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रतलाम

निगम के पत्रों को भी खाद्य विभाग ने कर दिया था अनदेखा

– लगातार पत्राचार के बाद भी बिना जांच के जारी किया जाता रहा फर्जी तरीके से राशन, कलेक्टर ने भी मांगी जानकारी

रतलामJan 23, 2018 / 01:01 pm

harinath dwivedi

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रतलाम. शहर में उजागर हुए राशन घोटाले में जिला खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने हर स्तर पर लापरवाही की। उनके द्वारा नगर निगम से जारी किए जाने वाले पत्रों को भी अनदेखा कर दिया गया, जिसका लाभ सीधे तौर पर राशन दुकान संचालकों के साथ खाद्य विभाग के अधिकारियों को हुआ। यदि समय रहते विभाग में पदस्थ अधिकारी उक्त पत्रों पर ध्यान देते तो करोड़ों रुपए का यह घोटाला शुरू ही नहीं हो पाता।
नगर निगम ने ठेकेदार यशवंत गंग की कारगुजारियों को देखते हुए उसे भी नोटिस जारी किए थे। उसके बाद भी काम का तरीका नहीं बदले जाने के चलते उसकी फर्म का भुगतान रोकने के साथ ही उसे दोषी ठहराते हुए उसके खिलाफ स्टेशन रोड थाना पुलिस को केस दर्ज कराए जाने के लिए पत्र भी लिखा था। यह पत्र निगम ने अगस्त २०१६ में लिखा था, जिसमें गंग के द्वारा बड़ी मात्रा में गड़बडि़यां किए जाने की बात कही थी। उस समय भी ठेकेदार के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई नहीं होने से वह बच गया था।
शुरू से नहीं बैठा तालमेल
सूत्रों की माने तो राशन के फर्जीवाड़े से जुड़े इस मामले में खाद्य विभाग के अधिकारियों के साथ निगम के ठेकेदार का तालमेल जम गया था। इसके चलते सब जानकर भी जिला आपूर्ति अधिकारी आरसी जांगडे़ सहित उनके अन्य अधिकारी अनजान बने बैठे थे। वहीं निगम जब भी इस मामले में ठेकेदार व खाद्य विभाग को पत्र लिखता था, तो उसकी अनदेखी कर दी जाती थी। हालाकि इस पूरे घोटाले के बीच निगम ने भले ही स्वयं को बचाने के लिए इन दोनों से पत्राचार किया था, लेकिन उसके अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध ही थी, जिसके चलते पुलिस ने केस दर्ज किया है।
कलेक्टर ने ली जानकारी
राशन दुकान संचालकों के खिलाफ केस दर्ज कराए जाने के बाद कलेक्टर ने आगे की कार्रवाई के संबंध में भी जांच दल के अधिकारी से चर्चा की थी। इसमें उनसे पुलिस द्वारा अब तक क्या कार्रवाई की गई, उसकी जानकारी भी जुटाई गई। साथ ही दोषियों को सजा दिलाने के साथ ही उनके द्वारा शासन को पहुंचाए गए करोड़ों रुपए के नुकसान की भरपाई भी उनसे ही करने के संबंध में निर्देशित किया गया है।
ठंडी पड़ी कार्रवाई
राशन घोटाले में अधिकारियों व ठेकेदार के खिलाफ कायमी होने के बाद से लेकर अब तक आगे की कार्रवाई ठंडी पड़ी हुई है। पुलिस अब तक दुकान संचालकों के साथ विक्रेताओं के नामों का पता नहीं लगा सकी है। वहीं प्रशासन का अमला संस्थाओं के जिन अध्यक्षों से जानकारी एकत्र करने की बात कह रहा है, वे स्वयं भी उसमें आरोपी बन सकते है, एेसे में उनके द्वारा दी गई जानकारी पर भी सीधे तौर पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

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