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ब्रेकिंग न्यूज: पेंशन के लिए भटक रही थी, पता चला कागजों में हो गई मौत

locationरतलामPublished: Feb 26, 2020 05:21:34 pm

Submitted by:

Yggyadutt Parale

दो साल से नगर निगम और प्रशासन दोनों ने नहीं की आज तक सुनवाई

ब्रेकिंग न्यूज: पेंशन के लिए भटक रही थी, पता चला कागजों में हो गई मौत

ब्रेकिंग न्यूज: पेंशन के लिए भटक रही थी, पता चला कागजों में हो गई मौत

रतलाम। नगर निगम की लापरवाही की दास्तां अगर शुरू की जाए तो शब्द कम पड़ जाए। कुछ ऐसी ही एक नई कहानी निगम की लापरवाही की किताब में दर्ज हो गई है। जी हां, एक महिला जो दो साल से विधवा पेंशन के लिए भटक रही थी। उसकी ना तो निगम में सुनवाई हो रही थी, ना ही प्रशासन उसकी सुन रहा था। काफी मशक्कत के बाद जब पेंशन रूकने के मूल कारण तक महिला पहुंची, तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। निगम अफसरों ने उसे बताया कि इसकी मौत तो लंबे समय से निगम के रिकार्ड में हो गई है। अब उसे खुद को जिंदा बताने की जुगत करना पड़ रही है।
पति की मौत के बाद नगर निगम में विधवा पेंशन लेने गई एक महिला को ही निगम ने मृत बता दिया। पति की मौत के बाद बीते दो साल से महिला पेंशन के निगम के चक्कर काट रही है लेकिन कागजों में अधिकारी उसे मृत बताकर पेंशन देने से बच रहे है। इस बात से दु:खी होकर पीडि़त मंगलवार को कलेक्टर कार्यालय पहुंची। यहां कलेक्टर से मुलाकात नहीं होने पर संयुक्त कलेक्टर एमएल आर्य से मिली और अपनी परेशानी बताई जिस पर संयुक्त कलेक्टर ने कागजों में मृत महिला को जिंदा करने के लिए दो सप्ताह का समय दे दिया। इतना ही नहीं यदि दो सप्ताह या १५ दिन में काम नहीं हो तो फिर से यहां आने की बात कही।
कलेक्टर कार्यालय पहुंची खातीपुरा निवासी रेखाबाई पति रामेश्वर ने बताया कि उसके पति रामेश्वर को वर्ष २०१८ में देहांत हो गया था। उसके बाद उसने शासन की विधवा पेंशन योजना का लाभ लेने के लिए नगर निगम के संबंधित विभाग में पहुंचकर आवेदन किया तो उनके द्वारा आज तक पेंशन चालू नहीं की गई। पेंशन नहीं मिलने के बारे में जब वह कुछ माह बात जानकारी लेने के लिए फिर से निगम पहुंची तो उसे बताया गया कि समग्र आईडी में रेखाबाई का नाम ही है, वह मर चुकी है। पीडि़ता ने जब अधिकारियों के सामने खड़ा होकर स्वयं का जिंदा होना बताया तो वहां उसकी सुनवाई नहीं हुई और कागज में जिंदा होने की बात कही गई।
आवेदन पर भी नहीं सुनवाई

निगम में मौजूद विभाग के अधिकारी व कर्मचारियों द्वारा दी गई जानकारी के बाद पीडि़ता ने कागजों में खुद को जिंदा करने के लिए भी आवेदन दिया लेकिन असल में आज तक जिंदा होने के बाद भी वह कागजों में जिंदा नहीं हो सकी। बीते दो वर्षों में निगम के चक्कर काटकर जब वह परेशान हो गई तो कलेक्टर कार्यालय पहुंची लेकिन उसे यहां भी मिली तो सिर्फ तारीख। इतना ही नहीं यदि दो सप्ताह या 15 दिन में काम नहीं हो तो एक मंगलवार छोड़ कर अगले मंगलवार को फिर से आने की सलाह भी साहब ने दी है, जिससे दु:खी होकर पीडि़ता यहां से भी लौट गई।

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