ललिताबाई दो वर्ष पूर्व अंबे माता आजीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ी थी। इसके पूर्व उनकी आर्थिक स्थिति खराब थी, रोजगार का कोई विशेष साधन भी नहीं था। खेती सिंचित नहीं होने के कारण फायदा नहीं हो रहा था लेकिन जब समूह से जुड़ी तो कुछ बेहतर करने की ठान ली। समूह को व्यवस्थित रूप से चलाया। तीन माह बाद उन्हे रिवाल्विंग फंड की राशि मिली।
मुर्गीपालन देखकर ललिताबाई ने भी मुर्गीपालन व्यवसाय अपनाने का सोचा और कार्य शुरू कर दिया। उनको मनरेगा योजना से मुर्गी शेड बनाने के लिए 51 हजार रुपए की राशि प्रदान की गई। बडे स्तर पर व्यावसायिक रूप से कार्य करने के लिए पूंजी की आवश्यकता थी, इसके लिए समूह एवं बचत राशि से 54 हजार रुपए ऋ ण लेकर मुर्गीपालन का कार्य शुरू किया था।
ललिताबाई ने अपने परिचित के माध्यम से हरियाणा से 3000 मुर्गी चूजें मंगवाए थे। उनके वजन में वृद्धि हुई तो बेचना शुरू कर दिया। मुर्गीपालन का कार्य उन्होंने विगत जुलाई माह में आरंभ किया था, अभी चालू माह तक उन्होंने लगभग 5 लाख रुपए की मुर्गियां विक्रय कर दी है, इससे उन्हें 1 लाख रुपए का लाभ मिला।
ललिताबाई की माने शुरुआती दौर में इधर-उधर आने-जाने में काफी खर्च हुआ। मुर्गियों का आहार बाहर दुकानों से खरीदा गया। जानकारी के अभाव में उस पर भी ज्यादा खर्चा आया। अब उसने पीसाई के लिए चक्की खरीद ली है जिससे घर पर ही मुर्गियों के लिए आहार तैयार कर देती है और लागत कम आने लगी है। एेसा करने से आगामी दिनों में मुर्गी विक्रय से मुनाफा और बढ़ जाएगा।
ललिता की मुर्गियां खरीदने के लिए उसके पोल्ट्री फार्म पर गांव में रतलाम जिले के बाजना के साथ ही राजस्थान के बांसवाड़ा, कुशलगढ़ आदि स्थानों से व्यापारी उसके पास आ रहे है। पहली ही बार में मुनाफा होने से उसका आत्मविश्वास भी बढ़ा है।