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वो बोली, जिंदगी कुछ दिन की है, मौत घर में चाहती हूं, फिर जो हुआ, पढे़ं पूरी खबर

locationरतलामPublished: Sep 21, 2018 12:53:33 pm

Submitted by:

Ashish Pathak

वो बोली, जिंदगी कुछ दिन की है, मौत घर में चाहती हूं, फिर जो हुआ, पढे़ं पूरी खबर

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रतलाम। साहब, मुझे कैंसर है, जीवन के अंतिम समय में चल रही हूं। जिंदगी तो कुछ दिन की है, मेरी अंतिम इच्छा है कि मौत घर में हो। जब से रेलवे में आई, दाहोद में ही हूं, अब तो घर भेज दो। पांच वर्ष से चक्कर काट रही हूं, कोई सुनता ही नहीं। ये शब्द किसी फिल्म के न तो संवाद है न किसी नाट्य समारोह में कहे जा रहे थे। ये शब्द उस महिला के है, जो नियमों के चलते परेशान हो रही थी।
ये मार्मिक शब्द दाहोद रेल कारखाना में कार्यरत गु्रप डी की एक महिला कर्मचारी के थे, जो पांच वर्षो से डीआरएम कार्यालय अपने तबादले के लिए चक्कर काट रही थी। जब डीआरएम आरएन सुनकर से मिली तो दो दिन में तबादला हो गया। ये बड़ी बात इसलिए है, क्योंकि रेल कारखाना डीआरएम सुनकर के अधीन नहीं आता है।
जब हुई तबादले की मांग


5200 ग्रेड पे से जुड़ी एक महिला कर्मचारी की नियुक्ति वर्ष 90 के दशक में मुख्य कारखाना प्रबंधक कार्यालय के मंडल अंतर्गत आने वाले दाहोद में हम्माल के रुप में हुई थी। यहां पर कार्य करने के दौरान ही महिला कर्मचारी को पता चला कि उनको कैंसर की बीमारी है। इलाज का प्रयास किया, लेकिन सफलता मिलने के बजाए दिन ब दिन बीमारी बढ़ती चली गई। इस बीच जब बीमारी अधिक गंभीर हुई तो उक्त महिला कर्मचारी ने अपने तबादले की मांग बीमारी के आधार पर की।
हर डीआरएम ने कहा नहीं संभव

उक्त महिला कर्मचारी ने नाम न प्रकाशन के आग्रह के साथ बताया कि पांच वर्ष में तीन डीआरएम से मिली। सभी ने बीमारी पर अफसोस तो जताया, लेकिन मदद का अधिकार नहीं का शब्द कह दिया। कुछ दिन पूर्व नए डीआरएम के बारे में साथियों से पता चला तो एक बार फिर अंतिम उम्मीद लेकर आई। क्योकि अब जिंदगी कुछ दिन की है। मानसिक रुप से ये सुनने को तैयार थी कि पूर्व की तरह ये सुनने को मिलेगा कि तबादला का अधिकार नहीं है, लेकिन जब आई तो व्यवहार अलग हुआ।
एक सप्ताह का भरोसा दिया

महिला कर्मचारी ने बताया कि डीआरएम ने दस्तावेज देखने के बाद कहा कि एक सप्ताह का समय दो। कुछ न कुछ तो करेंगे। इसके बाद उज्जैन में पद रिक्त होने की जानकारी निकलने पर खुद फोन पर सूचना दी कि तबादला उज्जैन हो सकता है। इसके बाद एक सप्ताह के अंदर ही उनको तबादला से लेकर उज्जैन जाकर तुरंत पदभार लेने के आदेश हुए। इसके बाद वे उज्जैन जा रही है।
ये मेरे लिए तो भगवान है

ये मेरे लिए तो भगवान है। उम्मीद ही नहीं थी कि जीवन के अंतिम समय में अपने घर पहुंच पाउंगी। मेरे जीवन में ये चमत्कार है, जो डीआरएम सर ने किया है।
– ममता गेहलोद, परिवर्तित नाम, गु्रप डी कर्मचारी
मानवीयता देखना जरूरी


कई कर्मचारी तबादले के लिए मिलते है। एेसे मामलों में मानवीयता देखना जरूरी होता है। मालवीय आधार पर ही उनका तबादला हुआ है।

आरएन सुनकर, मंडल रेल प्रबंधक
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