परिजनों ने किया शव लेने से इनकार
नाहरपुरा एमजीएम स्कूल के पास ही पिछले करीब ४० सालों से खुले में ही रहकर मोहनसिंह पिता नारायणसिंह और उसके साथी चैनसिंह पिता रायसिंह तथा मंजूर पन्नी बिनकर अपना गुजारा करते रहे हैं। मोहनसिंह की तबियत खराब होने पर ७ अक्टूबर को चैनसिंह ने अस्पताल में भर्ती कराया था और अगले दिन छुट्टी हो गई थी। दोबारा ९ सितंबर को किसी ने उसे भर्ती कराया और रात करीब साढ़े आठ बजे उसकी मौत हो गई। चूङ्क्षक कोई परिजन नहीं था इसलिए सुबह जैसे-तैसे उसके परिजनों का पता चला और भतीजे शैलेंद्रसिंह को बुलाया गया। परिजन भी साथ आए और उनसे शव ले जाकर अंतिम संस्कार की बात पुलिस ने कही तो उन्होंने साफ मना कर दिया कि वे नहीं ले जा सके। इसका लिखित में भी उन्होंने पुलिस को दे दिया।
नाहरपुरा एमजीएम स्कूल के पास ही पिछले करीब ४० सालों से खुले में ही रहकर मोहनसिंह पिता नारायणसिंह और उसके साथी चैनसिंह पिता रायसिंह तथा मंजूर पन्नी बिनकर अपना गुजारा करते रहे हैं। मोहनसिंह की तबियत खराब होने पर ७ अक्टूबर को चैनसिंह ने अस्पताल में भर्ती कराया था और अगले दिन छुट्टी हो गई थी। दोबारा ९ सितंबर को किसी ने उसे भर्ती कराया और रात करीब साढ़े आठ बजे उसकी मौत हो गई। चूङ्क्षक कोई परिजन नहीं था इसलिए सुबह जैसे-तैसे उसके परिजनों का पता चला और भतीजे शैलेंद्रसिंह को बुलाया गया। परिजन भी साथ आए और उनसे शव ले जाकर अंतिम संस्कार की बात पुलिस ने कही तो उन्होंने साफ मना कर दिया कि वे नहीं ले जा सके। इसका लिखित में भी उन्होंने पुलिस को दे दिया।
दोस्तों ने अपना फर्ज निभाया
परिजनों द्वारा शव नहीं ले जाने की जानकारी चैनसिंह और मंजूर को लगी तो वे जिला प्रशासन के पास पहुंच गए और अपने दोस्त का शव लेकर अंतिम संस्कार करने की गुहार लगाई। जिला प्रशासन के अधिकारी ने भी इस बात की गंभीरता समझी और इन्हें शव सौंपने के लिए सिविल सर्जन को निर्देशित किया। अस्पताल पुलिस चौकी प्रभारी अशोक शर्मा ने बताया सूचना मिलने तक शव लावारिस होने से उसे मेडिकल कॉलेज में देने की तैयारी हो चुकी थी। फिर नई खानापूर्ति करते हुए शव इन दोनों दोस्तों के सुपुर्द किया। ये दोनों दोस्त उसका शव ले गए और अंतिम संस्कार किया। इनका कहना था कि ४० सालों से साथ रहे हैं तो उसका अंतिम संस्कार करना भी हमारा दायित्व है। अंतिम संस्कार के लिए भी किसी दानदाता ने राशि उन्हें उपलब्ध कराई है।
परिजनों द्वारा शव नहीं ले जाने की जानकारी चैनसिंह और मंजूर को लगी तो वे जिला प्रशासन के पास पहुंच गए और अपने दोस्त का शव लेकर अंतिम संस्कार करने की गुहार लगाई। जिला प्रशासन के अधिकारी ने भी इस बात की गंभीरता समझी और इन्हें शव सौंपने के लिए सिविल सर्जन को निर्देशित किया। अस्पताल पुलिस चौकी प्रभारी अशोक शर्मा ने बताया सूचना मिलने तक शव लावारिस होने से उसे मेडिकल कॉलेज में देने की तैयारी हो चुकी थी। फिर नई खानापूर्ति करते हुए शव इन दोनों दोस्तों के सुपुर्द किया। ये दोनों दोस्त उसका शव ले गए और अंतिम संस्कार किया। इनका कहना था कि ४० सालों से साथ रहे हैं तो उसका अंतिम संस्कार करना भी हमारा दायित्व है। अंतिम संस्कार के लिए भी किसी दानदाता ने राशि उन्हें उपलब्ध कराई है।