scriptविद्वानों ने किया आदिवासियों से जुड़े रहस्यों को उजागर, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा भी रहे मौजूद | Jharkhand News: Tribals Traditions And Beliefs Information | Patrika News

विद्वानों ने किया आदिवासियों से जुड़े रहस्यों को उजागर, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा भी रहे मौजूद

locationरांचीPublished: Jan 19, 2020 09:51:46 pm

Submitted by:

Prateek

Jharkhand News: केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जनजातियों का जीवन ही उनका दर्शन है। उन्होंने आज (Tribals Traditions) तक कोई (Tribals Beliefs) कानून नहीं बनाया है…
 

विद्वानों ने किया आदिवासियों से जुड़े रहस्यों को उजागर, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा भी रहे मौजूद

विद्वानों ने किया आदिवासियों से जुड़े रहस्यों को उजागर, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा भी रहे मौजूद

रांची: जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जु्न मुंडा ने कहा कि जनजातीय समाज के लोगों में सहचर जीवन व्यवस्था का महत्व है। यह इनके जीवन और दर्शन से जुड़ा हुआ है, इसलिए इससे हटकर कुछ सोचना वे पसंद नहीं करते। वर्ग और प्रजाति के आधार पर सभी अलग-अलग हैं, लेकिन कई अध्ययनों के आधार पर इस तरह की सहचर जैसी समानता सभी जगह के जनजातीय समाज में मिलती है।


अर्जुन मुंडा रविवार को रांची के आड्रे हाउस स्थित डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान और कल्याण विभाग द्वारा आयोजित जनजातीय दर्शन पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फेंस के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने आदि दर्शन स्मारिका का विमोचन भी किया।


केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जनजातियों का जीवन ही उनका दर्शन है। उन्होंने आज तक कोई कानून नहीं बनाया है। उन्होंने जरुरी बातों को अपने जीवन का अंग बना लिया, जनजातीय समाज ने दस्तावेज बनाना जरुरी नहीं समझा। तीन दिवसीय जनजातीय दर्शन पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के अन्तिम दिन आत्मा और पुनर्जन्म पर आधारित परिचर्चा हुई। इस सत्र में आदिवासियों के अपने समाज में आत्मा, मृत्यु और पुनर्जन्म के बारे में क्या धारणाएँ है। मृत्यु के बाद क्या होता है किस प्रकार अन्तिम क्रिया की जाती है इन सब पर विस्तार से विद्वानों ने अपने विचार रखे। अर्जुन राथवा ने बताया कि आदिवासी प्रकृति के रिवाजों और कानून को मानते है। वे किसी धर्म में बंध कर नहीं रह सकते। उन्होंने बताया कि आदिवासियों का त्योहार ऋतु और फसल से संबंधित होते है।


डॉ हरि उरांव ने आत्मा और पुनर्जन्म पर आधारित परिचर्चा में भाग लेते हुए मृत्यु के बाद आत्मा अपने प्रियजनों को समीप देखना चाहती है। मृत्यु के बाद दफनाने और जलाने की विधि होती है। श्राद्ध के पूर्व तक मृतक के लिए खाना पहुंचाया जाता है। आत्मा का घर मे प्रवेश कराया जाता है एवं उन्हें पूर्वजों की आत्मा के साथ जोड़ा जाता है।


अरुणाचल प्रदेश की डॉ जमुना बिनि ने निशि जाति के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि मृत्यु के बाद आत्मा अइमोग में चली जाती है। मृत्यु के बाद बूढ़ी महिलाओं द्वारा सिनिमर किया जाता है। इस दौरान मृत व्यक्ति द्वारा समाज के लिए किए गए कार्यों के बारे में गायन के रूप में व्याख्या की जाती है।


सत्र में अंतिम प्रवक्ता डॉ नीतिशा खलखो ने बताया कि मृत्यु के पश्चात आत्मा की आकृति आदम परछाई की तरह होती है। उन्होंने कहा कि अधिकतर आदिवासी समाज में स्वर्ग और नर्क की अवधारणा नहीं है। उनका मानना है कि जिन्होंने अच्छे कर्म करके मृत्यु को प्राप्त किया है वो सुखी रहते है। उसी प्रकार बुरे कर्म करने वाले प्रताड़ित होते है।


लिम्बु समुदाय स्वर्ग और नर्क के बारे में नही मानते न ही पुनर्जन्म के बारे में मानते है। इस सत्र में डॉ बुद्धि एल खंदक ने लिम्बु समुदाय के बारे में बताया। मेघालय के डॉ सुनील कुमार ने बताया कि मेघालय में जल, जंगल, जमीन के साथ-साथ पहाड़ और नदियों को भी पूजा जाता है। जनार्धन गोंड़ ने बताया कि गोंड़ समाज के लोगों का मानना है कि पूरे पृथ्वी के लोग एक है। वातावरण और जलवायु के कारण उनमे अंतर आ गया है।


असम से आईं दीपावली कुर्मी ने प्रकृति, मान्यताएं एवं कुलदेवता के बारे में बताया उन्होंने कहा कि कई आदिवासी समूह पेड़, जानवर और पंछी को अपने कुलदेवता मानते हैं और उन्हें नुकसान नहीं पहुचने देते। कृष्णा शाहदेव ने कहा कि जनजातीय समाज के लोग प्रकृति की सर्वोच्च शक्ति की पूजा करते हैं ये समानता और आपसी समन्वय पर विश्वास करते हैं। इस मौके पर कल्याण विभाग की सचिव हिमांडी पांडे ने कहा कि 10-15 फरवरी तक नेतरहाट में देशभर के जनजातीय लोक कलाकार जुटेंगे। उन्होंने उम्मीद जताई कि झारखंड के कलाकार भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराएंगे।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो