ज्यादा सिंचाई वाले विकासखंडों में ज्यादा
जिले के छह विकासखंडों में भूजल सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों ने जो सर्वे किया है उसके अनुसार भूजल का बहुत ज्यादा दोहन उन विकासखंडों में ज्यादा हो रहा है जहां सिंचाई के साधन बहुत ज्यादा हैं। इन क्षेत्रों में सिंचित रकबा काफी अधिक होने से सर्दी और गर्मी के दिनों में यहां काफी मात्रा में पानी खींचकर सिंचाई की जाती है। इन क्षेत्रों में भूजल को रिचार्ज के स्ट्रक्चर भी बने हैं किंतु वे इतने पर्याप्त नहीं है कि इसकी पूर्ति कर पाए। वर्षा ऋतु में जो जल संग्रहण होता है उसके स्ट्रक्चर भी सीमित मात्रा में ही हैं जिससे पर्याप्त रूप से भूजल रिचार्ज नहीं हो पाता है।
जिले के छह विकासखंडों में भूजल सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों ने जो सर्वे किया है उसके अनुसार भूजल का बहुत ज्यादा दोहन उन विकासखंडों में ज्यादा हो रहा है जहां सिंचाई के साधन बहुत ज्यादा हैं। इन क्षेत्रों में सिंचित रकबा काफी अधिक होने से सर्दी और गर्मी के दिनों में यहां काफी मात्रा में पानी खींचकर सिंचाई की जाती है। इन क्षेत्रों में भूजल को रिचार्ज के स्ट्रक्चर भी बने हैं किंतु वे इतने पर्याप्त नहीं है कि इसकी पूर्ति कर पाए। वर्षा ऋतु में जो जल संग्रहण होता है उसके स्ट्रक्चर भी सीमित मात्रा में ही हैं जिससे पर्याप्त रूप से भूजल रिचार्ज नहीं हो पाता है।
सैलाना और बाजना में 100 फीसदी से कम
रतलाम के छह विकासखंडों में मात्र दो विकासखंड ही ऐसे हैं जिनमें भूजल के दोहन का 100 फीसदी से कम है। इसमें भी एक विकासखंड का रेशो राष्ट्रीयस्तर के मानक रेशो से नीचे हैं। यह विकासखंड बाजना है जहां भूजल का दोहन 75 फीसदी से कम है जबकि सैलाना का 75 से 100 फीसदी के बीच है। यह मानक रेशो से थोड़ा ज्यादा है। इसकी खास वजह है कि इस क्षेत्र में सिंचित क्षेत्र कम है और सिंचाई के साधन भी कम है। साथ ही यहां घनी आबादी वाले शहर या कस्बों की संख्या भी नहीं है जिससे लोगों को पीने के पानी के लिए बहुत ज्यादा ट्यूबवेल लगते हों।
रतलाम के छह विकासखंडों में मात्र दो विकासखंड ही ऐसे हैं जिनमें भूजल के दोहन का 100 फीसदी से कम है। इसमें भी एक विकासखंड का रेशो राष्ट्रीयस्तर के मानक रेशो से नीचे हैं। यह विकासखंड बाजना है जहां भूजल का दोहन 75 फीसदी से कम है जबकि सैलाना का 75 से 100 फीसदी के बीच है। यह मानक रेशो से थोड़ा ज्यादा है। इसकी खास वजह है कि इस क्षेत्र में सिंचित क्षेत्र कम है और सिंचाई के साधन भी कम है। साथ ही यहां घनी आबादी वाले शहर या कस्बों की संख्या भी नहीं है जिससे लोगों को पीने के पानी के लिए बहुत ज्यादा ट्यूबवेल लगते हों।