ऐसे ही एक परिवार ने अपने समाज की नातरे की परंपरा को पीछे छोड़ते हुए सालभर से घर में बैठी पुत्री का पुनर्विवाह करके समाज के सामने मिसाल पेश की है। उनकी समाज को बदलने वाली अच्छी पहल का समाजजनों व हर परिचित ने स्वागत किया।
रतलाम। भारत जैसे परंपरावादी देश में अब हर समाज वर्षों से चल रही कुप्रथाओं और गलत परंपराओं को दूर कोसों दूर छोड़़ता जा रहा है। ऐसे ही एक परिवार ने अपने समाज की नातरे की परंपरा को पीछे छोड़ते हुए सालभर से घर में बैठी पुत्री का पुनर्विवाह करके समाज के सामने मिसाल पेश की है। उनकी समाज को बदलने वाली अच्छी पहल का समाजजनों व हर परिचित ने स्वागत किया। खास बात यह है कि कोर्ट मैरिज के लिए दोनों परिवारों ने उस अहम दिन को चुना जिस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था। नवविवाहिता जोड़ा रजिस्ट्रार कार्यालय में प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद आंबेडकर सर्कल पर बाबा साहेब की प्रतिमा पहुंचकर आशीर्वाद लिया। फिर दोनों ने बौद्ध धर्म के अनुसार एक-दूसरे को अंगूठी पहनाकर परिवार के सामने रस्म पूरी की।
ऐसे हुई इसकी शुरुआत
रतलाम निवासी कन्हैयालाल परासिया की पुत्री ममता का तीन-चार साल पहले रीति-रिवाज के साथ रतलाम में ही विवाह किया था। किसी कारण से यह शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चली और सालभर से पुत्री ममता उनके साथ रहने लगी और विधिवत तलाक हो गया। इसके बाद उनकी साली के लड़के और प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े जगदीश चौहान ने ममता के पुनर्विवाह की बात मौसा कन्हैयालाल के सामने रखी। इस पर परिवार में विचार-विमर्श के बाद उन्होंने सहमति दे दी, तब शुरू हुआ लड़का ढूंढने की प्रक्रिया शुरू हुई जो झाबुआ जिले के रायपुरिया में जाकर जगदीश मेहसन पिता अंबाराम मेहसन पर समाप्त हुई। जगदीश यहां कैथोलिक मिशन मोहन कोट में शिक्षक के पद पर पदस्थ हैं। दोनों परिवारों में चर्चा चली और बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा बनाए संविधान के लागू होने के दिन यानि 26 नवंबर को विवाह करने की तारीख तय की। शनिवार को दोनों परिवार रजिस्ट्रार कार्यालय पहुंचे और इनकी मौजूदगी में वर जगदीश मेहसन और वधु ममता ने विधिवत कानूनी रूप से पति-पत्नी के रूप में नया जीवन शुरू किया।
समाज में एक नई शुरुआत की
नातरे की परंपरा से हटकर समाज को नई दिशा देने और इसकी शुरुआत अपने घर से करने के लिए मुझे यह प्रेरणा अजाक्स के जिला सचिव चंद्रशेखर लश्करी से मिली। उन्होंने इस कार्य में काफी मदद की और इसे अंजाम तक पहुंचाया। मुझे लगता है दूसरे परिवारों को भी इसी तरह आगे आना चाहिए।
जगदीश चौहान, ममता का भाई
अच्छी पहल की परिवार ने
नातरे की परंपरा से किसी भी लड़की या युवती को जीवनभर कुछ सुनने को मिलता था लेकिन अनुसूचित जाति से जुड़े परासिया परिवार ने परंपरा से हटकर जो पहल की है, वह प्रगतिशील समाज होने की निशानी है। मैंने तो इन्हें केवल मार्गदर्शन दिया जिसे इस परिवार ने आगे बढ़ाया।
चंद्रशेखर लश्करी, सचिव, अजाक्स संगठन