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जाने क्यों दिगम्बर जैन मुनि ने कहा इस समाज से सीखो ये कला

locationरतलामPublished: Oct 05, 2018 12:44:01 pm

Submitted by:

Gourishankar Jodha

जाने क्यों दिगम्बर जैन मुनि ने कहा इस समाज से सीखो ये कला

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जाने क्यों दिगम्बर जैन मुनि ने कहा इस समाज से सीखो ये कला

रतलाम। एक समाज ऐसा है जिसमें सहयोग और संरक्षण की भावना कूट-कूट कर भरी है। इसीलिए ये आज आर्थिक, सामाजिक रुप से तो संपन्न है ही साथ ही राजनीतिक क्षेत्र में भी पावरफूल माने जाते है। कोई भी धर्म या सम्प्रदाय अगर संरक्षण या सहयोग की सीख देता है तो उसे तुंरत ग्रहण कर लिया जाना चाहिए और ऐसा ही करता है सिंधी समुदाय। यह कहना दिगम्बर जैन मुनिश्री प्रमाणसागर महाराज का। उन्होंने चातुर्मासिक धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपस्थित गुरूभक्तों को बताया कि संरक्षण की सीख सिंधी समाज से लो।
धर्म समाज को अनुशासित करता है और समाज धर्म को संतुष्ट करता है। धर्म के माध्यम से परिवार, समाज और राष्ट्र के साथ ही अभावग्रस्त व्यक्ति का सहयोग और उसके प्रति समर्पण की भावना ही सच्चे धर्मी और धर्मात्मा की पहचान है। सहयोग और समादर करके कभी गिनाओं मत परमार्थ करो मगर उसका बखान मत करो। अभावग्रस्त की पूजा से व्यक्ति पूजनीय हो जाता है। इसलिए जो समर्थ है वो असमर्थ को सहयोग करे। यह विचार मुनिश्री प्रमाणसागर महाराज ने गुरुवार को लोकेंद्र भवन पर चातुर्मासिक धर्मसभा में कहा। मुनिश्री ने कहा कि सहयोग करो तो प्रेम बढऩे लगेगा।
सबसे पहले यह सोचना है कि हम जैन है
मुनिश्री ने कहा कि वीणा में अनेक तरह के तार अलग.अलग होते है मगर जब उन्हे स्वर का रुप दिया जाता है तो सुमधुर हो जाते है। इसी तरह समाज को संगठित करने का प्रयास हर दम किया जाना चाहिए। हमारा समाज मंदिर-उपाश्रय का हो या बात दिगम्बर व श्वेताम्बर की हो। मगर सबसे पहले हमें ये सोचना है कि हम जैन है और जैन समाज के संगठन को हम इतना मजबूत बनाएगें कि चारों तरफ हमारी एकता का भी उदाहरण दिया जाए।
कर्मों का फल हर हाल में मिलता है-आचार्यश्री रामेश
समता कुंज में अमृत देशना के दौरान आचार्यश्री रामेश ने कहा कि कर्मों का फल हर हाल में मिलता है। कर्मों से मुक्त नहीं हुआ जा सकता, हर व्यक्ति को इन्हें भोगना पड़ता है। 23 तीर्थकरों के कष्ट एक तरफ और भगवान महावीर के कष्ट एक तरफ रहे है, लेकिन भगवान महावीर ने कभी शिकायत नहीं की। उन्हें साढ़े बारह वर्ष तक कर्म भोगना पड़े। महावीर ने पूर्व जन्म में दास के कानों में कीले ठोके थे, उसका फल भी उन्हें प्राप्त हुआ। व्यक्ति को पाप और पुण्य दोनों का फल मिलता है। इसके लिए किसी को दोषारोपण नहीं करना चाहिए। चातुर्माक संयोजक महेंद्र गादिया ने बताया कि इस मौके पर प्रशममुनि, गौतममुनि, महासती रोनकश्री ने भी संबोधित किया। तपस्वी परिवारों की और से पारसमल चिप्पड़, सुरेन्द्र बोरदिया एवं बाफना परिवार की बहु-बेटियों ने विचार रखे। संचालन विनोद मेहता एवं महेश नाहटा द्वारा किया गया।
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