scriptहित संरक्षण की आड़ में “ब्लैकमेल” | Under the guise of conservation interest "blackmail" | Patrika News

हित संरक्षण की आड़ में “ब्लैकमेल”

locationराजसमंदPublished: Sep 27, 2015 11:17:00 pm

दलित वर्ग के हित संरक्षण के
लिए बने अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून को कतिपय

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राजसमंद।दलित वर्ग के हित संरक्षण के लिए बने अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून को कतिपय लोग ब्लैकमेल करने का कानूनी हथियार बना बैठे हैं। यह हालात जिले के पुलिस थानों में दर्ज होने वाले 6 0 फीसदी प्रकरण पुलिस जांच में झूठे साबित होने के साथ ही सामने आ रहे हैं।


अदालती वक्त बर्बाद होने से वास्तविक पीडित को न्याय मिलने में देरी हो रही है।दलित वर्ग के हितों की रक्षा व उनके उत्थान के लिहाज से बने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 198 9 के तहत जिले के चौदह पुलिस थानों में वर्षभर में औसतन पचास से साठ प्रकरण दर्ज हो रहे हैं।


दर्ज होने वाले अधिकांश प्रकरणों में जातिगत गाली-गलौच, मारपीट, छुआछूत व मानव अधिकारों से वंचित करने के आरोप शामिल हैं। पुलिस जांच में 40 फीसदी मामले ही सही पाए जा रहे हैं।


स्पष्ट है कि साठ फीसदी लोग सिर्फ व्यक्तिगत स्वार्थ या ब्लैकमेल करने के लिए ही जबरन पुलिस थानों में झूठे प्रकरण दर्ज करवा रहे हैं। इसका खमियाजा दलित वर्ग के ही वास्तविक पीडित को भुगतना पड़ रहा है।

पुलिस पर सवाल

मुकदमे झूठे दर्ज कराने वालों के खिलाफ पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। इसके चलते झूठी एफआईआर दर्ज करवाने वाले लोगों के हौसले बुलंद हो रहे हैं। इससे पुलिस भी परेशान है और कोर्ट का समय भी जाया हो रहा है।

यह है कानून


दलित वर्ग के लोगों को प्रताड़ना से संरक्षण के लिए एससी-एसटी कानून बनाया। अधिनियम की उप धारा 18 के तहत आरोपित की अग्रिम जमानत का प्रावधान ही नहीं है और प्रकरण की जांच भी पुलिस उप अधीक्षक स्तर का अधिकारी ही करेगा। अदालत में चालान पेश होने के बाद ट्रायल भी जिला सेशन न्यायालय में ही चलेगी।


डीएसपी करते जांच


जानकारों का कहना है कि एससी-एसटी प्रकरण की जांच में गड़बड़ी की आशंकाएं भी कम होती हैं। चूंकि ऎसे मामलों में उप अधीक्षक स्तर के अधिकारी पड़ताल करते हैं। झूठी जांच करने पर धारा 4 के तहत जांच अधिकारी के खिलाफ ही कार्रवाई का प्रावधान है।

दलित प्रताड़ना के ये आरोप


अनादर सूचक कार्य करना।
भूमि परिसर में प्रवेश रोकना या पानी न भरने देना
बलात श्रम या बंधुआ मजदूरी करवाना
मतदान के अधिकार से वंचित रखना
मिथ्या, द्वेषपूर्ण तरीके से तंग करना
किसी महिला की लज्जा भंग करना
महिला का लैंगिक शोषण करना
दलित परिवार के उपयोग का पानी गंदा करना
निवास स्थान छोड़ने को मजबूर करना, लोक सेवक द्वारा उत्पीड़न
झूठी गवाही दिलाना

एक्सपर्ट व्यू : कानून का दुरूपयोग


पुलिस व कोर्ट में आने वाले प्रकरणों के लिहाज से तो यही लगता है कि एससी-एसटी कानून का खुलेआम दुरूपयोग हो रहा है। प्रकरण दर्ज हो गया, तो आरोपित की गिरफ्तारी निश्चित है, जिससे हर कोई व्यक्ति डरता भी है कि कानूनी पचड़े में न फंसे। हालांकि इससे दलित वर्ग के लोगों को हर किसी द्वारा डराने, धमकाने की घटनाओं पर भी अंकुश लगा है, जो सकारात्मक बदलाव को दर्शाता है। फिर भी झूठे प्रकरण दर्ज हो रहे हैं, यह चिंताजनक है। क्योंकि बेवजह बेगुनाहों की गिरफ्तारी होती है। झूठे प्रकरण दर्ज कराने वाले परिवादियों के खिलाफ भी पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए।
देवेंद्रसिंह राठौड़, वरिष्ठ एडवोकेट, राजसमंद

हां, झूठों पर करेंगे कार्रवाई


थानों में दर्ज होने वाले एससी-एसटी के प्रकरणों में कई झूठे निकले हैं। साठ फीसदी झूठे प्रकरणों के चक्कर में वास्तवकि पीडित को बेवजह न्याय के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। अब जो भी झूठी रिपोर्ट देगा, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए समस्त पुलिस अधिकारियों को विशेष निर्देश दिए जाएंगे। सत्येंद्र कुमार, जिला पुलिस अधीक्षक, राजसमंद

बहकाते हैं समृद्ध लोग


कानून दलित के लिए है, जो हर मायने में सही भी। कुछ समृद्ध लोगों द्वारा ही दलितों को बहका कर कानून का दुरूपयोग करवाया जा रहा है। यह भी सही है कि कई प्रकरण झूठे निकल रहे हैं, मगर इसके कई कारण हो सकते हैं। इस पर पुलिस को गहन जांच करनी चाहिए।
एसएल भाटी, जिला संयोजक, दलित मानवाधिकार अभियान, राजसमंद

लक्ष्मणसिंह राठौड़

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