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भगवान के 16 चरण की पूजा का तरीका, इस जन्माष्टमी करें, होगा लाभ

locationरतलामPublished: Aug 30, 2018 06:52:53 pm

Submitted by:

Ashish Pathak

भगवान के 16 चरण की पूजा का तरीका, इस जन्माष्टमी करें, होगा लाभ

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रतलाम। जन्माष्टमी यानी की भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन कृष्णपक्ष की अष्टमी को मनाया जाएगा। इस बार जन्माष्टमी की तारीख को लेकर भ्रम हो रहा है, लेकिन भ्रम करने की जरुरत नहीं है। ये पर्व 2 व 3 सितंबर को मनाया जाएगा। भगवान की पूजन के 16 चरण होते है। इनको सही तरीके से किया जाए तो भगवान को प्रसन्न होने से कोई नहीं रोक सकता है। ये बात रतलाम के प्रसिद्ध ज्योतिषी वीरेद्र रावल ने भक्तों को कही। वे संकट चतुर्थी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजन का तरीका विषय पर बोल रहे थे।
जन्‍माष्‍टमी का व्रत किस दिन रखेंभारतीय मान्‍यता के अनुसार भगान श्रीकृष्‍ण का जन्‍म कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस बार अष्‍टमी तिथि 2 सितंबर की रात 8 बजकर 47 मिनट पर लगेगी, जबकि आकाशगंगा में रोहिणी नक्षत्र रात 8 बजकर 48 मिनट पर लगेगा। इसलिए व्रत 2 सितंबर को रखा जाएगा और अगले दिन 3 सितंबर को रोहिणी नक्षत्र के समाप्‍त होने पर रात 8 बजकर 05 मिनट पर व्रत का पारण किया जाएगा।
जन्‍माष्‍टमी का व्रत किस तरह रखें

– जो भक्‍त जन्‍माष्‍टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्‍हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए।
– जन्‍माष्‍टमी के दिन सुबह स्‍नान करने के बाद व्रत का संकल्‍प लें।
– इसके बाद माता देवकी के लिए सूतिका गृह बनाएं।
– इस सूतिका गृह में माता देवकी समेत बाल गोपाल की मूर्ति स्थापित करें और पूजा करें।

– सारा दिन उपवास रखें, इस व्रत में आप दिन में पानी, फल और दूध ले सकते हैं।
– इसके बाद आ‍धी रात को विधिपूर्वक पूजा करें।
– जन्‍माष्‍टमी की पूजा का समय 2 सितंबर 2018 की रात 11 बजकर 57 मिनट से रात 12 बजकर 48 मिनट तक है।
– अगले दिन यानी कि 3 सितंबर को अष्‍टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के खत्‍म के बाद व्रत का पारण करें।
जन्‍माष्‍टमी की पूजा के लिए जरूरी सामग्री

जन्‍माष्‍टमी की पूजा के लिए जो सामग्री चाहिए उनमें इनको शामिल किया गया हैं- चौकी, लाल वस्‍त्र, बाल गोपाल की मूर्ति, गंगाजल, मिट्टी का दीपक, घी, रूई की बत्ती, धूप, चंदन, रोली, अक्षत, तुलसी ,पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण) मक्खन, मिश्री, मिष्ठान/नैवैद्य, फल, बाल गोपाल के लिए वस्‍त्र, श्रृंगार की सामग्री (मुकुट, मोतियों की माला, बांसुरी और मोर पंख), इत्र, फूलमाला, फूल और पालना।
जन्‍माष्‍टमी की पूजा इस तरह करें

जन्‍माष्‍टमी की पूजा शुरू करने से पहले रात 11 बजे फिर से स्‍नान कर लें। उसके बाद घर के मंदिर में ऊपर बताई गई सभी सामग्री रख लें और पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं। इसके बाद पालने को सजा लें और चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर लड्डू गोपाल की मूर्ति स्‍थापित कर पूजा प्रारंभ करें।
जन्‍माष्‍टमी के दिन 16 चरणों को शामिल किया जाता

