
रेड इंडियन की खास पसंद था मोती
विवि के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने बताया कि रामायण काल में मोती का उपयोग काफी प्रचलित था। मोती की चर्चा बाइबल में भी की गई है। साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व अमरीका के मूल निवासी रेड इंडियन मोती को काफी महत्व देते थे। उनकी मान्यता थी कि मोती में जादुई शक्ति होती है। ईसा के बाद छठी शताब्दी में प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक वराहमिहिर ने बृहत्संहिता में मोतियों का विवरण दिया है। भारत में उत्तर प्रदेश के पिपरहवा नामक स्थान पर शाक्य मुनि के अवशेष मिले हैं, जिनमें मोती भी शामिल हैं। भारत में कई जगह पर मोती की खेती होती है, प्राय: यह खेती समुद्र में होती है। मोती की खेती मानव द्वारा मीठे जल में प्रारम्भ करते हुए विभिन्न रंग एवं आकर के मोती बनाए जा रहे हैं।

सीप को चीरकर निकालते हैं मोती
मोती की खेती के लिए सर्वप्रथम उच्च कोटि की सीप ली जाएगी, जिसमें मुख्यत: समुद्री ऑयस्टर पिंकटाडा मैक्सिमा तथा पिकटाडा मर्गेरिटिफेरा, पिकटाडा बुल्गैरिस इत्यादि प्रजातियां शामिल हैं। मोती की खेती हेतु सीप का चुनाव कर लेने के बाद प्रत्येक सीपी में छोटी सी शल्य क्रिया की जाएगी। इस शल्य क्रिया के बाद सीपी के भीतर एक छोटा सा नाभिक तथा मैटल ऊतक रखा जायेगा। इसके बाद सीप को इस प्रकार बन्द किया जायेगा कि उसकी सभी जैविक क्रियाएं पूर्ववत चलती रहें। मेंटल ऊतक से निकलने वाला पदार्थ नाभिक के चारों ओर जमने लगेगा तथा इसे अन्त में मोती का रूप दिया जायेगा। कुछ दिनों के बाद सीप को चीर कर मोती को निकाल दिया जाएगा।

इस तरह होगी मोती की खेती
एक्वाकल्चर सेंटर के संचालक एवं सह-संचालक डॉ अरविन्द शुक्ल एवं डॉ शिवि भसीन ने बताया कि विवि के उज्जैन के सेंटर में मोती का निर्माण करने में 12 से 15 महीने लगेंगे एवं इस प्रक्रिया में जीवित सीपों में छोटी सी शल्य क्रिया करनी होती है, जिसके बाद सीपों को कोई भी रूप दिया जा सकता है। जैसे गणेश या फूल की आकृति जिससे मोती एक सुंदर आकार ले लेता है। प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ सलिल सिंह ने बताया कि मोती उत्पादन का सर्वश्रेष्ठ समय शरद ऋतु है और वर्तमान परिस्थितियों में यह प्रयास किया जा रहा है कि सितम्बर-अक्टूबर तक एक्वाकल्चर सेंटर में मोती का निर्माण किया जा सके।
रोजगारपकर पाठ्यक्रमों का संचालन
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया कि एक्वाकल्चर सेंटर में मोती की खेती करने के साथ-साथ इसका प्रशिक्षण किसानों, विद्यार्थियों एवं नौजवानों को दिया जाएगा जो इसका उपयोग कर अपने स्वयं का रोजगार स्थापित कर सकेंगे एवं विक्रम विश्वविद्यालय अपने कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय के मार्गदर्शन में ऐसे रोजगारपरक पाठ्यक्रमों को निरंतर रूप से संचालित करता रहेगा, जिससे समाज की प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता रहे।