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धैर्य से सुधर जाते है बिगडे हुए काम

locationरतलामPublished: May 27, 2020 04:34:57 pm

Submitted by:

Ashish Pathak

कोरोना के इस संकट काल में हर मानव को धैर्यशाली बनकर हर समस्या का समाधान खोजना चाहिए। अधीरता समस्या है और अनेक समस्याओं की जननी है, जबकि धैर्य से हर समाधान मिलता है और समाधान भी सकारात्मक व सृजनात्मक होता है। जीवन की इस लम्बी यात्रा में धैर्य जैसे महान साथी को छोडकर चलना भयंकर भूल है।

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रतलाम. कोरोना के इस संकट काल में हर मानव को धैर्यशाली बनकर हर समस्या का समाधान खोजना चाहिए। अधीरता समस्या है और अनेक समस्याओं की जननी है, जबकि धैर्य से हर समाधान मिलता है और समाधान भी सकारात्मक व सृजनात्मक होता है। जीवन की इस लम्बी यात्रा में धैर्य जैसे महान साथी को छोडकर चलना भयंकर भूल है। संसार में यह भूल जिससे नही होती, वह महान बन जाता है। अधीरता जहां दोष है, वही धैर्यशीलता गुण है। धैर्य की धरती पर ही सहिष्णुता की पौध लहलहाती है। जिसके जीवन में धैर्य नहीं होता, वह हर कदम पर आंसू बहाता है।
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यह बात शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, परम श्रद्धेय, आचार्यप्रवर 1008 विजयराज ने कही। जैन कालोनी स्थित कुशल भवन में विराजित आचार्यश्री ने गुरू की महिमा पर धर्मानुरागियों को प्रसारित प्रेरक संदेश में कहा कि धैर्यता जीवनगत दुर्बलताओं और विषमताओं से मुक्त होने की साधना है। धैर्य उन्नति का प्रतीक है, जो कष्टों और संकटों को धैर्यपूर्वक सह लेता है। वह हर परीक्षा में उत्तीर्ण होे जाता है। कठिनाईयों और बाधाओं को देखकर अपना धैर्य छोड देना और सत्य पथ से विचलित हो जाना कायरता की निशानी है। तन से भले ही व्यक्ति मजबूत हो, मगर जो मन से कमजोर होते है, वो जल्दी अधीर हो जाते है। अधीर व्यक्ति ही परितप्त होते है।
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परीक्षण विपत्तिकाल में होता

उन्होंने कहा कि किस व्यक्ति का धैर्य कितना परिपक्व है, इसका परीक्षण विपत्तिकाल में होता है। विपत्ति चाहे छोटी हो या बडी सभी हमारे धैर्य के परीक्षण का क्षण होती है। धैर्यशाली व्यक्ति विपत्ति के समन्दर को पार कर लेता है। व्यक्ति अगर हर स्थिति को धैर्य से संभालता जाए, तो कोई भी अवांछनीय घटना नहीं घटती। धैर्य से डावांडोल हो जाने पर अप्रिय घटनाओं के दौर से गुजरना पडता है। सारी अप्रियताएं अधीरता की परिचायक होती है।
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धीर-वीर-गंभीर होते

आचार्य ने कहा कि कष्ट के समय जो धैर्य नहीं रख पाता, वह अहिंसा की साधना भी नहीं कर पाता। अधीर व्यक्ति हड़बड़ाहठ में हिंसा पर उतारू हो जाता है, जो उसके जीवन के लिए खतरनाक बन जाती है। अहिंसक साधक जितने भी है, वे धीर-वीर-गंभीर होते है। धैर्य शक्ति का विकास व्यक्ति के संकल्प पर आधारित है। संकल्पवान व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर घबराता नहीं, अपितु वह डटकर उनका सामना करता है और विजयी होता है। धैर्य में एक ऐसी शक्ति होती है, जो हर असफलता को सफलता की पृष्ठभूमि मानकर चलती है। धैर्य रखने से ही हमारा धर्म उत्कृष्ठ कोटि का बनता है। जितने मंत्र, तंत्र, यंत्र और विधाएं सिद्ध होती है, उसके पीछे धैर्य का मजबूत हाथ होता है। अधीर व्यक्ति का आत्म विश्वास कमजोर होता है, उसे ना ईश्वर पर विश्वास होता है, ना खुद पर आत्म विश्वास होता है। यही कारण है कि वह सफलता के करीब पहुंचकर असफल हो जाता है।
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IMAGE CREDIT: Patrika
सकारात्मक होता है धैर्य का भाव
आचार्य ने कहा कि धैर्य का भाव सकारात्मक होता है। इसमें निराशा, कुंठा और आलस्य को कोई स्थान नहीं होता। व्यक्ति धेर्य से अपने हर बिगडे काम को सुधारता है। धैर्य का विकास और अवकाश जहां होता है, वहां सच्चे सुख और शांति की प्राप्ति होती है। पद, पैसा, प्रसिद्धि और प्रख्याति को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को कभी अधीर नहीं होना चाहिए। इन्हें पाने के लिए अधीरता काम नहीं आती, वरन धैर्य पूर्वक की गई पुण्य की वृद्धि काम आती है। इष्ट-सिद्धि और अनिष्ट निवृत्ति बिना धैर्य से नहीं मिलती। मन की चंचलता शांत हो और इंन्द्रियों की चपलता पर विराम हो, तभी धैर्य की साधना में आगे बढा जा सकता है।
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