पार्टी का जनाधार को कम होता देख और सरकार में शामिल रहने का खामियाजा सबसे अधिक आजसू पार्टी को उठाना पड़ा है, जिस कारण आजसू पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर आगामी 2019 चुनाव में राज्य की सभी 81 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया। हालांकि अभी आजसू पार्टी ने एनडीए या सरकार बाहर होने का फैसला नहीं लिया, लेकिन आने वाले समय में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आजसू पार्टी सरकार से भी अलग हो सकती है। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अभी तुरंत आजसू पार्टी सरकार से बाहर नहीं होगी, सरकार से बाहर होना होगा, चुनाव के कुछ पहले ही वह सरकार का दामन छोड़ेगी, फिलहाल आजसू पार्टी सरकार में ही शामिल रह कर संगठन की मजबूती के लिए जरूरी आवश्यक संसाधन जुटाने के प्रयास में जुटी है। वहीं आर्थिक संसाधन जुटाने की सारी जिम्मेवारी मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी पर है।
आजसू पार्टी का मानना है कि सरकार में शामिल होने के कारण सिल्ली और गोमिया विधानसभा उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी की हार हुई। उपचुनाव में पार्टी प्रमुख सुदेश महतो की हार से कार्यकर्त्ताओं का मनोबल काफी गिरा है, वहीं वर्ष2019 का चुनाव सुदेश महतो के साथ उनकी पूरी पार्टी के लिए राजनीतिक जीवन-मरण का सवाल होगा, लगातार तीसरे चुनाव में सुदेश महतो की हार हो जाती है, तो उनके राजनीतिक कैरियर पर ही ग्रहण लग सकता है। इस कारण आजसू पार्टी पूरी तरह से फूंक-फूंक कर कदम उठा रही है। वहीं आजसू पार्टी के दूसरे सबसे बड़े नेता चंद्रप्रकाश चौधरी को भी यह डर सता रहा है कि सरकार में रहने का खामियाजा उन्हें अगले चुनाव में अपने विधानसभा क्षेत्र में न भुगतना पड़े।
दूसरी तरफ आजसू पार्टी का यह कहना है कि वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के तालमेल के कारण आजसू पार्टी को कई सीटों से दावा छोड़ना पड़ना, इससे कम से कम पांच-छह ऐसी सीटें भी भाजपा के लिए छोड़नी पड़ी, जिन सीटों पर आजसू पार्टी के बैनर तले संगठन के नेताओं ने काफी काम किया था और अंत में टिकट नहीं मिलने के कारण वे दूसरी पार्टी से चुनाव लड़े, इनमें गोमिया से योगेंद्र महतो झामुमो टिकट पर चुनाव जीतने में भी सफल रहे।
वर्ष 2014 में एनडीए में शामिल घटक दल लोजपा के लिए भाजपा ने संतालपरगना की सीट छोड़ी थी, लेकिन इसका कोई फायदा पार्टी को नहीं मिला। बाद में सरकार में शामिल रहने के बावजूद सांगठनिक दृष्टिकोण से लोजपा कोई फायदा उठाने में पूरी तरह से असफल रही है। करीब चार वर्षां तक लगभग मृतप्रायः संगठन के प्रदेश अध्यक्ष बबन गुप्ता समेत दर्जनों पदाधिकारियों ने पिछले दिनों अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।
जदयू का पिछली बार भाजपा के साथ गठबंधन नहीं था, लेकिन इससे पहले जदयू भी एनडीए में शामिल रहा है और अब बिहार में भाजपा-जदयू की सरकार गठन के बाद झारखंड में भी दोनों दलों के बीच कुछ सीटों को लेकर समझौते की बात कही जा रही है। लेकिन जदयू के प्रदेश अध्यक्ष जलेश्वर महतो ने इससे इंकार करते हुए कहा कि पार्टी सभी विधानसभा सीटों पर अपने बलबूते चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है और झारखंड में भाजपा के साथ कोई समझौता नहीं होगा।