यहां चारों ओर भरा पड़ा है सफेद सोना
जावरा मंडी में जगह की कमी पड़ी, किसान हो रहे परेशान

जावरा। सफेद सोना कहे जाने वाली लहसुन की उपज की क्षेत्र में बंपर आवक हुई है। इसके साथ ही जावरा मंडी लहसुन की उपज की बिक्री के लिए मानी जाती है। ऐसे में दूर-दराज से किसान यहां लहसुन लेकर पहुंचते हैं। इसके चलते वर्तमान में सीजन के दौर में मंडी में लहसुन की बंपर आवक हो रही है। आलम यह है कि मंडी में ६ से ७ हजार कट्टे बिक रहे हैं, लेकिन यहां आवक २० हजार कट्टों से अधिक हो रही है। इनके साथ खेरची भी बड़ी समस्या का कारण बने हुए हैं।
हर बार सीजन के दौर में यहीं हालात बनते हैं, लेकिन कोई व्यवस्था सुधारने के लिए कवायद करने को तैयार नहीं है। मंडी अरनीयापीथा में शिफ्ट होने के बाद तो मंडी के जवाबदारों ने जावरा की लहसुन मंडी को अपने हाल पर छोड़ दिया है। ऐसे में बंपर आवक के इस दौर में मंडी में कई दिन तक किसान रुकने को मजबूर हो रहे हैं। शनिवार और रविवार को अवकाश होने के कारण सोमवार को यह स्थिति बनी। रविवार रात से गेट के बाहर डटे किसानों को लहसुन मंडी के अंदर ले जाने के लिए सेामवार को भी दिनभर इंतजार करना पड़ा। पहले ही लहसुन के कम दाम किसानों को रुला रहे हैं और यहां की अव्यवस्था और इंतजार किसानों की परेशानी बढ़ा रहा है। मंडी के बाहर लगे जाम के कारण आवाजाही करने वाले लोगों को परेशान होना पड़ा।
.. और जब इंतजार में ही आ गई नींद
रविवार शाम से ही मंडी के बाहर किसानों के आने का दौर शुरू हो गया था, जिसे जगह मिले वह तो अपना वाहन प्रांगण में ले जाने में सफल हुआ। बाकी किसान रात से ही यहां कतार में खड़े होकर अंदर जाने के लिए गेट खुलने का इंतजार कर रहे हैं। सुबह ८ बजे से ही गेट बंद हैं, यानी सोमवार को मंडी के गेट खुले ही नहीं, फिर भी प्रांगण के अंदर जो माल था, वह भी नहीं बिका। कुछ किसानों को अंदर जाने का मौका तो मिला, लेकिन वहां भी पहले से कई किसानों की लहसुन नीलामी के इंतजार में पड़ी है। ऐसे में रातभर के बाद दिनभर गेट के बाहर कई घंटों तक इंतजार से थक हार कर वाहनों में ही सोने को मजबूर हो गए। लहसुन भरे टैक्टर-ट्रॉलियों व अन्य वाहनों में किसान सोते नजर आए।
सालों से यही हालात, कोई भी अधिकारी पूछता तक नहीं किसानों के हाल
ऐसा नहीं की मंडी में सीजन के दौर में पहली बार लहसुन की बंपर आवक हो रही है। पिछले एक माह से लगातार लहसुन की आवक मंडी में बढ़ रही है। नीलाम धीरे चलने, कम व्यापारियों के लहसुन खरीदी में भाग लेने और नीलाम को नहीं बढ़ाने की स्थिति में किसान इसका खामियाजा खुले आसमान के नीचे रात बिताकर और आर्थिक भार झेलकर भुगत रहे हैं। पिछले चार-पांच सालों से यही हालात हैं। हर बार अन्नदाताओं को यहां परेशान होना पड़ता है, लेकिन मंडी के जवाबदार लहसुन लेकर आने वाले किसानों को सुविधा और व्यवस्था के नाम पर यहां कुछ नहीं दे पा रहे हैं। किसानों के बीच कोई जवाबदार आकर कभी परेशानी जानने तक की कोशिश नहीं
करते हैं।
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