नवाबों ने बनवाये थे गेट
स्टेट के दौरान नगर की सीमा के चारों तरफ आठ गेट तत्कालीन नबाब ने बनबाये थे। गेट के बरार से कोई अंदर प्रवेश न कर सके बाकायदा चार फिट चौड़ी बांसी लगवाई ताकि कोई भी नगर के अंदर इंट्री नही कर सके। जिसे भी नगर के अंदर नबाब साहब से मिलने या नगर में रहने वाले किसी सख्स से मिलना होता था तो गेट पर खड़े नबाब के सिपाही इसकी जानकारी उन्हें देते थे। जिनके यहां उन्हें जाना था। अंदर से परमीशन के बाद ही नगर के अंदर प्रवेश मिलता था। नबाब जब भी कहीं निकलते थे, तब उन्हें देखने के लिए लोग खड़े हो जाया करते थे। हलाकिं उस समय की पुलिस उन्हें मना करती थी कि आप यहां हट जाए लोग उनका कहा मानकर हट जाते थे। तमाम लोगों नबाब साहब की सवारी गेटों से निकलती हुई देखी तो वहीं तमाम लोग उनकी सवारी नही देख पाए।
उस दौर में आठ गेट हुआ करते थे
नबाब गेट, सराय गेट, पहाड़ी गेट, शाहाबाद गेट, बरेली गेट, नैनीताल गेट , बिलासपुर गेट ,राजद्वारा गेट, मोरी गेट, बाजिरिया हिम्मत खान गेट, खड़सार कोहिना गेट, मिष्टन गंज गेट।
रामपुर राजधानी थी
तन रामपुर राजधानी थी और यहां से आने जाने वाले का पूरा लेखा जोखा हुआ करता था। बिना लेखा जोखा के किसी को भी गेट के अंदर जाने ओर अंदर आने की कोई परमीशन नही थी।
सियासत की भेंट चढ़ गए
तमाम गेट सियासत की भेंट चढ़ गए तो अभी भी तमाम गेट अभी भी मौजूद हैं जो रामपुर में अपनी पहिचान के लिए जाने जाते हैं। हामिद अली खान जोकि तत्कालीन नबाब थे वह यहां की बड़ी इमारत जिसे रामपुर का किला कहा जाता है वहां नबाब दरबार लगाते थे। आज रजा लाइब्रेरी है। उस इमारत में बाहर बड़े और मजबूत विशाल गेट हैं जो अपनी मजबूती और सुंदरता के लिए जाने जाते हैं । उस वक़्त की नक्कासी ओर सागौन की लकड़ी आज भी यहां पर देखी जा सकती हैं। चार दरवाजे हैं जिसके एक पल्ले का वजन कम से कम 10 कुंतल होगा। कुल मिलाकर कहा जाए तो एक दरवाजा कम्प्लीट 20 कुंतल का होगा। हामिद मंजिल के ये दो दरवाजे 40 कुंतल लकड़ी के बने हैं कई कई कुंतल लोहा होगा।