खास बात ये है कि, रतलाम एक ऐसा शहर है, जहां माता तीनों रूपों में विराजती हैं। इनमें समय के अनुसार, सुबह, दोपहर और शाम को अलग अलग मां माता कालिका, मां चामुंडा और मां अन्नपूर्णा के दर्शन किये जा सकते हैं। इस मंदिर में मां कालिका के साथ मां चामुंडा और मां अन्नपूर्णा विराजती हैं। रतलाम ही नहीं बल्कि पूरे मालवा में यह आस्था का बड़ा केंद्र है।
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सैकड़ों साल पहले रतलाम राजवंश द्वारा हुई मंदिर की स्थापना
बताया जाता है कि, यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है, जिसकी स्थापना रतलाम राजवंश के समय की गई थी। तब से अब तक मां कालिका शहरवासियों की रक्षा कर रही हैं।नवरात्रि के समय भक्तों की भीड़ यहां चैत्र, गुप्त और शारदीय, यानी तीनों नवरात्रि के समय दर्शन के लिए उमड़ती है। मां के दरबार में श्रद्धालुओं की लंबी लंबी कतार दिखाई देती है।
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हर मनोकामना होती है पूरी
मातारानी के दर्शन के लिए खासतौर पर महिलाएं बड़ी संख्या में यहां पहुंचती हैं। मां कालिका का विशेष श्रृंगार भक्तों के आकर्षण का केंद्र होता है। खास बात ये कि, ये पहला ऐसा मंदिर है, जहां नवरात्रि में सुबह 4 बजे मां की आराधना, गरबा के साथ की जाती है। मंदिर के पास एक अष्ट कोणीय तालाब भी है, जिसकी दीपों के साथ सुंदरता देखते ही बनती है। ऐसी मान्यत है कि, यहां से मां का आशीर्वाद लेने पर हर मनोकामना पूरी होती है।