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मालवा में साहित्य और राजनीति के एक युग की विदाई

locationरतलामPublished: May 14, 2018 01:57:12 pm

Submitted by:

sachin trivedi

पूर्व सांसद, साहित्यकार बालकवि बैरागी का निधन, आज मनासा नगर से निकलेगी अंतिम यात्रा

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रतलाम. मालवा माटी के सपूत प्रख्यात साहित्यकार एवं राजनेता बालकवि बैरागी का रविवार शाम निधन हो गया। वे 87 वर्ष के थे। बालकवि बैरागी रविवार दोपहर में नीमच में एक पैट्रोल पंप के उद्घाटन समारोह में आए थे। जहां उनका भाषण भी हुआ। इस कार्यक्रम के बाद वे ब्लाक कांग्रेस अध्यक्ष चंद्रशेखर पालीवाल एवं अन्य के साथ कार में गृह नगर मनासा लौट गए।कक्ष में वे आराम के लिए गए, शाम लगभग 4.30 बजे परिजनों ने उन्हें चाय के लिए उठाया तो फिर उनकी आंख नहीं खुली। वे अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गए। जिनमें उनके ज्येष्ठ पुत्र मुन्ना बैरागी, पुत्र वधु सोना, छोटे पुत्र गोर्की बैरागी एवं पुत्र वधु तथा पौत्र, पौत्री शामिल हैं। सोमवार को उनकी अंतिम यात्रा गृह नगर रामपुरा से लगे मनासा के कवि नगर से निकलेगी। अंतिम यात्रा में कई दिग्गज नेता और मालवा के प्रमुख शहरों के लोग और साहित्यकार भी पहुंच रहे है।
बालकवि बैरागी का वास्तविक नाम नंदराम दास बैरागी था। प्रदेश के तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री कैलाशनाथ काटजू ने मनासा में एक सभा में कविता पाठ के कारण उन्हें बालकवि नाम दिया गया था तब से आज तक वे बालकवि के नाम से ही जाने जाते रहे।बैरागी का जन्म १० फरवरी १९३१ को अविभाजित मंदसौर जिले के रामपुरा कस्बे में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा रामपुरा में ही हुई। निर्धन परिवार में जन्मे बैरागी बचपन से ही प्रतिभाशाली थे। उज्जैन से उन्होने हिंदी साहित्य में स्नातक और स्नातकोत्तर किया। १९४५ में रामपुरा में आयोजित हुए प्रजामंडल के पांचवे अधिवेशन में उनकी राजनैतिक जीवन की शुरूआत हुई। अधिवेशन में तत्कालीन समय के प्रसिद्ध गीतकार नरेंद्रसिंह तौमर किसी कारणवश नहीं पहुंच सके तो वहां बालकवि बैरागी को मंच सौंपा गया। तब बैरागी ने तौमर के गीत सुमधुर कंठ से प्रस्तुत किए और स्वयं का रचना पाठ भी किया। कई मंचों पर उन्हें जब बोलने का अवसर मिला तो उनकी वाकशैली ने सभी को प्रभावित किया। १९५६ में गांधीसागर बांध की आधारशिला रखने आए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सभा का उम्दा संचालन बालकवि बैरागी ने किया था। इसके बाद वे सतत मंच संचालन करते रहे। बैरागी को राजनीति में लाने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू रहे। बाद में माणकलाल अग्रवाल का उन्हें सानिध्य मिला। साहित्य और राजनीति का ताना बाना इस तरह चला कि बैरागी कांग्रेस में शीर्ष राजनेताओं में शुमार होने लगे। १९६७ से १९७२ तक वे मध्यप्रदेश सरकार में विधायक, १९८० से १९८४ तक मध्यप्रदेश सरकार में राज्य मंत्री रहे, इसके बाद उन्हें सूचना प्रसारण तथा संसदीय कार्य मंत्री बनाया गया, फिर वे खाद्य मंत्री भी रहे। १९८४ से १९८९ तक वे मंदसौर-जावरा संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे। १९९८ से २००४ तक वे राज्यसभा सदस्य रहे। कांग्रेस संगठन में भी उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिली। वे मप्र कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव भी रहे।तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह को दिग्गी राजा नाम बालकवि बैरागी ने ही दिया था। दिग्विजयसिंह भी बैरागी जी का राजनीति के पितामह की तरह सम्मान करते थे। केंद्र में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी , डा.मनमोहनसिंह के कार्यकाल में उन्हें शीर्ष संसदीय समितियों का सदस्य भी बनाया गया। वे राजभाषा समिति के समन्वयक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय के मानद सदस्य रहे। मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के उपाध्यक्ष पद पर ताउम्र रहे।
बैरागी की काव्ययात्रा
बालकवि बैरागी की प्रारंभिक रचनाएं मालवी बोली की थी। पहली बार बड़े मंच पर काव्यपाठ बैरागी ने १९५३ में तराना में किया। मालवी कवि के रूप में उन्हें अत्यधिक पसंद किया गया। उनकी प्रमुख रचनाएं पणिहारिन, लखारा, बादरवा अईग्या रे, मारो केलुआ रो टापरो देश विदेश में चर्चित हुई। वाशिंगटन डीसी एवं लंदन से भी उनकी मालवी रचनाओं का प्रसारण हुआ। नागपुर में आयोजित पहले विश्व हिंदी सम्मेलन में बैरागी जी ने महादेवी वर्मा, डा.शिवमंगलसिंह सुमन एवं कुसुमाग्रज के साथ कविता पाठ किया। वे सतत विश्व हिंदी सम्मेलन में भाग लेते रहे। अपने जीवनकाल में उन्होने ११ में से ५ विश्व हिंदी सम्मेलनों में अध्यक्षता करने की। बालकवि बैरागी ने हिंदी और मालवी में अपनी लेखनी चलाते हुए ३० से अधिक पुस्तकों का सृजन किया। उनकी प्रमुख पुस्तकों में चटक म्हारा चंपा, मैं उपस्थित हूं यहां, बिजुका बाबू, मनुहार भाभी, दरद दीवानी, जूझ रहा है हिंदुस्तान, ललकार, भावी रक्षक देश के, रेत के रिश्ते, वंशज का वक्तव्य, ओ अमलताश, आओ बच्चों, गाओ बच्चों, दादी का कर्ज, गौरव बीज, आलोक का अट्टहास, गुलीवर जहां, गीतबहार, शीलवंती आग आदि प्रमुख हैं। बालकवि बैरागी ने १० से अधिक फिल्मों के लिए गीतों की रचना की। उनका प्रसिद्धगीत तू चंदा मैं चांदनी, फिल्म रेशमा और शेरा का था जिसे स्वर लता मंगेशकर ने दिया था। रेशमा और शेरा फिल्म के अभिनेता सुनील दत्त, अमिताभ बच्चन और बालकवि बैरागी तीनों ही लोक सभा में सांसद रहे। तब प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। लता मंगेशकर और बालकवि बैरागी राज्यसभा में साथ रहे जिनकी सीटें भी पास में रहती थी। मालवी की पहली फिल्म भादवामाता के सभी गीत बालकवि बैरागी ने लिखे थे। मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र की शिक्षा विभाग की पाठ्यपुस्तकों में बैरागी जी की रचनाएं आज भी जीवित हैं। मध्यप्रदेश के चार विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में बालकवि बैरागी को पढ़ा जाता है। यह महत्वपूर्ण है कि बैरागी जी की कविताओं और कहानियों पर ५ से अधिक विश्वविद्यालयों के शोधार्थियों ने पीएचडी अर्जित की है। जिसमें बैंगलोर विश्वविद्यालय, जम्मू विश्वविद्यालय, विक्रम विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय एवं देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के शोधार्थी सम्मिलित हैं।
पुरस्कार और सम्मान
बालकवि बैरागी को अनेक सम्मान और पुरस्कारों से नवाजा गया है।जिनमें प्रमुख रूप से महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन का भामाशाह सम्मान, लता मंगेशकर अलंकरण सम्मान, मालवी का भेरा जी सम्मान, हिंदी का गोपालदास नीरज सम्मान, मध्यप्रदेश साहित्य का शिखर सम्मान, देश का राजभाषा शिखर सम्मान, अटल बिहारी वाजपेयी साहित्य सम्मान, डा.शिवमंगलसिंह सुमन सम्मान, मंगलाप्रसाद पारितोषिक आदि हैं।
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