जिस जिला पंचायत उपाध्यक्ष डीपी धाकड़ उर्फ दुर्गाप्रसाद धाकड़ को कोर्ट ने धोखाधड़ी के जिस मामले में सजा सुनाई है उसकी कहानी काफी रोचक है। महापौर सुनीता यार्दे के यार्दे नर्सिंग होम में डीपी बतौर कंपाउंडर के रूप में 1992-93 में काम करने आया था। उस समय डीपी के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। डॉ. उदय यार्दे के पिता और महापौर डॉ. सुनीता यार्दे के ससुर डॉ. मधुकर यार्दे ने उसे अपने यहां काम पर रखा तो पूरी इमानदारी और तल्लीनता से धाकड़ ने काम दिया। उस समय आयु करीब 20-22 साल की थी। उसने यार्दे परिवार का विश्वास हासिल किया तो यार्दे परिवार ने उस पर इतना विश्वास किया कि रहने के लिए रतलाम में ही मकान दिलवा दिया। यही नहीं उसे वाहन भी उपलब्ध करवाया। वह नर्सिंग होम से लेकर उनके खेत तक संभालने लगा था। इसी इमानदार छवि के सहारे उसने साजिश रची, वह धीरे-धीरे सामने आई। उसने परिवार के साथ बड़ी धोखाधड़ी को अंजाम दे दिया।
कोर्ट में साबित हुआ अपराध
डॉ. यार्दे परिवार के अनुसार कंपाउंडरी करने के साथ ही गांवों में परिवार की जमीन की देखभाल का काम भी डीपी को ही सौंप रखा था। इसमें भी उसने उस समय पूरी इमानदारी से काम किया लेकिन ट्रैक्टर के फर्जी बिक्री अनुबंध करके कहीं चलाने और उसके बदले आने वाली राशि हजम कर जाने का मामला सामने आने के बाद यार्दे परिवार को बड़ा झटका लगा। उन्हें इस बात पर विश्वास भी नहीं हुआ कि उनके विश्वस्नीय धाकड़ इतना बड़ा धोखा कर दिया। परिवार के मुखिया डॉ. उदय यार्दे ने बताया कि हमने उससे कोई भेदभाव नहीं रखा और न ही उसकी इमानदारी पर कभी कोई शक किया लेकिन जो किया वह बहुत गलत किया था। वे कोर्ट में गए थे और न्याय पर पूरा भरोसा था जो अंतत: उन्हें डीपी धाकड़ को सजा के रूप में मिला।
डॉ. यार्दे परिवार के अनुसार कंपाउंडरी करने के साथ ही गांवों में परिवार की जमीन की देखभाल का काम भी डीपी को ही सौंप रखा था। इसमें भी उसने उस समय पूरी इमानदारी से काम किया लेकिन ट्रैक्टर के फर्जी बिक्री अनुबंध करके कहीं चलाने और उसके बदले आने वाली राशि हजम कर जाने का मामला सामने आने के बाद यार्दे परिवार को बड़ा झटका लगा। उन्हें इस बात पर विश्वास भी नहीं हुआ कि उनके विश्वस्नीय धाकड़ इतना बड़ा धोखा कर दिया। परिवार के मुखिया डॉ. उदय यार्दे ने बताया कि हमने उससे कोई भेदभाव नहीं रखा और न ही उसकी इमानदारी पर कभी कोई शक किया लेकिन जो किया वह बहुत गलत किया था। वे कोर्ट में गए थे और न्याय पर पूरा भरोसा था जो अंतत: उन्हें डीपी धाकड़ को सजा के रूप में मिला।