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Fathers Day: आपातकाल में जेल गए, लेकिन बच्चों की बना दी जिंदगी

locationरतलामPublished: Jun 17, 2018 10:49:54 am

Submitted by:

Ashish Pathak

Fathers Day: आपातकाल में जेल गए, लेकिन बच्चों की बना दी जिंदगी

Fathers Day

Fathers Day In Ratlam News

रतलाम। पिता शब्द अपने आप में पूर्ण है। बेटा हो या बेटी, पिता शब्द से सुरक्षा का भाव होता है। आज विश्व पिता या यूं कहे की फॉदर्स डे है। हर पिता अपने बच्चों के लिए हीरो होता हे, लेकिन समाज में कुछ पिता एेसे भी होते है, जो अलग कार्य करके अपने बच्चों के लिए पूरी जिंदगी लगा देते है। फॉदर्स डे पर एक एेसे ही पिता के कडे़ संघर्ष की दास्तान है जिन्होंने परिवार को खुशी देने के लिए पेपर बांटने से लेकर बिजली की खराबी सुधारने का कार्य भी किया। इतना ही नहीं, इमरजेंसी के दौरान जेल भी गए, लेकिन बच्चों में संस्कार के बीज बोने में कामयाब हुए। आज इनके बच्चे चार्टेड अकाउंटेंट है। हम बात कर रहे है शहर के प्रकाश गुगलिया की।
इनके बेटे मनीष व श्वेता गुगलिया दोनों सीए भले अपनी कड़ी मेहनत के दम पर है, लेकिन वे मानते है कि इसके लिए पे्ररणा उनको पिता से ही मिली। वे कहते है कि पिता ने जो पसीना बहाया, ये उसी का नतीजा है कि हम सफल है। सर्दी हो या बारिश, सुबह जल्दी उठकर जब पापा पेपर बांटने जाते थे तब समझ नहीं आता था कि क्यों जाते है, आज जब कड़ाके की सर्दी में घर में अखबार आता है तो उस मेहनत के साथ किए गय्ए संघर्ष को समझ पाते है।
सिर्फ हायर सेकेंडरी तक पढ़ पाए

सीए मनीष बताते है कि पिता परिवार की मजबूरी के चलते सिर्फ हायर सेकेंडरी तक पढ़ पाए। लेकिन परिवार को संभलने में उन्होने पूरा जीवन लगा दिया। परिवार की आर्थिक हालात बेहतर नहीं थी। घर चलाने के लिए पेपर ब्रिक्री की व हॉकर बन गए। इससे भी अधिक आय नहीं हुई तो बिजली उपकरण में होने वाली खराबी को सुधारने का कार्य शुरू किया। जब दो बेटियों व एक बेटे के साथ पत्नी को पालने के लिए रुपए कम पडऩे लगे तो और मेहनत की। इसी बीच इमरजेंसी लगने पर 18 माह तक जेल में भी रहे। एेसे में मां ने सिलाई सीखी व घर को चलाया।
ऋण मिला तो खोली टेंट की दुकान

जेल से बाहर आने पर एकदम से कही कार्य नहीं मिल रहा था। मीसाबंदी होने के कारण 25 हजार रुपए तक का कर्ज मिला तो टेंट की दुकान खोल ली। इससे भी बात नहीं बनी तो पंखे की फेक्टरी में काम करने लगे। कुछ दिन बाद फेक्टरी बंद हो गई तो एक बार फिर घर चलाने के लिए संकट खड़ा हो गया। मनीश ने बताया कि इसी बीच स्थानीय निकाय के चुनाव में मां को टिकट मिला व वे जीत गई। इससे 1500 रुपए का मानदेश शुरू हो गया, लेकिन इससे घर चलना संभव नहीं था। एेसे में पिता ने अपना संघर्ष जारी रखा व हमको इस लायक बना दिया।
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