Republic Independence Day 2019 – 73rd Independence Day 2019 – आजादी की जब हम 73वीं वर्षगांठ मना रहे है, तब जबकि हम चंद्रयान-2 से लेकर मिशन मंगल तक कर रहे है तब इस युग मे भी मध्यप्रदेश के रतलाम के गांव सिर्फ चांद की रोशनी से लेकर मिट्टी के दिए में जगमगा रहे हैं। आज भी मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के कुछ गांव अंधेरे में हैं, जहां बिजली के खम्बे, तार, मीटर तो पहुंच गए, लेकिन बिजली अभी भी नहीं पहुंची है।
Independence Day 2019 : villages depended on clay lamps and moon light
रतलाम। Independence Day 2019 : आज आजादी की 73वीं वर्षगांठ मनाते हुए भारत दुनिया के सामने सीना ताने खड़ा है। देश चंद्रयान-2 से चांद पर पहुंच गया है। मिशन मंगल की शुरुआत हो रही है। लेकिन मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के कुछ गांव अब भी चांद की रोशनी से जगमगा रहे है। अब भी मध्यप्रदेश के रतलाम के गांव अंधेरे में हैं, यहां बिजली के खम्बे, तार, मीटर तो पहुंच गए, लेकिन बिजली अभी भी नहीं पहुंची है। ऐसा ही कुछ हाल है रतलाम जिले के रावटी तहसील के राजपुरा पंचायत का, जहां के कुछ गांव आज भी लोग बिजली के लिए मोहताज हैं और लगातार प्रशासन से गुहार भी लगा रहे हैं।
रतलाम जिले की बात करें तो रावटी तहसील के राजपुरा पंचायत के ढोलावाड़, भुवनपाड़ा, चिल्लर, सागड़ामाल, भोजपुरा व अन्य गांवो में आज भी ग्रामीण बिजली के इंतजार में है। इन गांव में बिजली के खम्बे, बिजली के तार, यहां तक कि घरों में मीटर भी लगे हैं, लेकिन बावजूद इसके बिजली अब तक इन गांव वालों को नहीं मिली है, बल्कि इनको रोशनी के लिए चांद से लेकर मिट्टी के दिए का एकमात्र सहारा है।
चुनाव से जागी थी उम्मीद मध्यप्रदेश में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के पहले इन गांव में लोगों को उम्मीद जगी थी कि अब गांव से अंधेरा मिट जाएगा, क्योंकि अब गांव में बिजली के खम्बे मीटर और तार लग लग गए हैं। ग्रामीणों ने इस उम्मीद में अपने कच्चे मकानों में टीवी और अन्य बिजली उपकरण भी खरीद कर लगवा लिए, लेकिन बिजली की आस में ये उपकरण भी घर मे शो पीस बनकर रह गए। बचपन से यहां के लोगों को बिजली का इंतजार है। अंधेरे में अपना बचपन गुजार चुके ग्रामीणों को उम्मीद थी अब उनकी आने वाली पीढ़ी को रोशनी मिलेगी और वे इस रौशनी में पढ़ाई कर अपने जीवन को रोशन करेंगे, लेकिन यहां बच्चे आज भी दिए से लेकर चांद की कि रोशनी में पड़ते हैं।
चिमनी की रौशनी के मोहताज है ये गांव इन गांव के सरकारी स्कूल गांव से दूर हैं। घर आते-आते शाम हो जाती है और फिर सूरज ढलने से पहले ग्रामीण खाना बनाकर खा लेते हैं। फिर यह सिर्फ लालटेन और चिमनी की रोशनी ही सुबह तक इनका साथ देती है। सीएफएल और एलईडी की रोशनी के युग मे आज भी यह गांव चिमनी की रौशनी के मोहताज है, रात में घरो के बाहर सांप और अन्य जंगली जानवर का खतरा बारिश के दिनों में अंधेरे के कारण बढ़ जाता है। लोकसभा चुनाव में कोई नेता यहां वोट मांगने नहीं पहुंचा।
लोकतंत्र के पर्व की दुहाई दी जाती है चुनाव कोई सा भी हो, ऐसा नहीं की इन गांव के ग्रामीण मतदान नहीं करते, बल्कि हर चुनाव में यहां भी लोकतंत्र के पर्व की दुहाई दी जाती है। पंचायत चुनाव में नेता वोट मांगते हैं और अपनी जिंदगी में रोशनी की आस में लगातार सालों से ये ग्रामीण मतदान भी करते हैं। आमतोर पर शहर में मांग को लेकर चुनाव का बहिष्कार होता है, लेकिन इन गांव के लोग लोकतंत्र के पर्व को उत्सव के रुप में मनाते है।
बिजली का कार्य शुरू हुआ था आजादी से लेकर अब तक मध्यप्रदेश में कई सरकारें बदल गईं, लेकिन इस गांव में रहने वाले ग्रामीणों की किस्मत से अंधेरा अब तक नहीं हट पाया है। इन गांव की पंचायत के सरपंच का कहना है कि बड़ी मुश्किल से यहां सौभाग्य योजना अंतर्गत बिजली का कार्य शुरू हुआ था और बिजली के खम्बे भी लगे, घरों के बाहर बिजली के मीटर भी लगे, लेकिन बिजली इन गांवों को नहीं मिली। ये क्यों हुआ इसका जवाब ग्रामीणों के पास भी नहीं है।
गांवों में अंधेरा नही मिटा हैं इन ग्रामीण को आप कमजोर नहीं मान सकते, क्योंकि ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों ने इसकी शिकायत अधिकारियों से नहीं की। शिकायत तो खुब हुई, लेकिन लगातार शिकायत के बाद भी कोई सुनवाई नही हो रही। अधिकारी सिर्फ जांच का आश्वासन दे रहे हैं, लेकिन इन ग्रामीणों के अंधेरे को दूर करने के लिये कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। आज हम देश की आजादी का 73वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे है, लेकिन आजादी के इतने सालों बाद भी आज गांवों में अंधेरा नही मिटा हैं।
ग्रामीणों को याद है ग्रामीणों से अगर आजादी के बारे में बात करें तो इनको विवेकानंद, रानी लक्ष्मी बाई, भगत सिंह, खुदीराम बोस, करतार सिंह साराभा, अशफाक़ उल्ला खाँ, उधम सिंह, गणेश शंकर विद्यार्थी, राजगुरु, सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद, मंगल पांडे, राम प्रसाद ‘बिस्मिल के नाम याद है।