संभाग में एकमात्र ऐसा स्कूल
जिला मुख्यालय के इस सरकारी स्कूल में 9वीं से 12वीं तक की 285 छात्राएं अपना भविष्य गढऩे की पढ़ाई कर रही हैं। इन्हें पढ़ाने के लिए 14 शिक्षकों के स्टाफ के साथ एक प्राचार्य, एक खेल शिक्षक, एक तृतीय श्रेणी कर्मचार व 4 भृत्य तैनात है। यह स्कूल ओसवाल बड़े साथ ट्रस्ट नयापुरा की धर्मशाला में संचालित हो रहा है। प्राचार्य शशिकला परिहार 9 सितंबर 2011 से इस स्कूल को संभाल रही हैं, जो बताती हैं कि हमने कई बार स्कूल भवन के लिए पत्र व्यवहार किया, तब जाकर कुछ वर्ष पूर्व स्कूल भवन के लिए नगर निगम से भूमि मिली, लेकिन कहां है हमें पता नहीं। उनके अनुसार उस भूमि पर भवन निर्माण का भूमिपूजन भी हो चुका है, लेकिन हमें नहीं बुलाया गया। इधर अतिरिक्त जिला परियोजना समन्वयक गिरीश तिवार ने बताया कि पुराने उज्जैन के उर्दूपुरा में ननि ने जमीन सौंपी है, जिसकी डीपीआर पर काम चल रहा है। अभी इस भूमि पर भवन का निर्माण कब शुरू होगा और कब स्कूल वहां शिफ्ट होगा इसका पता नहीं।

बैंड की आवाज में बोर्ड पर पढ़ाई
स्कूल शिक्षकों का कहना है कि विवाह समारोह के समय भी स्कूल चलता है। जब बैंड या साउंड सिस्टम की आवाज गुंजती है, बोर्ड पर लिखकर पढ़ाई होती है। जबकि शांत वातावरण में किताबों से पढ़ाई होती है। छात्राओं का कहना है कि आवाज से बचने के लिए क्लास रूम के दरवाजे, खिड़की बंद करने के बाद भी शोरगुल से पूरी तरह छूटकारा नहीं मिलता है।
शिक्षा मंत्री रहे हैं उज्जैन के विधायक
सरकार के पिछले कार्यकाल में उज्जैन के विधायक पारसचंद्र जैन शिक्षा मंत्री रहे हैं, जिनके विधानसभा क्षेत्र में यह स्कूल आता है। बावजूद इसके अब तक उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया। धर्मशाला की दो मंजिलों पर बने 10 कमरों में चल रहे इस स्कूल की छात्राओं की क्षमता इस बात से परखी जा सकती है कि वे प्रतिदिन शोरगुल के बीच अपने भविष्य की सीढिय़ां चढऩे के लिए शिक्षा विभाग के साथ शासन, प्रशासन की लापरवाही से कदमताल करने को मजबूर हैं।
स्कूल में नहीं रैंप
भवन के भूतल पर धर्मशाला है, जबकि प्रथम और द्वितीय मंजिल पर स्कूल चल रहा है। स्कूल पहुंचने के लिए चढ़ाव चढऩा पड़ता है, लेकिन दिव्यांगों के लिए स्कूल में रैंप नहीं है, जो एक बड़ी लापरवाही है।