रेलवे स्टेशन पर 150 के करीब कुली है। इनमे से कुछ कुली तो परंपरा अनुसार चले आ रहे है। पहले पिताजी कुली थे, अब बेटा कुली है। इन कुलियों ने ही यात्रियों की संख्या अनुसार ट्रेनों के नाम रखे है। जैसे यात्री भले इंदौर-मुंबई सेंट्रल अवंतिका एक्सपे्रस कहते हो, लेकिन कुली अपनी आपस की बात में इस ट्रेन को हीरा कहते है। इसी प्रकार रेलवे ने नाम जयपुर पुणे एक्सपे्रस रखा है, लेकिन कुलियों के अनुसार इस टे्रन का नाम सोना है। इसके अलावा गाजीपुर बांद्रा साप्ताहिक ट्रेन का नाम चांदी रखा हुआ है।
इस तरह होता है नामकरण कुलियों के अनुसार ट्रेन का नाम रेलवे चाहे जो रखे, जिस तरह के यात्री मिलते है उस तरह से कुली ट्रेन का नाम रख लेते है। उदाहरण के लिए अवंतिका एक्सपे्रस का नाम हीरा इसलिए है, क्योंकि दोनों तरफ से आने वाली ट्रेन में उनको सामान चढ़ाने व उतारने के लिए यात्री मिलते है। ये अकेली एेसी ट्रेन है, जिसमे पूरे वर्ष कुली को यात्री उपलब्ध होते है। जबकि जयपुर पुणे ट्रेन का नाम सोना इसलिए है, क्योकि इसमे पुणे से आते वक्त स्लीपर में तो यात्री मिलते है, लेकिन एसी के यात्री अपना सामान खुद ही चाहे कितने वजन का हो, उठाना पसंद करते है।
भंगार भी है ट्रेन का नाम देश की सबसे वीआईपी ट्रेन रेलवे दिल्ली-मुंबई राजधानी ट्रेन को मानता हो, लेकिन कुलियो के अनुसार इस ट्रेन को वे भंगार मानते है। भंगार मतलब किसी काम की नहीं। एेसा क्यों, पुछने पर बताते है कि इस ट्रेन में कभी दो तो कभी चार यात्री रतलाम से मुंबई, दिल्ली जाते है। एेसे में उनके पास वजन के नाम पर उठाने के लिए कुछ अधिक रहता ही नहीं। कोई यात्री इसमे आता भी है तो कभी-कभी सामान उठाने को कहता है।
बेटियां करती कम भावताव वजन के मामले में भाव कौन अधिक करता है, इसका जवाब देते हुए कुली बताते है कि आमतोर पर परिवार के साथ जब व्यक्ति होता है तो घर की महिलाएं भावताव अधिक करती है, लेकिन बेटियां अकेली आ या जा रही हो तो वो भावताव कम करती है। सीधे कहती है, भैय्या इस डिब्बे में सामान चढ़ाना है।
सारी दुनिया का बोझ हम उठाते सारी दुनिया जब ट्रेन में सफर करती है तो उनका बोझ हम ही उठाते है। मंडल मुख्यालय से जो ट्रेन निकलती है उनमे हमारे अनुसार हीरा, सोना, चांदी से लेकर भंगार तक होती है। जैसे यात्री अधिक मिले तो बेहतर ट्रेन। अवंतिका सबसे बेहतर हीरा ट्रेन है।
– जफर खान, उपाध्यक्ष, कुली एसोसिएशन