ध्‍यान- सबसे पहले भगवान श्री कृष्‍ण की प्रतिमा के आगे उनका ध्‍यान करते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
ॐ तमअद्भुतं बालकम् अम्‍बुजेक्षणम्, चतुर्भुज शंख गदाद्युधायुदम्।
श्री वत्‍स लक्ष्‍मम् गल शोभि कौस्‍तुभं, पीताम्‍बरम् सान्‍द्र पयोद सौभंग।।
महार्ह वैढूर्य किरीटकुंडल त्विशा परिष्‍वक्‍त सहस्रकुंडलम्।
उद्धम कांचनगदा कङ्गणादिभिर् विरोचमानं वसुदेव ऐक्षत।।
ध्यायेत् चतुर्भुजं कृष्णं,शंख चक्र गदाधरम्।
पीताम्बरधरं देवं माला कौस्तुभभूषितम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। ध्‍यानात् ध्‍यानम् समर्पयामि।।
आवाह्न- इसके बाद हाथ जोड़कर इस मंत्र से श्रीकृष्‍ण का आवाह्न करें:
ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात्।
स-भूमिं विश्‍वतो वृत्‍वा अत्‍यतिष्ठद्यशाङ्गुलम्।।
आगच्छ श्री कृष्ण देवः स्थाने-चात्र सिथरो भव।।
ॐ श्री क्लीं कृष्णाय नम:। बंधु-बांधव सहित श्री बालकृष्ण आवाहयामि।।
आसन- अब श्रीकृष्‍ण को आसन देते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
ॐ विचित्र रत्न-खचितं दिव्या-स्तरण-सन्युक्तम्।
स्वर्ण-सिन्हासन चारू गृहिश्व भगवन् कृष्ण पूजितः।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। आसनम् समर्पयामि।।

पाद्य- आसन देने के बाद भगवान श्रीकृष्‍ण के पांव धोने के लिए उन्‍हें पंचपात्र से जल समर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
एतावानस्य महिमा अतो ज्यायागंश्र्च पुरुष:।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।।
अच्युतानन्द गोविंद प्रणतार्ति विनाशन।
पाहि मां पुण्डरीकाक्ष प्रसीद पुरुषोत्तम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। पादोयो पाद्यम् समर्पयामि।।
अर्घ्‍य- अब श्रीकृष्‍ण को इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए अर्घ्‍य दें:
ॐ पालनकर्ता नमस्ते-स्तु गृहाण करूणाकरः।।
अर्घ्य च फ़लं संयुक्तं गन्धमाल्या-क्षतैयुतम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। अर्घ्यम् समर्पयामि।।

आचमन- अब श्रीकृष्‍ण को आचमन के लिए जल देते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
तस्माद्विराडजायत विराजो अधि पुरुष:।
स जातो अत्यरिच्यत पश्र्चाद्भूमिनथो पुर:।।
नम: सत्याय शुद्धाय नित्याय ज्ञान रूपिणे।।
गृहाणाचमनं कृष्ण सर्व लोकैक नायक।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। आचमनीयं समर्पयामि।।
स्‍नान- अब भगवान श्रीकृष्‍ण की मूर्ति को कटोरे या किसी अन्‍य पात्र में रखकर स्‍नान कराएं. सबसे पहले पानी से स्‍नान कराएं और उसके बाद दूध, दही, मक्‍खन, घी और शहद से स्‍नान कराएं. अंत में साफ पानी से एक बार और स्‍नान कराएं.
स्‍नान कराते वक्‍त इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
गंगा गोदावरी रेवा पयोष्णी यमुना तथा।
सरस्वत्यादि तिर्थानि स्नानार्थं प्रतिगृहृताम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। स्नानं समर्पयामि।।
वस्‍त्र- अब भगवान श्रीकृष्‍ण की मूर्ति को किसी साफ और सूखे कपड़े से पोंछकर नए वस्‍त्र पहनाएं. फिर उन्‍हें पालने में रखें और इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
शति-वातोष्ण-सन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।
देहा-लंकारणं वस्त्रमतः शान्ति प्रयच्छ में।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। वस्त्रयुग्मं समर्पयामि।।
यज्ञोपवीत- इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए भगवान श्रीकृष्‍ण को यज्ञोपवीत समर्पित करें:
नव-भिस्तन्तु-भिर्यक्तं त्रिगुणं देवता मयम्।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। यज्ञोपवीतम् समर्पयामि।।

