पहले समझे क्या होता है श्राद्ध महालय या श्राद्ध का आशय होता है अपने पूर्वज, पुरखे, पितर आदि को प्रसन्न करना। गरुणपुराण के अनुसार जिस किसी के परिवार के सदस्य अब संसार में नहीं है, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए या शांति के लिए भक्ति के साथ संकल्प लेकर जो तर्पण किया जाता है उसको श्राद्ध कहा जाता है। असल में चित्रगुप्त के दरबार से यमराज उस अतृप्त आत्मा को मुक्त श्राद्ध के समय करते है। क्योंकि ये वो समय होात है जब आत्मा स्वजन या परिवार के यहां आकर तर्पण को ग्रहण करती है।
पूर्वज व पुरखों में होता अंतर आमतोर पर भारतीय जनमानस पूर्वज व पुरखों में भेद या अंतर नहीं समझता। पूर्वज वे होते है जो पूर्ण आयु होने के बाद जाते है। जबकि पुरखे उनको कहा जाता है जो अपुर्ण आयु के साथ किसी विशेष घटना या दुर्घटना के समय जाते है। वे लोग जहां विवाहित, अविवाहित, वृद्ध, बच्चा, स्त्री हो या पुरुष सभी इस श्रेणी में आते है। अगर ये प्रसन्न होते है तो परिवार में सुख व शांति आती है।
वर्ष में एक बार बनता है योग वर्ष में एक बार श्राद्ध का योग आता है। हिंदू धर्म में इस बारे में बताया गया है कि भाद्रपक्ष की पूर्णिमा को पहले दिन सिर्फ उनका श्राद्ध किया जाता है, जो पूर्णिमा के दिन गति को प्राप्त किए हो। परिवार के सदस्यों का निधन जिस तिथि को हुआ हो, उसी तिथि के दिन श्राद्ध करना चाहिए। अगर श्राद्ध की तिथि याद नहीं रहे तो भी पूरे 16 दिन तक पूर्वज, पुरखों को याद करने से उनको शांति मिलती है। इसके अलावा अश्विन मास की अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या इसलिए ही होती है। इतना ही नहीं, किसी की अगर अकाल मृत्यु हुई हो एेसे लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। ऐसे ही पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करने की मान्यता है।
श्राद्ध में भूलकर नहीं करें ये कार्य श्राद्ध में कुछ कार्य भूलकर भी नहीं करना चाहिए। पहले ये जाने कि श्राद्ध करने का अधिकार सबसे बडे़ पुत्र को, पुत्र नहीं हो तो प्रपौत्र को, दोनों नहीं हो तो पति, पत्नी या बेटी को है। पितरों को खुश रहने के लिए श्राद्ध के दिनों में विशेष कार्य करना चाहिए वही कुछ वर्जित कार्य नहीं करना चाहिए। जिसके घर में श्राद्ध हो, एेसे व्यक्ति को दूसरे से दिया पान व भोजन नहीं करना चाहिए। श्राद्ध के दौरान लोहे के बर्तन का उपयोग नहीं होना चाहिए। इस दौरान अगर कोई कुछ मांगने आए तो देने से इंकार नहीं करना चाहिए। जब तक तर्पण कार्य नहीं हो, तब तक भोजन स्वयं या श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को नहीं करना चाहिए।
ये है पितृपक्ष कैलेंडर 2018 24 सितंबर 2018 सोमवार पूर्णिमा श्राद्ध।
25 सितंबर 2018 मंगलवार प्रतिपदा श्राद्ध।
26 सितंबर 2018 बुधवार द्वितीय श्राद्ध।
27 सितंबर 2018 गुरुवार तृतीय श्राद्ध।
28 सितंबर 2018 शुक्रवार चतुर्थी श्राद्ध।
29 सितंबर 2018 शनिवार पंचमी श्राद्ध।
30 सितंबर 2018 रविवार षष्ठी श्राद्ध।
1 अक्टूबर 2018 सोमवार सप्तमी श्राद्ध।
2 अक्टूबर 2018 मंगलवार अष्टमी श्राद्ध।
3 अक्टूबर 2018 बुधवार नवमी श्राद्ध।
4 अक्टूबर 2018 गुरुवार दशमी श्राद्ध।
5 अक्टूबर 2018 शुक्रवार एकादशी श्राद्ध।
6 अक्टूबर 2018 शनिवार द्वादशी श्राद्ध।
7 अक्टूबर 2018 रविवार त्रयोदशी श्राद्ध व चतुर्दशी श्राद्ध।
8 अक्टूबर 2018 सोमवार सर्वपितृ अमावस्या, महालय अमावस्या।
25 सितंबर 2018 मंगलवार प्रतिपदा श्राद्ध।
26 सितंबर 2018 बुधवार द्वितीय श्राद्ध।
27 सितंबर 2018 गुरुवार तृतीय श्राद्ध।
28 सितंबर 2018 शुक्रवार चतुर्थी श्राद्ध।
29 सितंबर 2018 शनिवार पंचमी श्राद्ध।
30 सितंबर 2018 रविवार षष्ठी श्राद्ध।
1 अक्टूबर 2018 सोमवार सप्तमी श्राद्ध।
2 अक्टूबर 2018 मंगलवार अष्टमी श्राद्ध।
3 अक्टूबर 2018 बुधवार नवमी श्राद्ध।
4 अक्टूबर 2018 गुरुवार दशमी श्राद्ध।
5 अक्टूबर 2018 शुक्रवार एकादशी श्राद्ध।
6 अक्टूबर 2018 शनिवार द्वादशी श्राद्ध।
7 अक्टूबर 2018 रविवार त्रयोदशी श्राद्ध व चतुर्दशी श्राद्ध।
8 अक्टूबर 2018 सोमवार सर्वपितृ अमावस्या, महालय अमावस्या।