मुनिश्री तारकचन्द्रसागर महाराज ने करमचन्द उपाश्रय आराधना भवन पर नियमित प्रवचन में कर्म सिधांत की व्याख्या की। उन्होंने कहा की जीवन में जितने भी सुख दु:ख आते है वो सब हमारे कर्मों का परिणाम है। जो कर्म का सिद्धांत नहीं समझते वे दुखी और सुखी होते रहते है। मनुष्य जीवन अपना परमार्थ साधने के लिए मिला है। समझदार तो वह है जो अपने जीवन में आने वाले दु:ख के निम्मित का निवारण करते है। कर्म की प्रकृति, स्थिति और दशा को समझना जरूरी है। उपाश्रय पर प्रतिदिन सुबह 9.30 बजे से व्याख्यान जारी है।
आचार्यश्री रामेश ने समता कुंज में अमृत देशना देते हुए कहा कि हर व्यक्ति को सम्यत्व पर अपने अस्तित्व का ज्ञान होना चाहिए। व्यक्ति को मैं कौन हूं का बोध प्राप्त होने पर सम्यत्व की प्राप्ति होती है। शरीर और आत्मा को भिन्न-भिन्न है। आत्मा कभी जन्म नहीं लेती। आत्मा पहले थी, अभी है और हमेशा रहेगी। शरीर जड़ होकर नाशवान है। इस यथार्थ का बोध होना ही सम्यत्व है। आदित्य मुनि ने कहा कि आदमी की कद्र, कब्र में जाने के बाद होती है। महापुरुषों की पहचान भी जीते जी नहीं होती। आरंभ में तपस्वी परिवारों की और से अर्पिता, चहेती, वाणी श्रीश्रीमाल एवं सैजल चपलोत ने स्तवन प्रस्तुत किया। संचालन सुशील गौरेचा एवं महेश नाहटा ने किया।