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रतलाम

जीवन में पर पदार्थ से ममत्व छोडऩा ही त्याग: पं. शास्त्री

पर्युषण पर्व का आठवां दिन उत्तम त्याग धर्म

रतलामSep 11, 2019 / 05:55 pm

Mukesh Mahavar

जीवन में पर पदार्थ से ममत्व छोडऩा ही त्याग: पं. शास्त्री

जीवन में पर पदार्थ से ममत्व छोडऩा ही त्याग: पं. शास्त्री

रतलाम. पर्वाधीराज पर्युषण महापर्व श्री आदिनाथ दिगंबर जैन चैत्यालय में धूमधाम से मनाया जा रहा है। मंगलवार को दशलक्षण धर्म का आंठवा लक्षण उत्तम त्याग का दिन है। इस अवसर पर आगरा से आए आमंत्रित पंडित गणतंत्र जैन शास्त्री ने प्रवचन में बताया कि निज शुद्धात्मा में लीन होकर बाह्य व आभ्यन्तर परिग्रह से निवृत्ति ही उत्तम त्याग है। पर पदार्थ से ममत्व छोङऩा ही त्याग है। राग-द्वेष परिणति का त्याग ही वास्तविक त्याग है। इस धर्म में राग-द्वेष के त्याग को ही उत्तम त्याग कहा गया है। प्रत्येक प्राणी को अपनी शक्ति के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए। दान चार प्रकार के हैं. सांस्कृतिक प्रोग्राम की श्रंखला में उदयपुर शाश्वत धाम से आई शास्त्री बालिकाओं कुमारी दृढ़ता जैन एवं कुमारी आशिका जैन ‘अकेले आत-अकेले जातÓ लघु नाटिका का मंचन किया गया। जिसमें सम्यक पाटोदी, शशांक जैन, शाश्वत पाटनी, सुहानी पाटनी, परी गोधा, अर्णव मोठिया, कृति गर्ग, दर्शन पाटोदी ने भाग लिया। इस अवसर पर आभा अजमेरा, मंजू बडज़ात्या, सुशीला गोधा, रानी मोठिया, शीतल बडज़ात्या, इंदु मोठीया, ललिता पाटोदी, हंसा छाबड़ा आदि मंडल के सदस्य भी उपस्थित थी।

भक्ति करने के पहले भक्त बनने की योग्यता आना चाहिए
भक्ति कौन करता है, भक्त बने बिना भक्ति नहीं हो सकती है। भक्ति करने के पहले भक्त बनने की योग्यता आना चाहिये। आप अपने आप को भक्त कहते हो लेकिन भक्त की पहचान क्या है। यह विचार भक्त और भक्ति पर यह प्रेरक प्रवचन गुरुदेव प्रियदर्शन महाराज ने नीमचौक की धर्मसभा में फरमाए। सौम्यदर्शन महाराज ने जीनसाशन के पांच ब्रांड के बारे में पिछले प्रवचन में बताया था की पुण्य हो तो शालीभद्र सेठ जैसा ब्रांडेड पूण्य हो। आज मसा ने दूसरे ब्रांड के बारे में बताया की भक्ति हो तो श्रेणिक महाराजा जैसी ब्रांडेड भक्ति हो। श्रेणिक महाराजा भगवान के परम भक्त थे । देवताओं ने उनकी भक्ति को डिगाने के लिए या भक्ति की परीक्षा लेने के लिए कई प्रकार के मायाजाल बिछाए, भगवान महावीर के बारे में दुष्प्रचार किया लेकिन श्रेणिक महाराजा की भक्ति नहीं डिगी वो अडिग रहे। भक्त भगवान को याद करे ये कोई विशेष बात नही है लेकिन भगवान अपने किसी भक्त को याद करे ये बड़ी बात है ।
भगवन महावीर भी श्रेणिक महाराज को याद करते थे । अगर बीज को वटवृक्ष बनना है तो उसे मिट्टी में मिलना होगा अपने अस्तित्व को मिटाना होगा। इसी प्रकार भक्त भी निस्वार्थ भाव से तन्मय होकर अपने आप को प्रभु के चरणों में समर्पित कर दे, अपनी इच्छओं का दमन कर दे।

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