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सैकड़ों साल पुराने शिवमंदिर में पहली बार मनाई गई महाशिवरात्रि, जानिए क्यों

locationरतलामPublished: Mar 11, 2021 04:53:08 pm

Submitted by:

Shailendra Sharma

एक महीने पहले तक चट्टान में दबा था ये शिवमंदिर, पहली बार भक्तों ने भगवान शिव का अभिषेक कर मनाई महाशिवरात्रि…

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रतलाम. महाशिवरात्रि का पर्व पूरे देश में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। शिवालयों में भक्तों का तांता लगा हुआ है और हर कोई बाबा भोलेनाथ की भक्ति में लीन है। लेकिन इसी बीच हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जो है तो सैकड़ों साल पुराना लेकिन यहां पर पहली बार महाशिवरात्रि का पर्व मनाया गया और भगवान शिव का अभिषेक कर भक्तों ने भगवान का आशीर्वाद लिया। जिस मंदिर में पहली बार महाशिवरात्रि मनाई गई वो रतलाम से 45 किलोमीटर दूर माही नदी के किनारे पर है।

 

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सदियों से चट्टान में दबा था मंदिर
रतलाम से 45 किलोमीटर दूर माही नदी के किनारे पहाड़ी पर स्थित विशाल शिव मंदिर वैसे तो सदियों से यहां पर था लेकिन ये मंदिर एक चट्टान में पूरी तरह से दबा हुआ था। एक महीने की खुदाई के बाद ये मंदिर कुछ दिन पहले ही निकलकर जमीन पर आया है। जिस जगह पर ये मंदिर है वहां पर चट्टान का निचला हिस्सा था और ग्रामीण बताते हैं कि यहां पर मंदिर होगा ऐसा आभास ही नहीं होता था। कुछ दिन पहले ही जमीन से बाहर निकाला गया ये विशाल प्राचीन शिव मंदिर अब आसपास की लोगों का आस्था केन्द्र है। महाशिवरात्रि पर भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पर पहुंचे और भगवान शिव का अभिषेक कर आशीर्वाद लिया।

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अद्भुत है प्राचीन शिव मंदिर
भोपाल पुरातत्व विभाग ने 1 माह की खुदाई के बाद इस मंदिर को कुछ दिन पहले ही जमीन से बाहर निकाला है । हालांकि मंदिर का ऊपरी हिस्सा काफी धराशायी हो गया है लेकिन मंदिर के बड़े खंभे और आसपास का हिस्सा आज भी मजबूत है। पूरे प्राचीन भव्य मंदिर में बारीक नक्काशी के साथ भारतीय संस्कृति साफ दिखाई देती है । मंदिर के चारों ओर भारतीय संस्कृति की अद्भुत आकर्षक नक्काशी है जो देखते ही बनती है। मन्दिर के आसपास खुदाई में कई प्राचीन प्रतिमाएं निकली हैं जिनमें कुछ देवी देवताओं की प्रतिमाएं हैं तो कुछ भारतीय संस्कृति की छटा बिखेरती आकर्षक मूर्तियां हैं। पुरातत्व विभाग द्वारा की गई इस खुदाई में करीब 250 प्रतिमाएं मंदिर के आसपास से निकली हैं जो आज भी यहीं पर रखी हुईं हैं। अनुमान लगाया जा रहा है की यह 12वीं शताब्दी का मंदिर है।

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