जीवन में यदि धर्म लाना है, तो उसकी पात्रता पाना आवश्यक है। क्षमा, निर्लोपता, सरलता एवं नम्रता ये चार धर्म के द्वार हैं। जीवन में इनका प्रवेश होने पर ही व्यक्ति धर्म का पात्र बनता है। संसार की कोई भी वस्तु पात्र के बिना नहीं टिकती, इसलिए धर्म के लिए उसका पात्र बनना जरूरी है। लोग कहते हैं की दया, धर्म की जननी है। लेकिन ज्ञानी कहते हैं कि क्षमा धर्म का प्रादुर्भाव करती है। संसार में रहने वाले त्याग, तपस्या, धर्म-ध्यान आदि सभी करते हैं, लेकिन क्षमा, निर्लोपता, सरलता और नम्रता के गुण नहीं आवे, तो सभी व्यर्थ है। भगवान की वाणी को भी सिर्फ सुनो और जीवन में नहीं उतारो, तो उसका सुनना निर्रथक है।
यह बात प्रवर्तक जिनेंद्रमुनि महाराज ने कहीं। नोलाईपुरा स्थित श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि बोलने से कभी मोक्ष प्राप्त नहीं होता। यदि ऐसा होता, तो साधना की जरूरत ही नहीं पड़ती। मोक्ष तभी प्राप्त होगा, जब उसकी पात्रता हासिल रहेगी । क्रोध, लोभ, मोह, माया आदि आत्मा के अवगुण है। इनसे हर व्यक्ति को दूर रहना चाहिए। अपने जीवन को सुंदर बनाना है, तो सद्गुणो से महकाना होगा। अवगुणों को छोडऩे और सद्गुणों की प्राप्ति होने पर ही मोक्ष का लक्ष्य प्राप्त होता है।
अणुवत्स संयतमुनि महाराज ने कहा कि आत्मा को कषायों से दूर रखना चाहिए। वर्तमान में कई लोगों की आत्मा में क्रोध, लोभ, मान-माया, राग-द्वेष का कचरा भरा पड़ा है। इस कचरे की सफाई के लिए धर्म आराधना करनी चाहिए। होली चोमासी का यह प्रसंग तभी सार्थक होगा। जब सभी धर्म की पात्रता हासिल कर लेंगे। धर्म सभा में साध्वीश्री नेहप्रभाश्री, अनंतगुणाश्री तथा अणुश्री श्राविका मंडल ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। गुजरात से आए लिमडी श्रीसंघ की और से हंसमुख गोलेछा ने वर्षावास की विनंती की। संचालन राजेश कोठारी ने किया। अंत में प्रभावना का वितरण किया गया।