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श्रीसिद्ध चक्र महामंडल विधान में गुरूभक्त भक्ति रस से हुए सराबोर

locationरतलामPublished: Nov 20, 2018 11:46:26 am

Submitted by:

Gourishankar Jodha

श्रीसिद्ध चक्र महामंडल विधान में गुरूभक्त भक्ति रस से हुए सराबोर

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श्रीसिद्ध चक्र महामंडल विधान में गुरूभक्त भक्ति रस से हुए सराबोर

रतलाम। शंका समाधान के विद्वान प्रखर वक्ता मुनिश्री प्रमाणसागर महाराज व वाणी के जादूगर मुनिश्री विराटसागर के सानिध्य में 48 मण्डलीय बीजाक्षर मंत्रों की रचना युक्त श्री 1008 श्री सिद्व चक्र महामंडल विधान समारोह में सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से गुरुभक्त भक्ति के रस में सराबोर हो रहे है। वर्षायोग के प्रसंग और अष्टानिका महापर्व के अवसर रतलाम सहित देशभर से आए गुरुभक्त भक्तिभावना और समूचे विधान से धार्मिक क्रियाओं को संपन्न करने में लगे हुए है।
विद्यावाटिका में आयोजित इस महोत्सव के अन्तर्गत प्रतिदिन संध्याकालीन महाआरती और सांस्कृतिक आयोजन किए जा रहे है। महामंडल विधान के दौरान गत रात दृष्टि पब्लिक स्कूल सनावद और सूरत गुजरात से आई डिम्पल डेप्यूटी शाह ने कलाश्री गु्रप के दो दर्जन कलाकारों के साथ विभिन्न प्रस्तुति दी। जिसे पांडाल में मौजूद हजारों गुरुभक्तों ने सराहा है। दृष्टि पब्लिक स्कूल सनावद ने मुनिश्री की उपस्थिति में गुरु गौरव गाथा की ४५ मिनट की आकर्षक प्रस्तुति देकर पांडाल में मौजूद भक्तों को भाव विभोर कर दिया।
सर्वधर्म के बालकों की नृत्य नाटिका
इस मौके पर नृत्य नाटिका की निर्देशक नीतू सुनील जैन डीपीएस सनावद ने कहां कि वर्तमान के वर्धमान, इस पंचमकाल में चतुर्थकाल की चर्या दिखाने वाले महान संत आचार्य प्रवर विद्यासागर महाराज के प्रेरणादायी बाल्यकाल, मर्यादित किशोरवय और तेजोमयी यौवन अवस्था को यदि हम आत्मसात कर पाये तो घोर पतन के इस युग में भी निरापद रह सकते है। इस नृत्य नाटिका में शामिल बच्चों में हिन्दू, मुस्लिम, सिख व ईसाई सहित जैन धर्म के बाल कलाकार मौजूद रहे। दिगम्बर जैन धर्म प्रभावना समिति के पदाधिकारियों ने बच्चों का सम्मान भी किया। सूरत गुजरात से आए कलाश्री ग्रुप के कलाकारों ने डिम्पल शाह ने मंच पर नवकार मंत्र, मनुष्यदीप, गुरु वंदना, लाल गुलाल, त्रिशला मां, मुक्ति का वरदान, रणकार शहनाई, जनजन के महावीर, जैन पैरोड़ी और ऊंचा अम्बर की प्रस्तुति दी।
उत्क्रांति का अर्थ है ऊंचा उठना-आचार्यश्री रामेश
समता कुंज में अमृत देशना के दौरान उत्क्रांति की प्रेरणा देते हुए आचार्यश्री रामेश ने कहा कि उत्क्रांति का अर्थ ऊंचा उठना होता है अर्थात जिस व्यवस्था में व्यक्ति बंधा होता है उससे उपर उठ जाना। ज्ञान चेतना जागृत होती है, तो व्यक्ति राग-द्वेष आदि सभी से उपर उठ जाता है। यह तभी संभव होता है, जब मन और बुद्धि पवित्र बनी रहे। मन इच्छाओं और अभिलाषाओं से मलीन होता है, ऐसी इच्छाओं से मन को सदैव दूर रखे। बुद्धि का पवित्र और निर्मल होना जरूरी है। बुद्धि सही दिशा में रहेगी, तो मन में भटकाव नहीं आएगा। उन्होंने कहा कि जीवन के हर मोड़ पर व्यक्ति को निर्णय लेना पड़ता है। निर्णय बुद्धि की पवित्रता से हो और उसमें मन की मलीनता नहीं हो, तो मनुष्य विवेकी होकर अपने जीवन को धन्य बना पाएगा।
सोमवार को आचार्यश्री की निश्रा में गोतममुनि ने संयम साधना महोत्सव के बाद के कार्यक्रमों की घोषणा की। चातुर्मास संयोजक महेन्द्र गादिया ने बताया कि 25 नवंबर को सुबह की प्रार्थना धर्मपाल छात्रावास दिलीप नगर में होगी, इसके बाद वहां से विहार होगा। 25 एवं 26 नवंबर को प्रवचन स्टेशन रोड पर होंगे। इसके बाद 26 नवंबर को काटजू नगर में प्रवेश होगा। 27 नवंबर को आचार्यश्री समता कुंज में आयोजित दीक्षा महोत्सव में शामिल होंगे। इसमें मुमुक्षु निकिता मूणत, सुशीला मेडतवाल एवं कमलादेवी बोथरा जैन भागवती दीक्षा अंगीकार करेंगी। प्रशममुनि महाराज, महासतिश्री कल्पमणिश्री, करिश्माश्री ने भी संबोधित किया। आरंभ में पुष्पा सेठिया, राकेश देवड़ा, श्रेणिक पिपाड़ा एवं समता बालिका मंडल ने विचार रखे। संचालन सुशील गादिया ने किया।
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