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राजवंश की संपत्तियों की खरीदी-बिक्री पर लगी रोक हटी

locationरतलामPublished: Jun 12, 2018 12:34:43 pm

Submitted by:

Sourabh Pathak

– एसडीएम न्यायालय से हुआ फैसला, आपत्तिकर्ता सामाजिक कार्यकर्ता बोले उच्च स्तर पर करूंगा अपील

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राजवंश की संपत्तियों की खरीदी-बिक्री पर लगी रोक हटी

रतलाम। जिले में राजवंश की चल-अचल संपत्तियों की खरीदी-बिक्री पर लगी रोक अब हट चुकी है। इस संबंध में हालही में एसडीएम न्यायालय ने फैसला सुनाया है, जिसमें शिकायतकर्ता संजय मूसले द्वारा किए गए आवेदन को तथ्यात्मक आधार पर नहीं होना बताने के साथ ही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १४५ के तहत पूर्व में प्रकरणों में सिविल न्यायालय व उच्च न्यायालयों के आदेश को अंतिम हो चुके है। एेसे में आवेदक द्वारा प्रस्तुत आवेदन के साथ पूर्णवर्णित आदेशों के आधार पर कार्रवाई किए जाने का आवेदन स्वीकार योग्य नहीं होना माना है, जिसके चलते अब राजवंश की संपत्तियों की खरीदी-बिक्री का रास्ता भी साफ हो गया है।
राजवंश की संपत्तियों को बचाने के लिए मेहताजी का वास निवासी सामाजिक कार्यकर्ता संजय मूसले ने एसडीएम न्यायालय में पक्ष एक राजस्थान के अलवर निवासी महिंद्राकुमारी के वारिस जितेंद्रसिंह, स्टेशन रोड निवासी किशोर मेहता की वारिस भारती मेहता, रतलाम राजमहल परिसर निवासी महावीरसिंह शक्तावत व पक्ष दो हाकीमवाड़ा निवासी अजीतसिंह मृतक कल्याणसिंह के वारिस हर्षवर्धनसिंह शक्तावत, सुवी इंफोकंसलटेंट प्रालि द्वारा डायरेक्टर चांदनी चौक निवासी राजेंद्र पितलिया के खिलाफ आवेदन प्रस्तुत किया था।
एेसे चलता रहा प्रकरण
मूसले ने अपने आवेदन में बताया था कि रतलाम राज्य के अंतिम शासक महाराज लोकेंद्रसिंह की मृत्यु वर्ष १९९१ व भूतपूर्व महारानी प्रभाराज्य लक्ष्मी की मृत्यु वर्ष १९९३ में निसंतान व बिना वसीयत के हुई थी। उस समय स्टेशन रोड थाना पुलिस ने राजवंश की चल-अचल संपत्तियों के आधिपत्य को लेकर विवाद पैदा होने के कारण जनशांति भंग होने की आशंका को देखते हुए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १४५ जा.फो. अतंर्गत इस्तगासा २० जून १९९३ में एसडीएम न्यायालय में पेश कर संपत्तियों को शासकीय आधिपत्य में लेकर रिसीवर नियुक्त करने के निवेदन के साथ प्रस्तुत किया था।
पुलिस बनी थी रिसीवर
इस मामले में एसडीएम न्यायालय रतलाम ने प्रकरण महेंद्र कुमारी व आदि व महावीरसिंह व अन्य के खिलाफ प्रकरण पंजीबद्ध किया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन पीठासीन अधिकारी ने धारा १४६ (१) के तहत संपत्ति कुर्क कर तहसीलदार व मैनेजर कोर्ट ऑफ वार्डस रतलाम व थाना प्रभारी स्टेशन रोड को रिसीवर नियुक्त किया गया था।
दोनों पक्षों ने किया था राजीनामा
एसडीएम न्यायालय द्वारा ११ दिसंबर १९९५ को पक्ष क्रमांक एक व दो द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्त्ुत राजीनामे के आधार पर आदेश पारित कर विभिन्न पक्षकारों को संपत्तियां इस शर्त में सुपुर्दगी पर दी गई थी कि जब तक विवादित संपत्तियों के नामांतरण का निराकरण नहीं हो जाता तब तक कोई भी पक्ष इनकी चल-अचल संपत्तियों का विक्रय नहीं करेगा और न विक्रय करने का अनुबंध करेगा।
उच्चतम न्यायालय तक पहुंचा था मामला
प्रकरण बाद में उच्चतम न्यायालय में पहुंचने के बाद तहसीलदार, कोर्ट ऑफ वार्डस, स्टेशन रोड थाना प्रभारी द्वारा वर्ष १९९७-९८ में एसडीएम न्यायालय द्वारा पारित आदेश का पालन कर आदेशानुसार उल्लेखित शर्तों के अधिन पक्षकारों को संपत्तियां सुपुर्दगी में देकर कार्रवाई का पालन-प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था।
आपराधिक प्रकरण दर्ज करने की मांग
आवेदक ने शिकायत में बताया था कि ३१ जुलाई २००७ को राजवंश की संपत्ति से संबंधित लोकेंद्र भवन व आस -पास की संपत्ति का विक्रय सुवी इंफोकंसलटेंस को किया जा चुका है व परिसर में बने गैरेज तोड़कर भूमि को सुभाष चंडालिया नाम के व्यक्ति को बेचा व स्वरूप में परिवर्तन किया है। वहीं प्रभाराज्य लक्ष्मी की डोसी गांव स्थित भूमि को अवैध कब्जेधारियों रामसिंह राठौर व नरेंद्र शक्तावत के नाम दर्ज हो चुकी है। इन सब बातों को लेकर मूसले ने संबंधितों पर केस दर्ज किए जाने की मांग की थी।
इनका कहना है
फैसले के खिलाफ करूंगा अपील
– फैसला न्याय संगत नहीं हुआ है, इसके खिलाफ मैं उच्च स्तर पर अपील करूंगा। मुझे विश्वास है कि फैसला पक्ष में होगा और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी।
संजय मूसले, सामाजिक कार्यकर्ता
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