रतलाम जिले से करीब 50 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश और राजस्थान की बॉर्डर पर जमीन से करीब 150 फीट और नीचे स्थित देवझर एक अत्यंत ही खूबसूरत जगह है। रतलाम से सैलाना और फिर कोटड़ा होते हुए पहाड़ों के बीच पथरीले रास्तों से होकर देवझर तक पहुंचा जा सकता है। देवझर याने की वो स्थान जहां झरने पर देवता आया करते थे। बताया ये भी जाता है कि यहां प्राचीन काल में तपस्वी तपस्या करने के लिए भी आते थे। जिसके प्रमाण आज भी यहां हैं। चट्टानों के बीच गुफा में प्राचीन शिवलिंग है। इस गुफा में जाने का रास्ता तो है लेकिन गुफा कहां खुलती है इसके बारे में किसी को भी नहीं पता।
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गुफा से ही कुछ दूरी पर चट्टानों पर नाखूनों से कुरेद कुरेद कर देवी देवताओं और भगवान विष्णु व मां लक्ष्मी के चित्रों को बनाया गया है। चित्रों की सुंदरता ऐसी है जो देखते ही बनती है। भगवान विष्णु आराम की मुद्रा में शेषनाग पर लेटे हुए हैं और पास ही मां लक्ष्मी विराजमान हैं। पास ही भगवान गणेश और तप करते भगवान भैरव के साथ ही अन्य देवी देवताओं को भी इन चित्रों में देखा जा सकता है। धरती से करीब 150 फीट नीचे पत्थर की चट्टान पर बने देवी देवताओं के ये चित्र किसने बनाए और ये कितने पुराने हैं इसका उल्लेख न तो इतिहास के पन्नों में दर्ज है और न ही किसी ग्रामीण को इसके बारे में जानकारी है। इस स्थान के पास ही पत्थरों का वो टीला भी है जिसे तपस्वी टीला कहा जाता है। बताया जाता है कि इन टीलो पर बैठकर ही तपस्वी तप किया करते थे। मान्यता ये भी है कि देवझर में गुफा में जो शिवलिंग है उसकी स्थापना पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान यहां पर की थी।
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