परम्परा से जुड़े परिवार ही इस शैली के जानकार हैं। वे भी बाहर के बाजारों के ‘शोषित कारीगरों’ के रूप में अनजाने ही अपनी इस विरासत को विश्व बाजार में रेहन में रख रहे हैं। यदि इन संभावित लाभार्थियों, जिनमें स्थानीय ब्रजवासी परिवार, पारम्परिक रूप से जुड़े युवा, अन्य इच्छुक लोगों के लिए योजनाबद्ध प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों की शृंखला बनाकर शिक्षण, प्रशिक्षण दिया जाए तो यह धरोहर संरक्षण की दिशा में कार्य होगा। यूनिवर्सिटी के डिजाइनिंग कोर्सेज में पिछवाई पेंटिंग, मिनिएचर कला को स्वतंत्र या इन्टिग्रेटेड रूप से जोडऩा आवश्यक है।

ये हैं प्रशिक्षण के संभावित क्षेत्र
पुष्टिमार्ग के विग्रहों के चित्रों का अंकन। श्रीकृष्ण लीलाओं का बहुत बड़ा संसार इन मूर्तियों को उसी रूप में कैसे सज्जित करे, यह प्रशिक्षण का विषय है। मंदिरों के उत्सवों पर आधारित व कृष्ण के जीवन चरित्र से संबद्ध चित्र आदि। आज भी प्रशिक्षकों की कमी नहीं है। गोस्वामी परिवार के आचार्य/महिला शक्ति, वे वैष्णव परिवार जो विभिन्न पुष्टिमार्गीय पीठों से संबद्ध हो, आचार्यों से इस कला को सीखे हैं और श्रेष्ठ पारम्परिक चित्रकार जो नाथद्वारा और अन्य केन्द्रों में मंदिरों की चित्र सेवा में लगे हैं, उन्हें ये अवसर दिया जा सकता है। रोजगार आधारित पाठ्यक्रम संचालित करना सरकार और इस क्षेत्र के धर्माचार्यों की इच्छा शक्ति पर आधारित है।
सुनियोजित पाठ्यक्रम हो तो खुल सकते हैं रोजगार के द्वार
दो प्रकार के प्रशिक्षण पर विचार हो। पहला अल्पकालिक, जहां तीन से छहमाह के प्रशिक्षण द्वारा अवधारणाओं को स्पष्ट कर चित्रकला के मुख्य कम्पोनेंट्स पर ट्रेन्ड किया जाए। यह स्थानीय स्तर पर मंदिर सेवा आश्रित स्थानीय, क्षेत्रीय युवाओं को मंदिर प्रबंधन द्वारा दिया जाना चाहिए। दूसरा दीर्घकालिक, जो दो-तीन वर्षों का सुनियोजित पाठ्यक्रम हो, यूनिवर्सिटीज द्वारा कौशल आधारित रोजगारोन्मुखी भी हो। इसके लिए यथाशक्ति पुष्टिमार्ग में चल रहे फाउंडेशन्स, अकादमियों और वैष्णव मतावलंबियों का सहयोग लिया जाए। ये कोर्स न्यूनतम एक व अधिकतम दो वर्ष के हो सकते हैं। प्रशिक्षित चित्रकारों द्वारा ‘आत्मनिर्भर भारतÓ अभियान के प्रावधानों का लाभ लेकर स्वयं वित्त पोषित या सहकारिता आधारित रोजगार में बदला जा सकता है।
– डा. राकेश तैलंग, शिक्षाविद्, पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी
परम्परागत चित्रांकन करने वाले स्थानीय चित्रकार बहुत कम हैं। इस क्षेत्र में रोजगार की संभावना तो काफी है। तय प्रशिक्षण के माध्यम से नई पीढ़ी को तैयार किया जा सकता है। इससे इस परम्परा को नया जीवन मिलेगा। यदि इस संबंध में सोचा जो तो बेहतर होगा।
– कमल सांचीहर, प्रसिद्ध चित्रकार
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