scriptतरबूज तो बहुत खाए होंगे, पर क्या कभी पीले रंग का तरबूज खाया है? | Watermelons may have eaten a lot, but ever eaten yellow watermelon | Patrika News

तरबूज तो बहुत खाए होंगे, पर क्या कभी पीले रंग का तरबूज खाया है?

locationरामगढ़Published: Jun 27, 2020 07:11:52 pm

Submitted by:

Yogendra Yogi

( Jharkhand News )आप बाजार आएं और तरबूज खरीद कर लाएं। घर आने पर तरबूज काटें और वह लाल के बजाए पीले रंग का (Yellow watermelon ) निकले तो एक बार तो चौंक जाएंगे। यह हकीकत में भी हो सकता है कि जो तरबूज खरीदा गया है वह लाल के बजाए पीले रंग का मीठा और स्वादिष्ट निकले। जी हां यह है ताइवान (Taiwan’s watermelon ) का तरबूज।

तरबूज तो बहुत खाए होंगे, पर क्या कभी पीले रंग का तरबूज खाया है?

तरबूज तो बहुत खाए होंगे, पर क्या कभी पीले रंग का तरबूज खाया है?

रामगढ़(झारखंड): ( Jharkhand News ) आप बाजार आएं और तरबूज खरीद कर लाएं। घर आने पर तरबूज काटें और वह लाल के बजाए पीले रंग का (Yellow watermelon ) निकले तो एक बार तो चौंक जाएंगे। यह हकीकत में भी हो सकता है कि जो तरबूज खरीदा गया है वह लाल के बजाए पीले रंग का मीठा और स्वादिष्ट निकले। जी हां यह है ताइवान (Taiwan’s watermelon ) का तरबूज। बाहर से यह साधारण तरबूज की तरह धारीदार हरे रंग का दिखाई देता है पर अंदर से इसका रंग पीला होता है। पीले रंग का यह तरबूज हर कहीं मयस्सर नहीं है। यदि इसे स्वाद लेना है तो झारखंड के रामगढ़ मे जाना होगा। यहां का एक किसान पीले रंग के तरबूज की खेती कर रहा है। अब यह तरबूज बिक्री के लिए बाजार में लाया गया है।

बागवानी से लगाव
यह कमाल किया है झारखंड की राजधानी रांची से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित रामगढ़ जिला के एक किसान राजेंद्र बेदिया ने। राजेंद्र बेदिया गोला प्रखंड के चोकड़बेड़ा गांव में रहते हैं। राजेंद्र बेदिया कहते हैं कि बागवानी और कृषि से उन्हें काफी लगाव है। बचपन से ही. ढाई एकड़ में आम की बागवानी की है। इस बगीचे में बहुफसलीय खेती करते हैं।

कभी सोचा भी न था
पीले तरबूज की खेती का प्रयोग करने वाले राजेंद्र ने इससे कमाई के बारे में सोचा ही नहीं। उन्होंने मात्र 10 रुपये प्रति किलो की दर से इसे बाजार में बेच दिया। उनका भतीजा बोकारो के फल कारोबारियों के पास इसके सैंपल लेकर गया, तो उसकी काफी डिमांड थी। तब तक तरबूज बहुत कम रह गया था। सो उन्होंने इसे बेचने से ही मना कर दिया। आसपास के जो भी लोग आते हैं, उन्हें यूं ही खाने के लिए दे देते हैं। अब तो तरबूज बचा ही नहीं। जो कुछ बचा है, उसकी बिक्री वह नहीं कर रहे।

परीक्षा तैयारी के साथ खेती
राजेंद्र की मानें, तो झारखंड में पहली बार ऐसा प्रयोग किया गया है. दो एकड़ के प्लॉट में विभिन्न फसलों के अलावा 15 डिसमिल जमीन पर तरबूज की खेती की। यहां साढ़े चार किलो से लेकर पांच किलो तक वजन का पीला तरबूज हो रहा है। उन्होंने बोकारो के व्यापारियों को अपना तरबूज सैंपल के तौर पर दिया है। स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद राजेंद्र ने प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी इसके साथ ही वह खेती में भी जुट गये। खेती में नये-नये प्रयोग करना उनका शौक है।

ताईवान का है बीज
राजेंद्र बेदिया ने बताया कि ई-कॉमर्स प्लेटफार्म बिग हाट के माध्यम से ताईवान से बीज मंगवाया ‘अनमोलÓ किस्म के 10 ग्राम बीज की कीमत 800 रुपये है। यानी यह बीज बाजार में 80,000 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है।10 ग्राम बीज को 15 डिसमिल जमीन पर बोया और उससे 15 क्विंटल पीले तरबूज की उपज हासिल की। यह तरबूज अनमोल हाइब्रिड किस्म का है। इसका रंग बाहर से सामान्य तरबूज की तरह हरा है, लेकिन काटने पर अंदर में गूदा लाल नहीं है। इस तरबूज का गूदा पीले रंग का है। यह बेहद मीठा और रसीला भी है। राजेंद्र कहते हैं कि लाल तरबूज के मुकाबले इसमें ज्यादा पोषक तत्व हैं। आसपास के जिलों के लोग उनके खेत में उगे तरबूज को देखने आ रहे हैं. इसका स्वाद चखना चाहते हैं. कई किसानों भी राजेंद्र के पास पहुंचे हैं, जो उनसे इस तरबूज की खेती के बारे में जानकारी लेना चाहते हैं.

रसायन का उपयोग नहीं
इसकी खेती में किसी प्रकार के रसायन का इस्तेमाल नहीं हुआ। कीटनाशक का छिड़काव भी नहीं किया गया। किसान राजेंद्र बताते हैं कि उन्होंने तरबूज की खेती पानी की क्यारी बनाकर ड्रिप सिस्टम से की। इसमें उन्होंने विदेश की टपक सिंचाई यानी बूंद-बूंद पानी के इस्तेमाल की पद्धति को अपनाया। इस पद्धति से पानी की बचत करके पौधों का विकास किया। इससे पानी की बर्बादी कम हुई। साथ ही पानी सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचा। माइक्रो इरीगेशन टपक सिंचाई और मल्चिंग पद्धति से खेती की। राजेंद्र को उम्मीद है कि अगर सही कीमत मिले, तो वह कम से कम 22 हजार रुपये तक कमा सकते हैं। यह लागत मूल्य से तीन गुणा अधिक होगा। राजेंद्र के खेत में पीले तरबूज की पैदावार से इलाके के लोग भी दंग हैं। वह टपक सिंचाई और मल्चिंग पद्धति से टमाटर, करेला एवं मिर्च की भी खेती कर रहे हैं।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो