पुण्य का बंध करते रहे। प्रेम करते चले
श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ, गुजराती उपाश्रय एवं श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर पेढ़ी रतलाम के तत्वावधान में आयोजित 11 दिवसीय प्रवचनमाला के चौथे दिन मैं स्वाधीन कि पराधीन…विषय पर मार्गदर्शन देते हुए आचार्यश्री ने कहा कि पुण्य का बंध करते रहे। प्रेम करते चले। प्रलोभन में नहीं पड़े और पीड़ा के समय विचलित नहीं हो, तो सिद्धपद की प्राप्ति कर सकता है। इसके लिए सबकों यह समझ लेना चाहिए कि वे पुण्य उदय में पराधीन हो, लेकिन पुण्यबंध में स्वाधीन है। प्रेम पाना भले ही उनके वश में नहीं, लेकिन प्रेम देने में स्वाधीन है, प्रलोभन को रोकने में भले ही उनके बस में नहीं हो, लेकिन उसे नजरअंदाज करने में सभी सक्षम है। इसी तरह पीड़ा से बचना असंभव हो सकता है, लेकिन पीड़ा के समय समाधि बनाए रखना संभव है। मनुष्य जिस प्रकार धन खर्च करने के बजाए उसे बढ़ाने में विश्वास रखता है, उसी प्रकार पुण्य को भी खर्च करने के बजाए बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। पाप के उदय में पुण्यबंध के प्रयास ही हमारी मदद करते है।
श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ, गुजराती उपाश्रय एवं श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर पेढ़ी रतलाम के तत्वावधान में आयोजित 11 दिवसीय प्रवचनमाला के चौथे दिन मैं स्वाधीन कि पराधीन…विषय पर मार्गदर्शन देते हुए आचार्यश्री ने कहा कि पुण्य का बंध करते रहे। प्रेम करते चले। प्रलोभन में नहीं पड़े और पीड़ा के समय विचलित नहीं हो, तो सिद्धपद की प्राप्ति कर सकता है। इसके लिए सबकों यह समझ लेना चाहिए कि वे पुण्य उदय में पराधीन हो, लेकिन पुण्यबंध में स्वाधीन है। प्रेम पाना भले ही उनके वश में नहीं, लेकिन प्रेम देने में स्वाधीन है, प्रलोभन को रोकने में भले ही उनके बस में नहीं हो, लेकिन उसे नजरअंदाज करने में सभी सक्षम है। इसी तरह पीड़ा से बचना असंभव हो सकता है, लेकिन पीड़ा के समय समाधि बनाए रखना संभव है। मनुष्य जिस प्रकार धन खर्च करने के बजाए उसे बढ़ाने में विश्वास रखता है, उसी प्रकार पुण्य को भी खर्च करने के बजाए बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। पाप के उदय में पुण्यबंध के प्रयास ही हमारी मदद करते है।
मन में दुश्मन से भी प्रेम के भाव होने चाहिए
आचार्यश्री ने कहा कि साधु जीवन प्रेम पाने के बजाए प्रेम देने के लिए होता है। मित्र भले ही हमे प्यार नहीं दे, लेेकिन हमारे मन में दुश्मन से भी प्रेम के भाव होने चाहिए। यदि एक ही सूत्र हो कि मैं प्रेम करता चलूंगा, चाहे सामने वाला प्रेम दे अथवा नहीं दे, तो व्यक्ति किसी के अधीन नहीं रहेगा। उन्होने कहा कि प्रलोभन का सबसे बड़ा कारण हमारा मन है। इससे कोई बच नहीं सकता, लेकिन इसे नजरअंदाज कर आगे बढऩे का काम हर कोई कर सकता है। पीड़ा भी ऐसी है, जिससे कोई बच नहीं सकता, लेकिन पीड़ा के समय समाधि अर्थात स्थिर रहने का कार्य हर व्यक्ति कर सकता है। पीड़ा के समय पुरस्कार का भाव रहे, तो परम गति का प्राप्त हो सकती है। साधना का क्षेत्र इसका शाश्वत उदाहरण है। प्रवचनमाला का संचालन मुकेश जैन ने किया। इस दौरान श्री संघ अध्यक्ष सुनील ललवानी सहित अन्य पदाधिकारीगण एवं असंख्य गुरूभक्त मौजूद थे। शनिवार को प्रवचनमाला का विषय सुख का सही पता कौन सा… रहेगा।
आचार्यश्री ने कहा कि साधु जीवन प्रेम पाने के बजाए प्रेम देने के लिए होता है। मित्र भले ही हमे प्यार नहीं दे, लेेकिन हमारे मन में दुश्मन से भी प्रेम के भाव होने चाहिए। यदि एक ही सूत्र हो कि मैं प्रेम करता चलूंगा, चाहे सामने वाला प्रेम दे अथवा नहीं दे, तो व्यक्ति किसी के अधीन नहीं रहेगा। उन्होने कहा कि प्रलोभन का सबसे बड़ा कारण हमारा मन है। इससे कोई बच नहीं सकता, लेकिन इसे नजरअंदाज कर आगे बढऩे का काम हर कोई कर सकता है। पीड़ा भी ऐसी है, जिससे कोई बच नहीं सकता, लेकिन पीड़ा के समय समाधि अर्थात स्थिर रहने का कार्य हर व्यक्ति कर सकता है। पीड़ा के समय पुरस्कार का भाव रहे, तो परम गति का प्राप्त हो सकती है। साधना का क्षेत्र इसका शाश्वत उदाहरण है। प्रवचनमाला का संचालन मुकेश जैन ने किया। इस दौरान श्री संघ अध्यक्ष सुनील ललवानी सहित अन्य पदाधिकारीगण एवं असंख्य गुरूभक्त मौजूद थे। शनिवार को प्रवचनमाला का विषय सुख का सही पता कौन सा… रहेगा।