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अंग्रेजों के बनाए नियम से चल रहे इस्टिट्यूट, अब भी सदस्यता शुल्क 4 रुपए मात्र

locationरतलामPublished: Jan 16, 2022 05:43:35 pm

Submitted by:

sachin trivedi

निर्माण परिवार के मनोरंजन के लिए, उपयोग होता मांगलिक आयोजन के लिए

अंग्रेजों के बनाए नियम से चल रहे इस्टिट्यूट, अब भी सदस्यता शुल्क 4 रुपए मात्र

अंग्रेजों के बनाए नियम से चल रहे इस्टिट्यूट, अब भी सदस्यता शुल्क 4 रुपए मात्र

रतलाम. रेलवे कॉलोनी में अंगे्रजों के समय बनाए गए सीनियर व जुनियर रेलवे इंस्टिट्यूट में अब भी किराया सदस्यता के लिए मात्र 4 रुपए प्रति सदस्य चल रहा है। इसका निर्माण अंगे्रजों ने काम के बाद परिवार के साथ मनोरंजन के लिए किया गया था, लेकिन अब इसका उपयोग मात्र मांगलिक आयोजन से लेकर रेलवे संगठन के होने वाले सालाना सेमिनार के लिए रह गया है।
भारतीय रेलवे में ब्रिटिश रेलवे से संचालित इंस्टिट्यूट कर्मचारियों के आमोद प्रमोद एवं परिवार के लिए स्थापित किए गए थे। कर्मचारी अपने कार्य स्थल से लौटने के बाद इसका उपयोग अपने स्वास्थ एवं उपयोगी एनर्जी बनाए रखने के लिए करता था, लेकिन वर्तमान में इन इंस्टिट्यूट का उपयोग अब सिर्फ रेलवे के संगठनों के लिए कर्मचारियों के बीच अपने वर्चस्व की लड़ाई को बनाए रखने के लिए कर दिया गया है। वर्तमान में हर 2 साल बाद इसके चुनाव मंडल के इंस्टीट्यूट पर संपन्न होते हैं, लेकिन आज भी इनके नियम में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। आज भी 4 रुपए सदस्यता शुल्क है।
समिति की बैठक तक नहीं होती

कहने को इसके संचालन के लिए समिति का गठन किया जाता है। लेकिन समिति की बैठक नाममात्र के लिए भी नहीं होती है। समिति में चेयरमैन जे ग्रेड अधिकारी के अलावा रेल प्रशासन के ८ सदस्य, दो सदस्य मान्यता प्राप्त संगठन के सदस्य के अलावा सुपरवाइजर द्वारा बताए गए कर्मचारी होते है। इसमे कोषाध्यक्ष व सचिव का चुनाव होता है। अब तो रेल कर्मचारी भी कहने लगे है कि इंस्टिट्यूट को निजी हाथ में सौप दे तो रेलवे को आय होगी।
चुनाव कराना जरूरी
बार – बार मांग के बाद भी इंस्टिट्यूट में चुनाव नहीं करवाए जा रहे है। इसको लेकर कई बार संगठन ने मांग की है। – अशोक तिवारी, प्रवक्ता, वेस्टर्न रेलवे एम्प्लाइज यूनियन
निजी हाथ में देना चाहिए

इंस्टीट्यूट की बैठक कब होती है, क्या निर्णय लिए जाते है, यह किसी को नहीं पता चलता। अंगे्रजों के द्वारा बनाया गया ४ रुपए का सदस्यता शुल्क का नियम चल रहा है। इसे निजी हाथ में देना चाहिए, जिससे रेलवे को बेहतर आय हो।
– प्रकाशचंद्र व्यास, अध्यक्ष सेंट्रल रेलवे पेंशनर्स एसोसिएशन

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