बाल चिकित्सालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार जो बच्चे पीलिया रोग से पीडि़त होकर भर्ती हुए हैं उनकी उम्र दो से दस साल के बीच की ही रही है। इनमें भी पांच से सात साल की उम्र के बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा सामने आई है।
लीवर से जुड़ी यह बीमारी हर उम्र के लोगों के लिए घातक होती है और समय पर इलाज नहीं मिलने पर जान तक जा सकती है। बच्चों का लीवर कमजोर होता है और उनमें यह बहुत तेजी से अपना असर दिखाती है।
बाल चिकित्सालय में अप्रेल माह से अब तक करीब तीन सौ बच्चे पीलिया रोग से पीडि़त होकर भर्ती हुए हैं। इनमें से ज्यादातर का इलाज तो यहीं पर डॉक्टरों ने कर दिया किंतु 10 बच्चे थे जिनका इलाज नहीं हो पाया। इन बच्चों को मेडिकल कॉलेज रेफर करना पड़ गया। कुछ बच्चों को बाहर भी ले जाया गया।
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. आरसी डामोर का कहना है कि बच्चों का बाहरी खान-पान, अस्वच्छ पानी का सेवन इसकी सबसे प्रमुख वजह होती है। छोटे बच्चों को बाहरी खाना जैसे पिज्जा, बर्गर, गोलगप्पे खिलाना हानिकारक हो सकता है। घरों में आने वाले पानी की भी नियमित जांच नहीं होना एक बड़ी वजह है।
अस्पताल सूत्र बताते हैं कि जिन क्षेत्रों में बच्चे पीलिया रोग से ज्यादा पीडि़त पाए गए हैं उनमें मोचीपुरा, सुभाषनगर, हाट की चौकी क्षेत्र के साथ ही झुग्गी बस्तियों के बच्चे शामिल हैं। इन क्षेत्रों में गंदगी, पानी का प्रदूषित पाया जाना इसकी वजह हो सकती है। वातावरण से भी वस्तुएं दूषित होकर नुकसान पहुंचाती है।
अप्रेल से नवंबर तक रोगी – 290
नवंबर में अब तक – 24
अक्टूबर में आए – 35
सितंबर में आए – 27
बच्चों के खानपान पर रखें नियंत्रण
बच्चों के खानपान पर अभिभावकों को नियंत्रण रखना जरुरी है। बाजार की वस्तुएं जैसे पिज्जा- गोलगप्पे या ऐसी ही चीजें खिलाने से उनके लीवर पर असर पड़ता है और बीमारी फैलती है। दूसरा पानी की स्वच्छता पर ध्यान देना जरुरी है। सबसे बड़ी वजह यही रहती है। अगस्त के बाद मरीजों की संख्या इस बार काफी बढ़ी थी। अब कुछ कम हुई है।
डॉ. आरसी डामोर, बाल चिकित्सालय प्रभारी व शिशु रोग विशेषज्ञ