मानवता शर्मशार
कोरोना संकट के बीच मानवता को शर्मशार करने वाला यह मामला जिला के गोला प्रखंड क्षेत्र के नावाडीह गांव का है। प्रवासी श्रमिक जितेंद्र साव ने अपने घर में फंासी का फंदा लगा कर जान दे दी। शुक्रवार को लोग नहीं जुटे, तो अंतिम संस्कार शनिवार तक टाल दिया गया। शनिवार सुबह भी शव को कांधा देने वाले चार लोग सामने नहीं आये। मृतक के भाई उमेश्वर ने लोगों से यहां तक मिन्नत की कि वह पैसे लेकर उसके भाई को कांधा दे, लेकिन इंसानियत इस कदर मर गयी है कि कोई इसके लिए भी तैयार न हुआ। थक-हारकर उमेश्वर अपने मामा अशोक साव एवं दशरथ साव, जो कोरांबे गांव के रहने वाले हैं, ने किराये पर एक ठेला लिया। उस पर जितेंद्र के शव को रखा और श्मशान घाट घसियागढ़ा ले गये।
जेसीबी से खुदवाया गड्ढा
श्मशान घाट में कोई कब्र खोदने वाला नहीं मिला। यहां 1500 रुपये देकर जेसीबी की मदद से कब्र खुदवाई गई और तब जाकर जितेंद्र का अंतिम संस्कार किया गया। उमेश्वर ने बताया कि ग्रामीणों ने नाई को भी साथ जाने से मना कर दिया था। काफी हाथ-पैर जोडऩे पर वह श्मशान घाट जाने के लिए तैयार हुआ। उमेश्वर ने बताया कि उसकी जाति के इस गांव में कम से कम 100 लोग हैं। अन्य जातियों के करीब 1000 से अधिक लोग गांव में रहते हैं।
कोरोना का भय
ऐसा माना जा रहा है कि कोरोना वायरस के खौफ के चलते लोग अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए। हालांकि, मृतक का कोरोना से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। बताया जा रहा है कि जितेंद्र साव ने गुरुवार की रात को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। उसके शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने शुक्रवार देर शाम परिजनों को शव सौंप दिया।