ज्योतिषी जोशी ने कहा कि शीतला सप्तमी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर शीतल या ठंडे जल से स्नान करने के बाद माता शीतला के मंदिर में जाकर पूजा विधि विधान करने का नियम है। सबसे पहले माता को श्रीफल अर्पित किया जाता है व एक दिन पूर्व बने भोजन को भोग या नैवेद्य के रुप में चढ़ाया जाता है। इसके अलावा एक दिन पूर्व पानी में भिगोई चने की दाल को चढ़ाने का रिवाज भी है। पूजा करने के बाद माता की कथा को सुनने के बाद घर आते है। घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर हल्दी, कुंकु, गुलाल आदि से दोनों तरफ पांच छापे लगाए जाते है। पूजा के दौरान उपयोग किए गए जल को घर में अलग-अलग हिस्से में छांटा जाता है।
स्कंद पुराण में है इनका उल्लेख शीतला माता की महिमा का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। इस पर्व को बूढ़ा बसोड़ा या लसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। शीतला माता के हाथ में झाडू और कलश होता है। माता के हाथ में झाडू होने का अर्थ लोगों को सफाई के प्रति जागरुक करने से होता है। कलश में सभी देवी-देवताओं का वास रहता है। शीतला माता रोगों का नाश करने वाली मानी गई है। इनका वाहन गर्दभ है। शीतला सप्तमी व अष्टमी उत्तर भारत में मनायी जाती है।