ज्योतिषी जोशी ने बताया कि आदिकाल, रामायण और महाभारत काल से श्राद्ध विधि का वर्णन सुनने को मिलता है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भी भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के संबंध में कई ऐसी बातें बताई हैं, जो वर्तमान समय में बहुत कम लोग जानते हैं। महाभारत के अनुसार, सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश महर्षि निमि को महातपस्वी अत्रि मुनि ने ही दिया था। इस प्रकार पहले उल्लेख है कि निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया। उसके बाद अन्य महर्षि भी श्राद्ध करने लगे थे।
इस तरह से जुड़ा है मां सीता से ज्योतिषी जोशी ने बताया कि इस बात का विस्तार से उल्लेख शास्त्र में मिलता है कि जब भगवान राम की पत्नी मां सीता के साथ जब बिहार के गया में पिता का श्राद्ध करने पहुंचे थे। तब भगवाल श्रीराम जब श्राद्ध सामग्री लेने गए तो पीछे से उनके पिता व राजा दशरथ प्रकट हुए और उन्होंने सूर्यास्त होने की बात कह सीता को श्राद्ध करने के लिए कहा। सीता ने कहा कि उनके पास सामान नहीं है तो राजा दशरथ ने कहा कि वो बालू मिट्टी का पिंड बनाकर ही पिंडदान करें। ऐसे मेें सीता ने इस प्रक्रिया को करते हुए वहां मौजूद गाय, फलगू नदी, ब्राह्मण और अक्षयवट को साक्ष्य बनाया था।
इसलिए दिया था मां ने श्राप भगवान श्रीराम के आने पर अक्षयवृक्ष यानि बरगद के पेड़ को छोडक़र सभी इस साक्ष्य मुकर गए। सभी ने पिंडदान नहीं करने की बात कही। सभी ने भगवान राम के हाथों श्राद्ध विधि पाने की खातिर ऐसा किया था। इससे नाराज होकर सीता जी ने फलगू नदी को जमीन में समाने, ब्राह्मण और गाय का कलयुग में अनादर होने का श्राप दिया। वहीं सच बोलने की खातिर अक्षयवृक्ष को हमेशा हरा भरा रहने का वरदान दिया। मान्यता है कि बिहार के गया में आज भी अक्षयवृक्ष है और उसकी पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है।