वर्ष 1951 में हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस के अमरसिंह डामर ने चुनाव करीब 30 हजार से अधिक वोट से जीता था। उनकी ये जीत 1957 के चुनाव में बढ़कर 41 हजार से अधिक वोट की हो गई। 1962 में इस सीट से कांगे्रस ने अपने प्रत्याशी को बदला व राज्य में बाद में कांगे्रस की राजनीति में बुआजी के नाम से लो्रकप्रिय रही जमुना देवी को टिकट दिया। ये 22 हजार से अधिक वोट से जीती। 1967 के चुनाव में कांगे्रस के सूरसिंह ने 28 हजार से अधिक वोट से जीतकर पूर्व के जीत के रिकार्ड को तोड़ दिया। इसके बाद 1971 में एसएसपी ने पराजय का बदला लिया व चुनाव में भागीरथ भंवर 26 हजार वोट से चुनाव जीत गए।
पहला चुनाव हार गए थे भूरिया
आपातकाल के बाद हुए 1977 के चुनाव में भाषण कला से प्रभावित होकर कांगे्रस के दिलीपङ्क्षसह भूरिया को इंदिरा गांधी ने पहली बार टिकट दिया, लेकिन वे अपने करीबी प्रत्याशी बीएलडी के भागीरथ भंवर से 62 हजार रिकार्ड वोट से हार गए। इसके बाद 1980 में इस हार का बदला दिलीपसिंह भूरिया ने 90 हजार वोट से जीतकर लिया। इनके सामने इनकी ही पार्टी की पूर्व सांसद जमुनादेवी जेएनपी से खड़ी हुई थी। इसके बाद 1984 में भूरिया 1 लाख 34 हजार, 1989 में 1 लाख 16 हजार, 1991 में 1 लाख 34 हजार, 1996 में 27 हजार वोट से जीते। इसके बाद जब 1998 के चुनाव में इनको कांगे्रस ने टिकट नहीं दिया तो वे पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए।
आपातकाल के बाद हुए 1977 के चुनाव में भाषण कला से प्रभावित होकर कांगे्रस के दिलीपङ्क्षसह भूरिया को इंदिरा गांधी ने पहली बार टिकट दिया, लेकिन वे अपने करीबी प्रत्याशी बीएलडी के भागीरथ भंवर से 62 हजार रिकार्ड वोट से हार गए। इसके बाद 1980 में इस हार का बदला दिलीपसिंह भूरिया ने 90 हजार वोट से जीतकर लिया। इनके सामने इनकी ही पार्टी की पूर्व सांसद जमुनादेवी जेएनपी से खड़ी हुई थी। इसके बाद 1984 में भूरिया 1 लाख 34 हजार, 1989 में 1 लाख 16 हजार, 1991 में 1 लाख 34 हजार, 1996 में 27 हजार वोट से जीते। इसके बाद जब 1998 के चुनाव में इनको कांगे्रस ने टिकट नहीं दिया तो वे पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए।
1998 में बने पहली बार सांसद 1980 से विधानसभा चुनाव जीतते हुए आ रहे कांतिलाल भूरिया ने पहला लोकसभा चुनाव 1998 में लड़ा व भाजपा से खडे़ हुए दिलीपसिंह भूरिया को 82 हजार से अधिक वोट से हराया। इसके ठीक एक वर्ष बाद हुए चुनाव में तो कांगे्रस के भूरिया 1 लाख 49 हजार से अधिक वोट से जीते। 2004 में यहां से कांगे्रस 80 हजार, 2009 में 57 हजार से अधिक वोट से जीती।
24 साल बाद टूटा वनवास
2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की 1980 में हुई स्थापना के 24 वर्षो बाद पहली बार भाजपा की यहां से जीत हुई। भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया ने कांगे्रस के कांतिलाल भूरिया को 1 लाख 8 हजार वोट से हराया, लेकिन ये जीत एक वर्ष ही कायम रह पाई। जून 2015 में दिलीपसिंह का बीमारी से निधन हुआ। इसके बाद नवंबर 2015 में हुए उपचुनाव में कांगे्रस के कांतिलाल ने 88 हजार से अधिक वोट से जीत दर्ज की।
2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की 1980 में हुई स्थापना के 24 वर्षो बाद पहली बार भाजपा की यहां से जीत हुई। भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया ने कांगे्रस के कांतिलाल भूरिया को 1 लाख 8 हजार वोट से हराया, लेकिन ये जीत एक वर्ष ही कायम रह पाई। जून 2015 में दिलीपसिंह का बीमारी से निधन हुआ। इसके बाद नवंबर 2015 में हुए उपचुनाव में कांगे्रस के कांतिलाल ने 88 हजार से अधिक वोट से जीत दर्ज की।