मेराल गांव में मांझी और मुंडा समुदाय के 70 परिवार रहते हैं। बारिश के इस मौसम में विषैले सांपों को पकड़ कर बांस के पिटारे में सुरक्षित रखा जा रहा है और गांव में मनसा पूजा ( mansa puja ) की तैयारी चरम पर है। मनसा पूजा पूर्वजों से चली आ रही मांझी और मुण्डा समाज की पारंपरिक पूजा है। यहां आस्था इस कदर है कि इन्हें मारा नहीं जाता। सांपों द्वारा डसने की भी जानकारी नहीं है। जीव-जन्तुओं का संरक्षण मांझी और मुण्डाओं की जीवनशैली बन गयी है।
इस पूजा में मनसा मां की प्रतिमा स्थापित की जाती है। पूजा के दौरान पूरे गांव के भक्त दो दिनों तक उपवास करते हैं। मनसा पूजा की तैयारी को लेकर विषधर को एकत्रित करने का कार्य आरंभ कर दिया गया है, गांव के आस-पास विचरण करने वाले सभी सांपों को भक्त आसानी से पकड़ लेते हैं। मनसा पूजा के दूसरे दिन आयोजित मनसा मेले में पकड़े गए सभी सांपों को बांस के पिटारे से निकाला जाता है। पिटारे से सांपों को जब निकाला जाता है तो चारों ओर बड़ी संख्या में ग्रामीण जुट जाते हैं और सापों के आकर्षक नृत्य सबका मन मोह लेती है।
सांपों की अलग अलग नृत्य कला देखने के लिए लोग दूर-दराज इलाके से पहुंचते हैं। मेले के बाद पकड़े गए सभी विषैले सांपों को पास के ही जंगलों में मंत्रोचार के बाद छोड़ दिया जाता है। कई दिनों तक आसपास विचरण करते सांपों से लोगों का सामना भी होता है किन्तु किसी के काटे जाने की जानकारी नहीं है। मनसा मेले की समाप्ति के बाद मनसा मां की प्रतिमा का विधि विधान पूर्वक तालाब में विसर्जन किया जाता है।