ज्ञापन में बताया कि प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र की हजारों एकड़ भूमि का अधिग्रहण एक्सप्रेस वे के लिए किया जा रहा है। केंद्र शासन द्वारा इसके लिए शासकीय दर का मात्र दो गुना मुआवजा दिया जा रहा है। जबकि उक्त जमीन का बाजार भाव शासकीय दर से छह से आठ गुना है। सैकड़ों वर्षों से भूमि सीचने वाले हजारों किसानों का आर्थिक एवं मानसिक शोषण विकास के नाम पर होने जा रहा है। किसानों को जमीन की कीमत के साथ परंपरागत भूमि से बेदखली का हर्जाना भी देना चाहिए।
सैलाना विधायक ने बताया कि अन्य राज्य इसी राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए चार से छह गुना मुआवजा दे रहे है। हमारी मांग है कि जमीन का मुआवजा मप्र के किसानों को भी चार गुना दिया जाए। कम मुआवजे से आदिवासियों में काफी आक्रोश है। एेसे में उक्त प्रोजेक्ट में रूकावट न आए उसके लिए आदिवासी को उनका हक मिले एेसे निर्देश दिए जाए। वहीं सिंचित क्षेत्र की असिंचित मानने व दो गुना मुआवजे के स्थान पर चार गुना मुआवजा नहीं मिलने पर संघर्ष जारी रहने की बात कही।
नहरों से सिंचित आदिवासी गांव सैलाना क्षेत्र के बावड़ी, नाल, सागला खो, खेरखूंटा, पुनापाड़ा, कारोलिया व रावटी क्षेत्र के डूंडी, हाड़ाखो, मौलावा, बीड़, भीमपुरा, भेतिया, खेरिया, रुंडी, खेड़ी, देवपाड़ा, सांगला का माल, गंगाय का पाड़ा, महुड़ी का माल, मरगुल को असिंचित मानकर शासकीय दर तय की जा रही है, जबकि इन सारे गांव की भूमि सिंचित है। कलेक्टर ने ज्ञापन लेने के दौरान सिंचित को असिंचित बताने के मामले की जांच की बात कही है।