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जाने कैसे,विश्व की सर्व समस्याओं का सर्वश्रेष्ठ निदान है महाव्रत का सम्पूर्ण पालन

locationरतलामPublished: Oct 29, 2018 11:01:14 pm

Submitted by:

Gourishankar Jodha

जाने कैसे,विश्व की सर्व समस्याओं का सर्वश्रेष्ठ निदान है महाव्रत का सम्पूर्ण पालन

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जाने कैसे,विश्व की सर्व समस्याओं का सर्वश्रेष्ठ निदान है महाव्रत का सम्पूर्ण पालन

रतलाम। जैसे बिना प्राण का देह होता है वैसे ही बिना प्रतिज्ञा के धर्म भी प्राण रहित ही होता है। देह का आभूषण ही व्रत महाप्राण है। महाव्रत का सम्पूर्ण पालन विश्व की सर्व समस्याओं का सर्वश्रेष्ठ निदान है। साध्वीश्री ने 75 वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की। उनके आध्यात्मिक संस्कारों की बदौलत ही उनकी तीन पुत्रियों ने भी दीक्षा स्वीकार करते हुए संयम जीवन को अपनाया है।
यह विचार आचार्यश्री जिनचन्द्रसागर सूरिश्वर एवं हेमचन्द्रसागर सूरिश्वर महाराज बन्धु बेलड़ी की निश्रा में साध्वीश्री विमलयशा महाराज को पंच महाव्रत की महाप्रतिज्ञा का उच्चारण विधान आचार्यश्री ने व्यक्त किए। गणिवर्य विरागचन्द्रसागर और मुनिश्री तारकचन्द्रसागर ने सम्पूर्ण विधान सम्पन्न करवाया। जयंतसेनधाम पर आयोजित कार्यक्रम में देशभर से आए उपधान आराधकों ने मंगल गीत और अक्षत से साध्वीश्री का सत्कार किया। जयंतसेन धाम की तपोभूमि पर साधना 47 दिनी उपधान तप अभिनव आयोजन निरंतर चल रहा है।

मनुष्य जीवन अपना परमार्थ साधने के लिए मिला
मुनिश्री तारकचन्द्रसागर महाराज ने करमचन्द उपाश्रय आराधना भवन पर नियमित प्रवचन में कर्म सिधांत की व्याख्या की। उन्होंने कहा की जीवन में जितने भी सुख दु:ख आते है वो सब हमारे कर्मों का परिणाम है। जो कर्म का सिद्धांत नहीं समझते वे दुखी और सुखी होते रहते है। मनुष्य जीवन अपना परमार्थ साधने के लिए मिला है। समझदार तो वह है जो अपने जीवन में आने वाले दु:ख के निम्मित का निवारण करते है। कर्म की प्रकृति, स्थिति और दशा को समझना जरूरी है। उपाश्रय पर प्रतिदिन सुबह 9.30 बजे से व्याख्यान जारी है।

आत्मा कभी जन्म नहीं लेती-आचार्यश्री रामेश
आचार्यश्री रामेश ने समता कुंज में अमृत देशना देते हुए कहा कि हर व्यक्ति को सम्यत्व पर अपने अस्तित्व का ज्ञान होना चाहिए। व्यक्ति को मैं कौन हूं का बोध प्राप्त होने पर सम्यत्व की प्राप्ति होती है। शरीर और आत्मा को भिन्न-भिन्न है। आत्मा कभी जन्म नहीं लेती। आत्मा पहले थी, अभी है और हमेशा रहेगी। शरीर जड़ होकर नाशवान है। इस यथार्थ का बोध होना ही सम्यत्व है। आदित्य मुनि ने कहा कि आदमी की कद्र, कब्र में जाने के बाद होती है। महापुरुषों की पहचान भी जीते जी नहीं होती। आरंभ में तपस्वी परिवारों की और से अर्पिता, चहेती, वाणी श्रीश्रीमाल एवं सैजल चपलोत ने स्तवन प्रस्तुत किया। संचालन सुशील गौरेचा एवं महेश नाहटा ने किया।
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