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मन की स्थिति बदलो विपरीत परिस्थिति बदल जाएगी – प्रमाणसागर

locationरतलामPublished: Sep 03, 2018 05:35:07 pm

Submitted by:

harinath dwivedi

लोकेन्द्रभवन में चातुर्मास में आयोजित धर्मसभा

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मन की स्थिति बदलो विपरीत परिस्थिति बदल जाएगी – प्रमाणसागर

रतलाम। आज हर किसी के चेहरे पर परेशानी और दु:ख के भाव हैं। किसी को अभाव का द:ुख है तो कोई वियोग का रोना रो रहा है, कोई अतीत को याद कर घबराया है तो कोई आने वाले कल की चिंता में दुबला हुआ जा रहा है। एक नजर में देखे तो ये सभी दुनियादारी की बाहरी समस्याएं हैं। मगर कोई अपनी मनन स्थिति को बदलकर विपरीत परिस्थितियों को समाप्त करने का प्रयास नहीं करता है। जीवन में जो दु:ख और सुख के संयोग बनते हैं वो कर्म की संतान हैं। जिन्दगी में आने वाले बड़े से बड़े आघातों को तुम सहजता से सहन करने में सफल हो जाओगे। ये तो कर्म का उदय है जो आज आया है वो कुछ पल में चला भी जाएगा। यह बात मुनिश्री प्रमाण सागर मसा ने कही। वे लोकेन्द्रभवन में चातुर्मास में आयोजित धर्मसभा में गुरुभक्तों को जीवन में आए काल्पनिक, वियोग जन्य, अभाव जन्य और परिस्थितिजन्य दु:खों के निदान के उपाय बता रहे थे। उन्होंने कहा कि धर्म-कर्म और मानवता से जुड़े कार्यो को अपना कर अपने जीवन को उत्कृष्ट बनाया जा सकता है। क्योंकि हमारी अज्ञानता से द:ुख तो जीवन विज्ञान को समझने से सुख की प्राप्ति होती है। मुनिश्री ने कल्पनाजन्य दु:ख का मतलब समझाते हुए कहा कि लोग अपने अतीत को याद कर दु:खी होते हैं और भविष्य की चिंता का रोना अक्सर रोते हैं कि हमने क्या किया था और आगे क्या होगा। इन दोनों सोच के कारण इनका वर्तमान बर्बाद हो रहा है। ये कोई नहीं समझना चाह रहा है। अगर हमें अपना आज सुधारना है तो कल और आने वाले कल की चिंता पर विचार करने की बजाय वर्तमान को सुधारने का प्रयास करना चाहिए।
वर्तमान में कर्मयोगी बनो : मुनिश्री ने कहा कि अतीत तो व्यतीत हो चुका है, और आने वाले कल की चिंता करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है। अपने अतीत से अनुभव लो कि हम क्या सुधार कर सकते हैं। इससे आपका वर्तमान सुधर जाएगा। आने वाले कल की चिंता करने की बजाय अपने वर्तमान में कर्मयोगी बनोगे तो भविष्य अपने आप सुधर जाएगा।
पैसे और संतान वालों से पूछो कितने सुखी हैं
मुनिश्री ने कहा कि ज्यादातर लोगों के दु:ख का कारण अभाव है, पैसे को होना और नहीं होना है। सबकी रोजी रोटी की अलग-अलग चिंता है। कई लोगों को सवाल रहता है कि क्या हमें धर्म रोटी खाने को दे सकता है, जिसके पास पैसा नहीं है वो दूसरे के पैसों को देख कर दु:खी हो रहा है। जीवन में ये ही अभाव व अल्पता दु:खों का बड़ा कारण बन रही है।
धीरज रखो, बुरा समय बीत जाएगा
मुनिश्री ने कहा सुख और द:ुख में समभाव रखें। इसका अभ्यास करे। सुख में मगन न फूले व दु:ख में कभी न घबराएं। इष्ट वियोग अनिष्ट योग में सहनशीलता दिखलाएं । जब सुख आए तो इतराओ मत और दु:ख से घबराओ मत। यह अज्ञानता है। ये सुख भी तुम्हारा नहीं है तो और दु:ख भी तुम्हारा नहीं है। वक्त और बुरे हालातों मेें परिस्थितियों को बदलने का प्रयास करो। थोड़ी देर सोचो कुछ देर की बात है, सब ठीक हो जाएगा। हर स्थिति और परिस्थिति में सकारात्मक सोच रखो।

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