ज्योतिर्विद इतिहासकार पं. गोचर शर्मा ने बताया कि शब्द ‘रतÓ संस्कृत का पुलिंग शब्द है तथा ‘लामÓ का अर्थ है, किसी कार्य में निरंतर लगा हुआ एवं ‘लामÓ का मतलब है युद्ध। इस प्रकार अकबर के युग में किसी समय युद्ध कौशल में निरंतर लगे हुए योद्धाओं के ग्राम से प्रसिद्ध इस स्थान का नाम ‘रतलामÓ पड़ा। संभव है, इस नामकरण में कही संगीत सम्राट तानसेन का योगदान हो, इतिहास की दृष्टि से इस स्थान का नाम ‘रतलामÓ प्रथम बार आईना-ए-अकबरी में प्राप्त होता है।
रतलाम क्षेत्र में मचाया आतंक
इसके पश्चात शाहजहां के समय में रतलाम क्षेत्र पृथ्वीराज राठौड़ भारमल्लोत के अधिकार क्षेत्र में था। वह नोलाई (बडऩगर) में निवास करता था। सन् 1649 ई के मध्य पृथ्वीराज दक्षिण भारत के किसी युद्ध में घायल हो किसी गुप्त स्थान पर स्वास्थ्य-लाभ ले रहा था। उस समय मालवा-नोलाई परगने में यह अफवाह फैल गई कि पृथ्वीराज का निधन हो चुका है। तब आदिवासी योद्धा तारिया मईड़ा का वंशज मानसिंह मईड़ा ने रतलाम क्षेत्र में आतंक मचाया एवं इस क्षेत्र को अपने अधिकार में लेने का प्रयास किया। ऐसी परिस्थिति में बादशाह ने जालोर (राज) के राजकुमार रावरतनसिंह राठौड़ को इस क्षेत्र की सुरक्षा करने के लिए भेजा।
इसके पश्चात शाहजहां के समय में रतलाम क्षेत्र पृथ्वीराज राठौड़ भारमल्लोत के अधिकार क्षेत्र में था। वह नोलाई (बडऩगर) में निवास करता था। सन् 1649 ई के मध्य पृथ्वीराज दक्षिण भारत के किसी युद्ध में घायल हो किसी गुप्त स्थान पर स्वास्थ्य-लाभ ले रहा था। उस समय मालवा-नोलाई परगने में यह अफवाह फैल गई कि पृथ्वीराज का निधन हो चुका है। तब आदिवासी योद्धा तारिया मईड़ा का वंशज मानसिंह मईड़ा ने रतलाम क्षेत्र में आतंक मचाया एवं इस क्षेत्र को अपने अधिकार में लेने का प्रयास किया। ऐसी परिस्थिति में बादशाह ने जालोर (राज) के राजकुमार रावरतनसिंह राठौड़ को इस क्षेत्र की सुरक्षा करने के लिए भेजा।
मानसिंह मईड़ा का आतंक किया समाप्त
20 दिसंबर 1649 ई के बाद राव रतनसिंह अपने ममेरे भाई सांचोरा चौहान भगवानदास के साथ रतलाम आया एवं ग्राम धराड़ में मुकाम किया। रावरतनसिंह ने जनवरी 1650 ई में मानसिंह मईड़ा का आतंक समाप्त किया। गुरुजनों की पोथी एवं नगरसाक्ष के आधार पर जन-जन का मानना है कि राव रतनसिंह राठौड़ ने रतलाम राज्य की नींव माद्य शुक्ल बसंत पंचमी, सम्वत 1706 विक्रम, तदानुसार दिनांक 5 फरवरी 1650 ई. को, शनिवार (थावरवार) के दिन प्रात: 2 घटी, 30 पल 00 विपल पर रखी। थावरिया बाजार आज भी साक्ष के रूप में राजमहल के पूर्व दक्षिण कोण में स्थित है।
20 दिसंबर 1649 ई के बाद राव रतनसिंह अपने ममेरे भाई सांचोरा चौहान भगवानदास के साथ रतलाम आया एवं ग्राम धराड़ में मुकाम किया। रावरतनसिंह ने जनवरी 1650 ई में मानसिंह मईड़ा का आतंक समाप्त किया। गुरुजनों की पोथी एवं नगरसाक्ष के आधार पर जन-जन का मानना है कि राव रतनसिंह राठौड़ ने रतलाम राज्य की नींव माद्य शुक्ल बसंत पंचमी, सम्वत 1706 विक्रम, तदानुसार दिनांक 5 फरवरी 1650 ई. को, शनिवार (थावरवार) के दिन प्रात: 2 घटी, 30 पल 00 विपल पर रखी। थावरिया बाजार आज भी साक्ष के रूप में राजमहल के पूर्व दक्षिण कोण में स्थित है।