चंदन: अब श्रीकृष्‍ण को चंदन अर्पित करते हुए यह मंत्र पढ़ें:
ॐ श्रीखण्ड-चन्दनं दिव्यं गंधाढ़्यं सुमनोहरम्।
विलेपन श्री कृष्ण चन्दनं प्रतिगृहयन्ताम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। चंदनम् समर्पयामि।।
गंध: इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए श्रीकृष्‍ण को धूप-अगरबत्ती दिखाएं:
वनस्पति रसोद भूतो गन्धाढ़्यो गन्ध उत्तमः।
आघ्रेयः सर्व देवानां धूपोढ़्यं प्रतिगृहयन्ताम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। गंधम् समर्पयामि।।

दीपक: अब श्रीकृष्‍ण की मूर्ति को घी का दीपक दिखाएं:
साज्यं त्रिवर्ति सम्युकतं वह्निना योजितुम् मया।
गृहाण मंगल दीपं,त्रैलोक्य तिमिरापहम्।।
भक्तया दीपं प्रयश्र्चामि देवाय परमात्मने।
त्राहि मां नरकात् घोरात् दीपं ज्योतिर्नमोस्तुते।।
ब्राह्मणोस्य मुखमासीत् बाहू राजन्य: कृत:।
उरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्यां शूद्रो अजायत।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। दीपं समर्पयामि॥
नैवैद्य: अब श्रीकृष्‍ण को भागे लगाते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च
आहारो भक्ष्य- भोज्यं च नैवैद्यं प्रति- गृहृताम।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। नैवद्यं समर्पयामि।।

ताम्‍बूल: अब पान के पत्ते को पलट कर उस पर लौंग-इलायची, सुपारी और कुछ मीठा रखकर ताम्बूल बनाकर श्रीकृष्‍ण को समर्पित करें, साथ ही इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
ॐ पूंगीफ़लं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम्।
एला-चूर्णादि संयुक्तं ताम्बुलं प्रतिगृहृताम।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। ताम्बुलं समर्पयामि।।
दक्षिणा: अब अपनी सामर्थ्‍य के अनुसार श्रीकृष्‍ण को दक्षिणा या भेंट दें और इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
हिरण्य गर्भ गर्भस्थ हेमबीज विभावसो:।
अनन्त पुण्य फलदा अथ: शान्तिं प्रयच्छ मे।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। दक्षिणां समर्पयामि।।

आरती: आखिरी में घी के दीपक से श्रीकृष्‍ण की आरती करें:
आरती युगलकिशोर की कीजै, राधे धन न्यौछावर कीजै।
रवि शशि कोटि बदन की शोभा, ताहि निरिख मेरो मन लोभा।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
गौरश्याम मुख निरखत रीझै, प्रभु को रुप नयन भर पीजै।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
कंचन थार कपूर की बाती . हरी आए निर्मल भई छाती।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
फूलन की सेज फूलन की माला . रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
मोर मुकुट कर मुरली सोहै,नटवर वेष देख मन मोहै।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
ओढे नील पीट पट सारी . कुंजबिहारी गिरिवर धारी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
श्री पुरषोत्तम गिरिवरधारी. आरती करत सकल ब्रजनारी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
नन्द -नंदन ब्रजभान किशोरी . परमानन्द स्वामी अविचल जोरी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
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