1400 किलोमीटर चला
दिल्ली में लॉक डाउन होने के कारण मजदूरी भी हाथ से चली गई। घर जाने के सारे रास्ते बंद हो गए। भूखा मरने की नौबत आ गई। भूख से मरने बेहतर गुड्डू ने जिंदगी की जंग में मोर्चा संभालने की ठान ली। उसकी यही जिजीविषा आखिरकार उसके लिए जिंदा रहने का वरदान साबित हुई। दिल्ली में जब मजूदरी और आवागमन पूरी तरह लॉक डाउन हो गया तो उसने तय कर लिया चलते चले जाना है, मंजिल कहीं तो मिलेगी ही। बस इसी आस में वह दिल्ली की रेल लाइन के सहारे पैदल ही निकल लिया।
मांग-मांग कर खाया
भूखे-प्यासे, हाल-बेहाल युवक ने जैसा जहां मिल गया, उससे गुजारा कर लिया। रास्ते में मांग-मांग कर खाया। कई जगह खाने के बजाए फटकार मिली। इससे भी उसका जीने की जिद कम नहीं हुई। बस चलता ही चला गया। वह करीब २५ दिन पहले इस अन्जान यात्रा के लिए रवाना हुआ था। करीब 70-80 किलोमीटर हर रोज पैदल चला। इस दौरान रात्रि को रेल पटरी के किनारे ही निढाल होकर गुढ़क जाता। नींद खुलने पर फिर वही यात्रा का सिलसिला शुरु हो जाता।
पहुंचा बड़कीपोना गांव
चलते-चलते आखिरकार जब वह रामगढ़ के चतरपुर प्रखंड के बड़कीपोना पहुंचा तो ग्रामीणों नजर उस पर पड़ी। ग्रामीणों ने उसकी हालत देखकर उसे खाना खिलाया। लगातार चलते रहने से उसके पैरों में छाले पड़ गए, शरीर सूख कर कृषकाय हो गया। ग्रामीण स्थानीय प्रशासन को उसकी मौजूदगी की सूचना दी। मौके पर पुलिस पहुंच गई। पुलिस उसे अपने साथ ले गई। पूछताछ में गुड्डू ने पुलिस को बताया कि वह मध्यप्रदेश का रहने वाला है। उसके पास ट्रेन की टिकट लायक भी रुपए नहीं बचे।
मध्यप्रदेश का रहने वाला
लॉकडाउन के कारण वह दिल्ली से पटरी के सहारे-सहारे चलकर यहां तक पहुंचा है। उसने पुलिस को बताया कि उसे यह भी पता नहीं था कि वह कहां पहुंचा है। कोरोना जांच के लिए उसे रामगढ़ के अस्पताल में ले जाया गया। जांच निगेटिव आने पर अब उसे रैन बसेरे में आसरा मिला है। जहां स्थानीय प्रशासन ने खाने-पीने का इंतजाम कर रखा है। अब जब लॉक डाउन हटेगा तभी गुड्डू मध्यप्रदेश में अपने घर जा सकेगा।