दख ने बताया की आज संसाधनों से भरपूर इस युग में जहां आवागमन के इतने साधन एवं व्यवस्थाएं हैं। बावजूद इसके आचार्य महाश्रमण भारतीय ऋषि परंपरा को जीवित रखते हुए जनोपकार के लिए निरंतर पदयात्रा कर रहे हैं। भारत के 23 राज्यों और नेपाल व भूटान में सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति की अलख जगाने वाले आचार्य महाश्रमण की प्रेरणा से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोग नशामुक्ति की प्रतिज्ञा स्वीकार कर चुके हैं।
दिल्ली के लाल किले से वर्ष 2014 में अहिंसा यात्रा की शुरुआत करने वाले आचार्य महाश्रमण, राष्ट्रपति भवन से लेकर गांवों की झोंपड़ी तक शांति का संदेश देने का कार्य कर रहे हैं। यात्रा के दौरान राजनेता हो या अभिनेता, न्यायाधीश हो या उद्योगपति, सेना के जवान हो या पुलिसकर्मी, विशिष्ट जनों से लेकर सामान्य जन तक संपर्क में आने वाले हर वर्ग के लोग प्रेरित होकर अहिंसा यात्रा के संकल्पों को जीवन में उतारने के लिए प्रतिबद्ध हो रहे हैं।
दख ने बताया की जैन साधु की कठोर दिनचर्या का पालन और सुबह चार बजे उठकर घंटों तक जप-ध्यान की साधना में लीन रहने वाले आचार्य महाश्रमण प्रतिदिन प्रवचन के माध्यम से भी जनता को संबोधित करते हैं। इसके साथ-साथ उनके सान्निध्य में सर्वधर्म सम्मेलनों, प्रबुद्ध वर्ग सहित विभिन्न वर्गों की संगोष्ठियों आदि का आयोजन होता है। वर्तमान कोरोना काल की पालनाओं के कारण इन सभी गतिविधियों पर विराम है। लेकिन पदयात्रा में आचार्य महाश्रमण के साहित्य सृजन का क्रम निरन्तर जारी है। उनके नेतृत्व में 750 से अधिक साधु-साध्वियां और हजारों कार्यकर्ता देश-विदेश में समाजोत्थान के महत्वपूर्ण कार्य में संलग्न हैं।