
निमाड़...यूट्यूब से लेकर खेतों तक ऋतुकाल के लोकगीत
निमाड़ में इन दिनों वर्षा ऋतु के आगमन का इंतजार हो रहा है। शुरुआती तौर पर प्री-मानसून की दस्तक के साथ ही बादल उमड़ रहे हैं। इनको देखते ही गली-मोहल्लों से लेकर खेतों की मेड़ तक लोकगीत गुनगुनाएं जा रहे हैं। क्षेत्र के भीकनगांव के सेल्दा के रहने वाले निमाड़ी लोकगीत गायक शिव भाई गुप्ता के वर्षा ऋतुकाल के गीत तो यूट्यूब से लेकर वीडियो एलबम तक में छाए हुए हैं। आइजा रे पाणी बाबा...पाय लागू उनका प्रचलित गीत है। वहीं, हेमलता उपाध्याय का सामूहिक वर्षा गीत पाणी नी पहली फुहारी...म्हारी रेशम की साड़ी आयोजनों के दौरान महिलाएं गातीं है। बादल जोशी और पीयूष कुशवाह भी वर्षा के आगमन और बेहतर बारिश के लोकगीत एलबम बनाते हैं।
मालवा....शोध से लेकर मंदिरों तक ऋतुकाल के मालवी गीत
मालवा में भी बारिश का स्वागत मालवी गीतों में सुनाई देता है। महिलाएं खेतों में सामूहिक भोज व मंदिरों में रतजगा करने के दौरान ऋतुकाल के गीत गाती है। श्रावण माह में हीड़ गायन को बेहतर बारिश की कामना वाला माना जाता है। इसी तरह बरसाती बारता और फुहारी लोकगीत वर्षा ऋतु के दौरान गाए जाते हैं। मालवा में तो ऋतुकथा का भी चलन है। मुकेश इंदौरी मालवी गीत तरसा मरे रहे खेत...तो यूट्यूब चैनल से लेकर मंचों तक सुनाते हैं। देवास की बाल गीतकार भी बाल गीतों के साथ ही मालवी लोकगीत गाती है। काला-काला बादल छाया...जैसे मालवी ऋतुकाल गीत बाल गीत के रूप में दर्ज हैं। काव्य गोष्ठियों में रतलाम के आशीष दशोत्तर ऋतुकाल पर रचनाएं सुनाते हैं।

परंपराओं में भी वर्षा का स्वागत और मनुहार
मालवा-निमाड़ में वर्षा के स्वागत से लेकर मनाने तक कई परंपराएं चलन में है। हरियाली तीज के साथ श्रावण का पूरा माह अहम माना जाता है। आषाढ़ माह की शुरुआत में ही वर्षा की कामना के लिए व्रत एवं कथाओं का श्रवण होने लगता है। इंद्रदेव व जलदेव की उपासना की जाती है। मान्यता है कि किसान वर्षाकाल की बोवनी की शुरुआत जलदेव के पूजन के साथ करते हैं। खेत में पूरा परिवार भोजन बनाकर खाता है। निमाड़ में पशुओं का मुंह मीठा कराने की परंपरा है। नियमित बारिश की प्रार्थना को लेकर गांव की सीमाओं तक का पूजन किया जाता है। मानसून समय पर आने के आव्हान के साथ कई गांव तो घरों में चूल्हा तक नहीं जलाते, खेतों या खलिहारों में ही भोजन बनता है।